RAJA PRITHU KATHA HINDU MYTHOLOGY STORY

श्री हरि विष्णु के भक्त राजा पृथु की कथा

राजा पृथु राजा अंग के दुष्ट पुत्र वेन के पुत्र थे। वेन ने अपने राज्य में यज्ञ,हवन, दान और सब धर्म कर्म पर रोक लगा दी . वेन के अत्याचारों को देखकर ऋषियों ने वेन को जाकर समझाया. राजा प्रजा की रक्षा करता है और ब्राह्मणों द्वारा किए गए यज्ञ के पुण्य से देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं . 

वेन कहने लगा कि मुझे ईश्वर मान मेरा नाम भजन कर मुझे बलि समर्पित करें. उसका अभिमान देखकर मुनियों ने अपनी हुंकार उसे मार डाला. लेकिन उसकी माता सुनीथा ने योग विद्या से उसके शरीर की रक्षा की।

राजा वेन की मृत्यु के पश्चात मुनियों को विचार आया कि राजा अंग का यह राज्य नष्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि इस वंश में भगवान विष्णु के नाम लेने वाले महान राजा हुए हैं. 

मुनियों ने वेन की भुजाओं का मंथन कर एक पुत्र और एक कन्या को उत्पन्न किया .पुत्र का नाम पृथु था जो कि भगवान विष्णु का अंश था और कन्या का नाम अर्ची था जो माता लक्ष्मी का अंश थी. समय आने पर उसने पृथु को पति रूप में स्वीकार किया.

पृथु के उत्पन्न होने पर ऋषि मुनि और देवता बहुत हर्षित हुए क्योंकि बालक शंख, चक्र, आदि चिन्हों से युक्त भगवान विष्णु का अंश था। ब्रह्मा जी ने पृथु को पृथ्वी का राजा बना दिया और बहुत धूमधाम से पृथु का राज्याभिषेक हुआ.

 पृथु ने कहा कि इस संसार में प्रशंसा के योग्य के केवल विष्णु हैं. ऋषियों ने पृथु की प्रशंसा की और कहा कि आप साक्षात विष्णु जी का अवतार लिए हैं हम लोगों को विश्वास है कि आप गाय, ब्राह्मणों के रक्षक होंगे और प्रजा वत्सल होंगे। सातों समंदर आपके अधिकार में होंगे. आप पूरी पृथ्वी पर शासन करेंगे आप सौ अश्वमेघ यज्ञ करेंगे और पूरा संसार आपके यश का गान करेगा .

राज्याभिषेक के पश्चात राजा पृथु अपना कर्तव्य पालन का विचार करने लगे कि उनकी प्रजा किस प्रकार सुखी हो .बिना राजा के राज्य के कारण प्रजा दुखी थी और पृथ्वी अन्नहीन हो गई थी ।

जब राजा पृथु को ज्ञात हुआ कि पृथ्वी ने अन्न अपने अंदरछुपा लिया है तो उन्होंने अपना धनुष उठा कर पृथ्वी निशाना साधा. पृथ्वी उस प्रहार को समझ कर कांप गई और गौ के रूप में राजा पृथु के पास आई .पृथ्वी राजा पृथु से कहने लगे कि मैं आपकी शरण में आई हूं. मेरा विनाश कर आप प्रजा का पालन कैसे करेंगे? 

राजा पृथु कहने लगे तो यज्ञ का भाग लेकर भी अन्न और औषधि प्रदान क्यों नहीं कर रही जिसे ब्रह्मा जी ने तुझे दिया है .मैं अपने बाण तेरे टुकड़े - टुकड़े कर दूंगा .

पृथ्वी ने राजा पृथु से प्रार्थना की, कि आपके उचित कहा है कि मैंने ब्रह्माजी द्वारा प्राप्त औषधियों को चुराया है लेकिन जब कोई प्रजा का पालक नहीं था तो लुटेरे और दुराचारी अन्न का मनमाना भोग करने लगे। उनके पास कोई व्रत नहीं था और व्रत हीनो को औषधियांँ नहीं मिल सकती .

इसलिए मैंने अन्न और औषधियों को ग्रस लिया.यदि आप मेरा बछड़ा बंद कर और दुहने का कोई पात्र कल्पित करें तो उन पात्रों को पूर्ण कर सकती हूं.

पहले आप सारी धरती को सम करें.फिर बरसात से योग्य आऊंगी हो जाऊंगी .राजा पृथु ने स्वयंभुव मनु को बछड़ा बनाकर गौ रूपी पृथ्वी से औषधियों को दूह लिया.

पृथ्वी को वश में कर सर्वप्रथम दुहने वाला राजा पृथु थे. जब राजा पृथु को लगा कि पृथ्वी ने सब की अभिलाषा पूर्ण कर दी हैं तो उन्होंने पृथ्वी को अपनी कन्या मान लिया और उनकी प्रजा अन्न और औषधियों से धन्य और तृप्त हो गई .

इस प्रकार राजा पृथु ने अपनी प्रजा को संतुष्ट किया राजा पृथु में सौ अश्वमेध यज्ञ का प्रण लिया .एक के बाद एक 99 यज्ञ कर देवताओं को संतुष्ट किया.

उसके लिए स्वर्ग में राजा पृथु की प्रशंसा होने लगी . 100 वें यज्ञ में इन्द्र देव सन्यासी का वेश धारण कर उसके यज्ञ के घोड़े को चुरा लिया .ऋषि अत्री ने ऐसा करते देखा तो राजा पृथु के पुत्र को कहा कि तुम्हारे पिता का यज्ञ भंग करने के लिए इंद्र ने घोड़ा चुरा कर ले गया है. तुम इन्द्र से घोड़ा छीन कर ले आओ. पृथु के पुत्र ने इन्द्र का पीछा किया और घोड़ा की छीन लिया .

लेकिन इंद्र ने अंधकार कर घोड़ा फिर से चुरा लिया। जब राजा पृथु को इस विषय में पता चला तो उन्होंने कहा इंद्र तो मारने के योग्य है .

लेकिन ब्रह्मा जी ने आकर राजा पृथु को इन्द्र की महत्ता बताई और दोनों में मित्रता करवा दी. सभी देवताओं ने पृथु को आशीर्वाद दिया. राजा ने भक्ति से विष्णु जी का पूजन किया .

भगवान विष्णु ने कहा कि राजा का मुख्य उद्देश्य होता है प्रजा की रक्षा करना। तुम मन लगाकर प्रजा का पालन करो। कुछ समय पश्चात् सनकादिक ऋषि तुम को ज्ञान उपदेश देंगे जिससे तुम तृप्त हो जाओगे .

भगवान विष्णु ने पृथु को वर मांगने को कहा तो राजा पृथु कहने लगे मुझे आपके दर्शन के आगे मोक्ष भी तुच्छ लगता है ।आप मुझे अपनी सेवा का अवसर प्रदान करें।  मैं आपका यशगान   करना और सुनना चाहता हूं।  मैं आपकी सेवा माँ लक्ष्मी जी जैसा करना चाहता हूं .यदि आप लक्ष्मी जी को हटाकर मुझे सेवा में ना रख सके तो मुझे अमृत रूपी कथा सुनने के लिए हजारों कान प्रदान करें .भगवान विष्णु ने कहा कि मुझ में तुम्हारी भक्ति सदा बनी रहे और भगवान विष्णु वर देकर अपनी धाम चले गए. 

राजा पृथु ने बिना अहंकार पृथ्वी का पालन किया। जब से भगवान विष्णु ने उन्हें उपदेश दिया था उनमें भगवान विष्णु का तेज विद्यमान था। उनकी आज्ञा का पालन प्रजा करती थी ।

आप लोग सब अपने कर्मों को ईर्ष्या रहित होकर करें और उसे ईश्वर अर्पण कर दे क्योंकि निष्काम कर्म में बहुत शक्ति होती है ईश्वर ही अर्थ, धर्म ,मोक्ष का फल देने वाला है .

आप सब भगवान विष्णु की आराधना करें क्योंकि वह सब के रक्षक हैं और उसी समय वहां सनत्कुमार आये.राजा पृथु ने उन्हें स्वर्ण आसन पर बिठाया और उनका पूजन किया और उनसे पूछने लगे मुझे कल्याण की प्राप्ति कैसे होगी ?

सनत्कुमार कहने लगे आपने कल्याण मार्ग से पहले धारण किया है भगवान विष्णु की भक्ति से वासनाएं समाप्त होती हैं।  विषयों से रहित होकर भगवान की कथाएं सुनने हुए योग के अष्टांगों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

 भगवान विष्णु के चरित्र का गान करना, निंदा ना करना, वस्त्र भोजन का जीवन निर्वाह करने के लिए उद्योग करना, सर्दी गर्मी सहन करना अभ्यासी का कर्तव्य है ।वासना कष्टों का कारण है उनके ना होने पर कष्ट नहीं होता।

 परमात्मा आवागमन से मुक्त है, सारी सृष्टि ईश्वर के वश में है। आप भगवान विष्णु का भजन करे वही सभी पापों से मुक्त करने वाले हैं । सनत्कुमार ने राजा को ज्ञान देकर का आकाश मार्ग से अपने लोक चलें गए। राजा पृथु उनके बताए हुए ज्ञान में मगन रहने लगे ।

उनकी पत्नी अर्ची के विजिताश्व , धूमकेतु, हर्यक्ष, द्रवित और वृक नामक पांच पुत्र उत्पन्न हुए जो कि गुणों में अपने पिता पृथु के समान थे। 

राजा पृथु अपने पुत्रों को राज्य सौंप कर अपनी पत्नी अर्ची संग वन चले गए। राजा पृथु अपनी आत्मा को ईश्वर में लगाकर ब्रह्म रूप हो गए और समय आने पर शरीर का त्याग किया। उनकी पत्नी अर्ची ने उनके वियोग में चिता बनाकर पति के साथ अग्नि में प्रवेश कर गई। सभी देवी-देवताओं ने अर्ची की प्रशंसा की ।

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