DHRUV AUR YAKSH YUDDH
ध्रुव ने अपने पिता राजा उत्तानपाद को अपने ज्ञान से बहुत प्रभावित किया. भगवान विष्णु की कृपा से ध्रुव का प्रभाव बढ़ने लगा और राजा ने ध्रुव को पृथ्वी का स्वामी बना दिया और स्वयं वन चले गये. राज्य अभिषेक के पश्चात ध्रुव का विवाह शिशुमार नामक प्रजापति की पुत्री भ्रमि के साथ हुआ .
उनके कल्प और वत्सर दो पुत्र हुए. उनकी दूसरी पत्नी का नाम ईला था. जिसका उत्कल नाम का पुत्र था.
राजा ध्रुव का भाई उत्तम एक बार वन में आखेट पर गया तो वहां अलकापुरी के समीप यक्षों ने युद्ध में मार दिया. भाई की मृत्यु से क्रुद्ध होकर ध्रुव जी ने अलकापुरी पर आक्रमण कर दिया. ध्रुव ने शंख बजाया तो वे युद्ध करने पहुंच गए.
यक्षों ने बाणों की बर्षा से ध्रुव के रथ को लुप्त हो कर दिया. यक्षों को लगा कि ध्रुव जी मारे गये. वे हर्षित हुए परंतु ध्रुव जी धनुष की टंकार कर निकल आये और बाणों की वर्षा से यक्षों की सेना को क्षत - विक्षत कर दिया.
कोई भी ध्रुव जी का सामना करने में समर्थ नहीं था. बचे हुए योद्धा भाग गए . ध्रुव जी अपने घर को लौट चले तो रास्ते में यक्षों की माया ने उनका मार्ग अवरुद्ध कर दिया और चारों तरफ प्रलय का दृश्य हो गया.
यक्षों ने जब माया फैलाई तो ध्रुव जी ने अपना नारायण अस्त्र उठाया . नारायण अस्त्र का उठाते ही यक्षों की माया लुप्त हो गई. यक्षों का समूल विनाश हुआ.
स्वयंभुव मनु अपने वंशज द्वारा यक्षों का ऐसा विनाश देखकर ऋषियों के साथ ध्रुव जी के पास आए और कहने लगे कि पुत्र तुम्हारे जैसे धार्मिक प्रवृत्ति के योद्धा को ऐसा संहार शोभा नहीं देता. तुमने अपने भाई के लिए इतने सारे यक्षों की हत्या कर दी. पुत्र तुम्हारे इस कार्य से ईश्वर प्रसन्न नहीं होगे. वह तो क्षमा, दया और सम दृष्टि के भाव से हर्षित होते हैं.
ध्रुव तुम ने यक्षों को मारकर कुबेर का निरादर किया है इसलिए पुत्र तुम कुबेर जी को प्रणाम कर उनको प्रसन्न करो, नहीं तो उनके तेज़ से हमारे वंश का तिरस्कार हो सकता है. स्वयंभुव मनु ध्रुव जी को समझाकर वहाँ से चले गए.
स्वयंभुव मनु के जाने के पश्चात कुबेर जी वहाँ आये और उन्होंने ध्रुव जी को आशीर्वाद देकर कहाकि तुम्हारे यक्षों से विरोध त्यागने के कारण मैं तुम से प्रसन्न हूँ. उन्होंने ध्रुव जी को वरदान मांगने के लिए कहा. ध्रुव जी ने उनसे भगवान विष्णु के लिए भक्ति मांगी और कुबेर जी ध्रुव जी को विष्णु भक्ति का वर देकर चले गए.
ध्रुव जी ने 36 हजार वर्षों तक राज्य किया. उन्होंने अपने पुत्र उत्कल को राज्य सौंप कर स्वयं बद्रिकाश्रम चले गए. सांसारिक मोह त्यागकर प्रभु की भक्ति में लीन हो गए .एक दिन आकाश मार्ग से उन्होंने एक दिव्य विमान को पृथ्वी की ओर आते हुए देखा.
जिसमें नंद,सुनंद नाम के भगवान विष्णु के दो पार्षद थे .उन्होंने ध्रुव जी से कहा कि हम भगवान विष्णु के पार्षद हैं आपने जो बाल्य काल में भगवान विष्णु की तपस्या कर उत्तम लोक को प्राप्त किया है जो ऋषियों के लिए भी दुर्लभ है वहाँ चलने के लिए श्री हरि ने यह विमान भेजा है .यह सुनकर ध्रुव जी ने मंदाकिनी नदी में स्नान किया और काल के सिर पर पैर रखकर ध्रुव जी भगवान विष्णु द्वारा भेजे गए विमान में विराजमान हुए .
देव लोक में मंगल गान होने लगे और फूलों की वर्षा हुई . ध्रुव जी को अपनी माता का स्मरण हुआ तो पार्षदों ने उनके मन की बात जान ली और दूसरे विमान में उनकी माता सुनीति को बिठाकर स्वर्ग लोक ले आए. परम पद के अधिकारी ध्रुव भक्त के स्वर्ग लोक पहुंचने का समाचार सुनकर नारदजी प्रसन्न हुए कि उनका शिष्य उनके द्वारा बताये गये योग मार्ग से स्वर्ग लोक आया है.
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