PUTRADA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE IN HINDI
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
SIGNIFICANCE OF PAUSH PUTRADA EKADASHI (पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व)
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए .इस व्रत के करने वाले को यशस्वी और पितृ भक्त पुत्र की प्राप्ति होती हैं.
इस एकादशी का व्रत करने से निसंतान को भी यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है .ऐसा माना जाता है अपनी संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा और उन्नति के लिए सभी को यह व्रत करना चाहिए .
व्रत का माहात्म्य सुनने से भी मनुष्य सुंदर संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा ( PUTRADA EKADASHI VRAT KATHA)
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था .उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. संतान हीन होने के कारण दोनों चिंतित रहते थे . उनके पित्र भी सोचते थे कि राजा के पश्चात उन्हें पिंड कौन देगा?
राजा को पुत्र ना होने के कारण उसको सारी धनसंपदा अर्थहीन लगती थी. राजा के मन में नहीं आता कि मेरे मरने के पश्चात मेरा पिंडदान कौन करेगा ? देवताओं का ऋण कैसे उतरेगा?
एक दिन राजा वन में गया तो वहां मृग ,सूअर ,सिंह आदि को अपने बच्चों के साथ भ्रमण करते देखकर राजा को पुत्र हीन होने का दु:ख और पीड़ा देने लगा .
इसी सोच में राजा पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुँचा. वहाँ उसे एक मुनियों के आश्रम दिखे .राजा ने घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम किया . मुनि कहने लगे कि हम विश्व देव हैं और इस सरोवर पर स्नान करने आए हैं . राजा ने मुनियों से अपने पुत्र हीन होने की व्यथा कहीं और मुनियों से पुत्र प्राप्ति का वर माँगा.
मुनियों के कहे अनुसार उसने एकादशी का व्रत कर द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया और मुनियों का प्रणाम कर राजा के अपने महल की ओर चल दिया .
व्रत के प्रभाव से उसी मास रानी गर्भवती हुई और नौ मास के पश्चात एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ. वह पुत्र बड़ा होकर वीर, यशस्वी और चक्रवर्ती सम्राट बना .
व्रत विधि
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए.
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.
भगवान विष्णु और श्री कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए.
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.
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