SHRI KRISHAN BHAKT KI KATHA कृष्ण भक्त की कथा
भक्त और भगवान की अद्भुत भक्ति कथाएं
माना जाता है जो अनन्य भाव से श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं भगवान उनके कार्य स्वयं संवारते है. श्री कृष्ण के ऐसे ही भक्तों की भक्ति पूर्ण कथाएं (devotional stories)
आपना मान टले टल जाए,
भक्त का मान ना टलते देखा.
एक संत जी थे . वह श्री कृष्ण के परम भक्त थे. श्रीकृष्ण की मानसिक पूजा करते थे . उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ पिता - पुत्र जैसा संबंध बनाया था कि श्री कृष्ण मेरे बालक हैं और वह उसके पिता है.
वह हर रोज कान्हा को उठाते, भोजन कराते, गोद में खिलाते अपना पूरा वात्सल्य श्रीकृष्ण पर उड़ेल देते. कभी कहते कान्हा मेरी दाढ़ी नोच रहा है, कभी कान्हा को पकड़ने उसके पीछे भागते.
कृष्ण भक्ति में पूरा संसार भूल गए थे. हर समय कृष्ण भक्ति में ही रमे रहते . एक बार संत जी शिष्यों से कहने लगी कि मैं कभी गंगा स्नान करने नहीं गया. शिष्य कहते गुरु जी आप काशी जी चले जाओ.
लेकिन संत जी श्रीकृष्ण के वात्सल्य भाव में वे इतने रमे हुए थे कि उन्हें लगता था श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं अभी छोटा हूं बाबा अभी आप मत जाओ .
समय के साथ संत जी और वृद्ध हो गए लेकिन उनका कन्हैया वही साथ 8 साल का बालक ही रहा. उनका वात्सल्य अभी भी कान्हा के बाल रूप में ही था.
संत जी कृष्ण चिंतन में ही वह स्वर्ग सिधार गए. शिष्य उन्हें शमशान जाने के लिए जाने की तैयारी करने लगे. इतनी में एक सात - आठ साल का सुंदर बालक गंगाजल का घड़ा लिए आया और कहने लगा कि मैं इनका मानस पुत्र हूं इनका संस्कार मैं ही करूंगा.
इनकी इच्छा थी गंगा स्नान करने की इसलिए मैं उनकी इच्छा जरूर पूर्ण करूंगा इसलिए मैं घड़े में यह गंगा जल लाया हूं .
बालक ने संत जी के पार्थिव शरीर को गंगा स्नान कराया, संत के माथे पर तिलक लगाया और उनका अग्नि संस्कार किया .
उस बालक में एक अद्भुत सी कशिश थी कि कोई कुछ बोल ना सका. किसी ने कुछ पूछा ही नहीं ,अग्नि संस्कार के बाद में बालक अंतर्ध्यान हो गया .
उस बालक के जाने के पश्चात लोगों के मन में आया कि संत जी तो बाल ब्रह्मचारी थे उनका तो कोई पुत्र था ही नहीं . वह श्री कृष्ण को अपना मानस पुत्र मानते थे इसलिए भगवान श्री कृष्ण जी स्वयं संत के पुत्र के रूप में आए थे .
श्री कृष्ण की भक्त मीरा बाई की कथा
एक प्रसंग जब श्री कृष्ण ने भक्त के नियम को ना टूटने दिया
एक बार एक सेठ भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। वह अपना काम धंधा करता था और सोते जागते ठाकुर जी का नाम जपता रहता था। उसका एक नियम था, वह रोज शाम को कृष्ण मंदिर में जा कर चार लड्डुओं का भोग लगाता था।
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