VISHNU JI VARAH AVTAR AUR HIRANYAKSH VADH

वाराह जयंती 2023

Sunday, 17 September 

भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। 2023 में वाराह जयंती 17 सितंबर दिन रविवार को मनाई जाएगी। 
भगवान विष्णु ने वाराह अवतार हिरण्याक्ष का वध करने के लिए लिया था. हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप की कथा भागवत पुराण में आती है. दोनों भाई असुर ( दैत्य) थे.
 वह दोनों ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र थे.  हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के पूर्व जन्म की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्म जी के चार मानस पुत्र भगवान विष्णु के दर्शन के लिए गए. उनको भगवान के द्वारपालों जय विजय ने रोका ,तो उन्होंने ने दोनों को शाप दिया कि तुम दोनों असुर योनि में जन्म लो.

भगवान विष्णु को जब उनके आने का पता चला तो भगवान स्वयं द्वार पर पहुँचे. सनकादिक को अपने शाप पर पश्चाताप हुआ. भगवान ने कहा कि यह सब मेरी प्रेरणा से ही हुआ है . मुनियों ने कहा कि हम अपना श्राप तो वापिस नहीं ले सकते लेकिन तुम्हारा उद्धार स्वयं श्री हरि अवतार के हाथों होगा.भगवान ने दोनों को दिति के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया. 

दिति ने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया. पैदा होते ही उन दैत्यों की देह आत्मपौरूष के बल पर दो बड़े पर्वतों के समान बढ़ने लगी. वे अपने सुवर्ण - किरीट शिखरों से आसमान को छूने लगे. प्रजापति कश्यप ने जो पहले उत्पन्न हुआ उसका नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे का हिरण्याक्ष रखा. 

हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल तथा ब्रह्म जी के वरदान के बल से मृत्यु के भय त्याग कर तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. 

सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से पुकार की. ब्रह्मा जी सोचने लगे कि यह कार्य तो केवल भगवान विष्णु ही कर सकते हैं. ब्रह्मा जी के ऐसा ध्यान करते ही उनकी नाक से वाराह निकला जो देखते ही देखते हाथी के आकार का हो गया.

 जिनकी गर्जना से चारों दिशाएं प्रतिध्वनित हुई .भगवान  क्रीड़ा करते हुए जेल में प्रवेश कर गए .वाराह रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु सूकर के समान नाक से सूंघकर पृथ्वी का पता लगाने लगे . उन्होंने जल को चीरते हुए पृथ्वी को देखा . गजेंद्र के सामान शुभ्र दांतों से पृथ्वी को ऊपर फेंकते हुए वाराह भगवान की देवताओं ने स्तुति की. पृथ्वी को दांतों से पकड़े हुए उनका वेदमय सूकर रूप सुशोभित हो रहा है.

उधर हिरण्याक्ष  गदा लेकर युद्ध की इच्छा से प्रतिपक्षी खोजने स्वर्ग में गया . लेकिन उसके डर से देवता डर कर छिपने लगे . पृथ्वी पर भी किसी को भी युद्ध योग्य ना देकर वह समुंदर में चला गया. 
 वरुण देव के पास पहुंच कर उनका उपहास उड़ाते हुए कहने लगा कि तुम लोकपाल हो और बड़े बड़े योद्धाओं और दैत्यों को हराकर राजसूय यज्ञ किया है. अतः मेरे साथ युद्ध करो.वरुण जी को क्रोध आया लेकिन उन्होंने शांत होकर कहा कि तुम से युद्ध मैं नहीं कर सकता .

तुम विष्णु जी के पास जाओ वही तुम्हारे मान का मर्दन करेंगे .  हिरण्याक्ष ने नारदजी से विष्णु जी का पता पूछा तो उन्होंने कहा कि वह अपनी इसी मार्ग से पाताल की ओर गए हैं . 

उसने देखा कि विष्णु जी वाराह रूप धरकर पृथ्वी को उठा रहे हैं. वह भगवान विष्णु को कहने लगा कि तू सूकर रूप धर कर  मेरे होते हुए पृथ्वी को उठाकर कैसे ले जाएगा ? आ मुझे से युद्ध कर. तुम ने बहुत बार माया से दैत्यों के साथ छल किया है. मेरे होते हुए तू ऐसा नहीं कर सकता. 

अब दोनों में गदा युद्ध होने लगा.सभी देवता युद्ध देखने आ गए . ब्रह्मा जी ,विष्णु भगवान की स्तुति करने लगे, "प्रभु इस दैत्य का शीघ्र वध करे". भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष की दाढ़ी में गदा को मारा तो उसने प्रहार से स्वयं का बचाव कर लिया और उसने गदा पर गदा मार कर वाराह को गदा रहित कर दिया . फिर वाराह के हाथ में सुदर्शन चक्र आ गया.

हिरण्याक्ष त्रिशूल प्रहार करने लगा प्रभु ने चक्र से उसके टुकड़े कर दिए . उसने वाराह भगवान के हृदय पर घूंसा मारा और फिर अंतर्ध्यान हो कर माया युद्ध करने लगा.

फिर हिरणयाक्ष वाराह पर लिपटकर युद्ध करने लगा तो वाराह भगवान ने एक जोरदार थप्पड़ उनकी कनपटी पर मारा . जिससे उनकी आंखें बाहर आ गई.  वह पृथ्वी पर कराहने लगा.फिर कुछ देर बाद उसके प्राण निकल गए .जो भी वाराह चरित्र को सुनता है . वह महापाप से छूटकर धन ,यश, आयु प्राप्त करता है. 

वाराह जयंती के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है।

वाराह मंत्र

ॐ वराहाय नमः
ॐ सूकराय नमः
ॐ धृतसूकररूपकेशवाय

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