JAYA EKADASHI जया एकादशी

 

JAYA EKADASHI 12 FEBRUARY,SATURDAY 2022 जया एकादशी 12 फरवरी ,शनिवार 2022

एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है.  माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं.इस में भगवान श्री कृष्ण के केशव रूप की पूजा की जाती है.

जया एकादशी व्रत महत्व


 इस व्रत को करने से भूत प्रेत पिशाच की योनि में जाने का भय समाप्त हो जाता है और पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से कठिन से कठिन कार्य भी सम्पूर्ण हो जाते हैं. जया एकादशी व्रत ब्रह्महत्या के दोष से भी मुक्ति देता है.  इस दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान करना फलदायी होता है.

जया एकादशी व्रत कथा( JAYA EKADASHI VRAT KATHA ) 

एक बार इंद्र देव स्वर्गलोक में  अप्सराओं और गंधर्वों का नृत्य देख रहे थे और गान सुन रहे थे.

वहां पर पुष्पावती नाम की अप्सरा माल्यवान को देखकर मोहित हो गई .उसने माल्यवान को अपने सौंदर्य से  अपने वश में कर लिया.माल्यवान उस पर मोहित हो गया. इंद्रदेव के बुलाने पर उन्हें नृत्य और गायन के लिए आना पड़ा लेकिन गायन में उनका मन नहीं लग रहा था . दोनों अशुद्ध गायन और नृत्य कर रहे थे .

इंद्रदेव ने इसे अपना अपमान समझा और श्राप दिया कि तुम दोनों मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करके रहो और अपने कर्मों का फल भोगों.

इंद्रदेव के श्राप के प्रभाव से वह हिमालय पर्वत पर पिशाच बन कर जीवन व्यतीत करने लगे . पिशाच योनि में दुख सहते जब बहुत समय बीत गया तो एक दिन देवयोग से माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन दोनों ने भोजन ग्रहण नहीं किया और ना ही कोई पाप कर्म किया. सर्दी के कारण उन्हें रात्रि नींद भी नहीं आई .प्रातः दोनों की पिशाच देह छूट गई और दोनों ने सुंदर वस्त्र आभूषण धारण कर स्वर्ग लोक में प्रस्थान किया और वहाँ जाकर देवराज इंद्र को प्रणाम किया .

देवराज इंद्र ने पूछा कि दोनों ने पिशाच देह से छुटकारा कैसे पाया ?

माल्यवान ने कहा कि जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमारी पिशाच देह छूट गई . इंद्रदेव ने खुश होकर कहा कि  कहा कि जया एकादशी के प्रभाव के कारण आप दोनों पिशाच देह छूट गई इसलिए आप दोनों वंदनीय हैं .

आप जाकर पुष्पावती के साथ विहार करो जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं उनकी बुरी योनि छूट जाती है.जया एकादशी का व्रत करने वाले स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं.

 

व्रत विधि

एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. 

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए. 

भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.

 इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.

भगवान विष्णु और श्री कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए. 

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात व्रत का पारण करे.

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