NIYATI नियति
नियति का अर्थ होता है ईश्वर द्वारा रचित विधान जो अवश्य होकर रहता है या फिर इंसान का भाग्य या प्रारब्ध जो कुछ भी होता है ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित होता है उसे टाला नहीं जा सकता.
एक बार एक औरत की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा को लाने के लिए देवदूत को भेजा गया देखा . उस औरत की जुड़वा बेटियां उसकी मृत्यु के पश्चात माँ के शरीर के साथ चिपककर चीख- पुकार कर रही थी. देवदूत उसकी आत्मा को लिए बिना वापस आ गया .
देवदूत मृत्यु के देवता से कहने लगा कि क्या उस औरत को थोड़ा जीवन और मिल सकता, उसका पति भी मर चुका है उसके पश्चात उसकी बच्चियों का भविष्य क्या होगा? अगर उसे कुछ और समय मिल जाता तो बच्चियाँ बड़ी हो जाती.
मृत्यु के देवता ने कहा कि तुमने अपराध किया है. क्योंकि जिस ईश्वर की इच्छा से जन्म मृत्यु होती है तुम उसकी समझदारी पर शंका कर रहे हो. तुम उस ईश्वर से ज्यादा समझदार नहीं हो सकते. इसलिए तुमे इस अपराध के लिए दंड भोगना होगा .
तुमे मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर जाना पड़ेगा और जब तक तुम अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस ना लो तब तक वापस नहीं आ सकते.
जब हम दूसरों की मूर्खता पर हंसते हैं तो हमारा अहंकार बढ़ता है . लेकिन जब हम अपनी मूर्खता पर हंसते हैं तो हमारा अहंकार चूर-चूर होता है . देवदूत को अपनी गलती का अहसास नहीं था उसे लगा कि मैंने जो किया वह सही था इसलिए मुझे अपने पर हंसना नहीं पड़ेगा .
देवदूत को मनुष्य के रूप में नग्न अवस्था में धरती पर भेज दिया गया .एक जूते बनाने वाला कारीगर अपने बच्चों के लिए कपड़े, कंबल लेने जा रहा था. उसने जब देवदूत को इतनी सर्दी में नग्न अवस्था में देखा तो उसने सोचा कि इतनी सर्दी में उसकी मृत्यु हो जाएगी. इसलिए उसने देवदूत को कपड़े, कंबल, जूते ले दिए. उसने पूछा कि कोई रहने के लिए ठिकाना है तो देवदूत ने कहा कि नहीं ,मैं जहाँ किसी को नहीं जानता.
कारीगर उसे अपने घर ले गया और रास्ते में समझाने लगा कि मेरी पत्नी सच्चाई सुनकर चिल्लाएंगी, गुस्सा करेगी लेकिन तुम परेशान मत होना .
कारीगर की पत्नी को जब सच्चाई पता चली तो वह बहुत चिल्लाई, गुस्सा हुई. देवदूत पहली बार हंसा. कारीगर ने पूछा कि तुम क्यों हंस रहे हो देवदूत ने कहा कि जब तक मैं तीन बार अपने पर हंस ना लूं. तब तक बता नहीं सकता .
देवदूत इस बार इसलिए हंसा कि उसकी पत्नी बच्चों के कपड़े ,जूते, कंबल ना मिलने पर चिल्ला रही थी और परेशान थी लेकिन उसे पता ही नहीं था कि उसका पति देवदूत को घर ले आया है . जिसके घर में आने से उसके खुशियों और धन की बरसात होने वाली थी.
आज देवदूत को पहली बार लगा कि इस कारीगर की पत्नी की तरह वह भी उस दिन वह ज्यादा दूर की देख नहीं पाया था कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है?
कारीगर ने देवदूत को जूते बनाने सिखा दिए . वह देवदूत था इसलिए कुछ ही दिनों मैं सीख गया और इस कला में पारंगत हो गया उसके बनाए हुए जूतों की बहुत ज्यादा ख्याति फैल गई . कारीगर कुछ ही महीनों में शहर का अमीर आदमी बन गया .
उसके जहां एक दिन राजा के जूते बनने के लिए आए थे. राजा के दरबारी ने कहा कि चमड़ा बहुत महंगा है राजा के लिए इससे जूते ही बनाना स्लीपर नहीं ?क्योंकि उस शहर में मान्यता थी कि स्लीपर मरने पर ही पहने जाते हैं.
कारीगर ने देवदूत से कहा कि राजा के लिए सुंदर से जूते बना दो. लेकिन देवदूत ने स्लीपर बना दिए. जिसे देखकर कारीगर क्रोधित हो गया कि तुम मुझे मौत की सजा करवाओगे क्योंकि स्लीपर तो किसी की मृत्यु के पश्चात पहनाएं जाते हैं. अब और चमड़ा भी नहीं है जिससे नएं जूते बना सकें.
तभी कारीगर के पास एक दरबारी आया और कहने लगा कि राजा की राजा की मृत्यु हो गई है और स्लीपर बनाना, जूते नहीं.
आज देवदूत दूसरी बार स्वयं पर हंसा. इंसान को भविष्य के बारे में ज्ञान नहीं होता राजा जीवित था तो जूते चाहिए थे और मरने के पश्चात स्लिपर. व्यर्थ में ही धनसंपदा इकट्ठी करते हैं भविष्य के गर्भ में क्या छिपा हुआ है केवल ईश्वर ही जानता है.मैं उस दिन व्यर्थ ही चिंता में डूबा कि उन बच्चों का क्या होगा ?
कुछ दिन के पश्चात एक अमीर औरत जुड़वां बच्चियों को लेकर आई और कहने लगी की इनके लिए जूते बनाने हैं. देवदूत ने बच्चियों को पहचान लिया कि यह वही बच्चियाँ हैं जिनकी मां को छोड़कर आने का मैं दंड भुक्त रहा हूं.
बच्चियाँ को बहुत स्वस्थ और खुश लग रही थी उसने औरत से बच्चों के बारे में पूछा . वह औरत कहने लगी कि यह मेरी पड़ोसन की बच्चियाँ है . उनकी मां गरीबी के कारण दूध तक इंतजाम नहीं कर पाती थी और गरीबी के कारण मर गई .मेरा कोई बच्चा नहीं था. मैंने बच्चियाँ गोद ले ली.उनका पालन पोषण मैं ही कर रही हूं.
मेरे मरने के पश्चात मेरी सम्पत्ति की वारिस यह बच्चियाँ ही होगी. आज देवदूत तीसरी बार अपनी गलती पर हंसा.आज देवदूत को अपनी भूल का अहसास हुआ. क्योंकि अगर इन बच्चियों की माँ जिंदा होती तो शायद यह सारी उम्र गरीबी में ही निकल देती.
हम उतना ही देख पाते हैं जितनी कि हमारी नजरों के सामने होता है. भविष्य के गर्भ में क्या है उसे ईश्वर के सिवाय कोई नहीं जान पाता . देवदूत कारीगर से कहने लगा कि आज मेरा दंड पूरा हो गया अब मैं जाता हूं .
कुछ भी परेशानी समस्या के आने पर हम विचलित हो जाते हैं लेकिन उसके भविष्य में क्या छुपा है हम जान नहीं पाते . सब अच्छा, बुरा ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए. वह जो कर रहा है ,करवा रहा है ,उसके लिए उसका शुकराना करना चाहिए . क्योंकि हमारे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होता? होता वही है जो ईश्वर चाहता है.
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