PAUSH SAPHALA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

पौष मास सफला एकादशी व्रत कथा और महत्व 

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. पौष मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु के अच्युत रूप की पूजा की जाती है।


PAUSH SAPHALA EKADASHI SIGNIFICANCE 

   एकादशी का महत्व धर्मराज युधिष्ठिर को स्वयं श्रीकृष्ण ने सुनाया था. पांच हजार वर्ष तप करने पर जो फल मिलता है उससे अधिक फल सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है. सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अच्युत रूप की पूजा की जाती है. इस एकादशी का व्रत करने से सभी कार्यों में निसंदेह सफलता मिलती है. इस व्रत का महात्म्य सुनने और पढ़ने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.

PAUSH SAPHALA EKADASHI VRAT KATHA  सफला एकादशी व्रत कथा

चम्पावती नगर में महिष्मान नाम का एक राजा रहता था . जिसके चार पुत्र थे .उसका सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक बहुत बड़ा महापापी था  . 

वह सदैव वेश्या गमन और दूसरे बुरे कार्यों करता था . जब राजा को ज्ञात हुआ तो राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया. वह अपने पिता के राज्य में चोरी कर प्रजा को तंग करता ,वन में पशुओं को मारता था. कई बार सिपाही उसे पकड़ लेते लेकिन राजा के भय से उसे फिर छोड़ देते.

वह जिस वन में रहता वहां पर एक पीपल का वृक्ष था जिसकी भगवान के समान पूजा अर्चना की जाती थी. पौष मास की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह ठंड के कारण सो ना सका और मूर्छित हो गया .

दूसरे दिन सफला एकादशी थी. दोपहर को सूर्य की गर्मी से उसके मूर्च्छा दूर हुई तो वह वन में भोजन के लिए भटकने लगा.

शरीर की कमजोरी के कारण उस दिन उसने वन्यजीवों को नहीं मार पाया और पेड़ों से गिरे फलों को इकट्ठा कर पीपल के वृक्ष के नीचे आ गया . उसी समय सूर्य भगवान अस्त हो गए. वह भगवान से रो कर कहने लगा कि यह फल आपको अर्पण है ,आप तृप्त होइए. उस दिन दुखी होने के कारण रात्रि उसे नींद भी नहीं आई और वह भगवान को याद करता रहा.

 इस तरह उसने अनजाने में ही सफला एकादशी का व्रत कर लिया और ईश्वर की भक्ति की. उसके पूजन से भगवान प्रसन्न हुए और उसके सारे कष्ट और पाप दूर हो गए . 

उसी समय आकाशवाणी हुई कि, "अब तुम अपने पिता के राज्य प्राप्त कर राज्य करो ".उसी समय उसके पास अति सुंदर घोड़ा आया उसने घोड़े की पीठ पर रखा खाना खाया, वस्त्र भूषण पहन कर वह अपने पिता के राज्य को गया और पिता को संपूर्ण कथा सुनाई.

 राजा महिष्मान उसे राज्य सौंप कर स्वयं तपस्या करने चले गए. लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा. उसके स्त्री, पुत्र आदि भी भगवान नारायण के भक्त बने. वृद्धावस्था आने पर अपने पुत्र को गद्दी देकर स्वयं वन में भक्ति करने चला गया और विष्णु लोक को प्राप्त हुआ .


व्रत विधि

 सफला एकादशी व्रत जो मनुष्य करता है उसे सफलता मिलती है.

 एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. 

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए.

विष्णु भगवान को नारियल, अनार ,सुपारी आदि अर्पण करो . 

 भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.

 इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.

भगवान विष्णु और कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए. गीता का पाठ करना चाहिए. 

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है क्योंकि जो पुण्य समस्त तीर्थों का स्नान करने से मिलता है वैसा ही पुण्य रात्रि जागरण से मिलता है. 

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए. 




 

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