SHABRI MATA KI KATHA

 शबरी माता की कथा

शबरी श्री राम के परम भक्त के रूप में जानी जाती हैं. शबरी भील समुदाय की शबर जाति से संबंध रखती थी. इसलिए उनका नाम शबरी पड़ा.उनका नाम श्रमणा था

.शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी के विवाह के समय जब सैकड़ो भैंसे और बकरे बलि के लिए लाए गए तो शबरी का मन द्रवित हो गया कि मेरी शादी के कारण इतने बेजुबानों की बलि दी जाएगी . इसलिए शबरी घर से भाग गई. 

  SHABRI AUR MATANG RISHI शबरी और उनके गुरु मतंग ऋषि की कथा

 विवाह से पहले शबरी घर से भाग कर दंडकारण्य वन में पहुंच गई . वहाँ मतंग ऋषि अपने शिष्यों को ज्ञान दे रहे थे. शबरी उनसे बहुत प्रभावित हुई है. वह उनकी सेवा करना चाहती थी. लेकिन उसके मन में शंका थी कि भील जाति के होने के कारण उसे यह अवसर नहीं मिलेगा.

 वह चुपके से उनके आश्रम से नदी तक का मार्ग साफ कर उस पर साफ बालू बिछा दिया करती .एक दिन जब मतंग  ऋषि को शबरी की इस सेवा के बारे में पता चला तो शबरी को उन्होंने अपने आश्रम में शरण दी .

जब मतंग ऋषि देव लोक को जाने लगे तो उन्होंने शबरी को बताया कि भगवान राम एक दिन इस आश्रम में जरूर आएंगे. तुम इसी आश्रम में रहकर उनकी प्रतीक्षा करना.

शबरी ने प्रश्न किया कि गुरुदेव में जानती हूं आप का वचन सत्य होगा. लेकिन प्रभु कब आएंगे? पतंग ऋषि त्रिकालदर्शी थे . वह कहने लगे कि अभी तो उनका जन्म भी नहीं हुआ. जन्म के पश्चात उनका विवाह माता सीता से होगा . विवाह के पश्चात उन्हें 14 वर्ष का वनवास मिलेगा.प्रभु माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ वन में निवास करेंगे.

वनवास के अंतिम वर्ष में माता सीता का अपहरण होगा उनकी खोज में प्रभु श्री राम इस आश्रम में आएंगे तो उनसे कहना कि आप सुग्रीव से मित्रता कर ले और उनको बाली से अत्याचारों से मुक्त कराएं.

शबरी ने प्रश्न किया कि गुरुदेव इतनी लंबी प्रतीक्षा कैसे कर पाऊंगी ?  मतंग ऋषि कहने लगे कि वह ईश्वर हैं अगर उनकी इच्छा हुई तो काल के विज्ञान को परे रखकर कभी भी आ सकते हैं .इसलिए तुम हर रोज उनकी प्रतीक्षा करना.

मुझे तुम्हारे गुरु के रूप में स्मरण किया जाएगा. शबरी ने गुरु के वाक्य को सत्य माना और प्रतिदिन भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करती. प्रति दिन मार्ग में फूल बिछाती थी किसी प्रतीक्षा में शबरी बूढ़ी हो गई . गुरु का वचन सत्य हुआ और श्री राम के चरण उनके बिछाये हुए फूलों पर पड़े और शबरी की प्रतीक्षा समाप्त हुई.

श्री राम का शबरी के आश्रम जाना और नवधा भक्ति का उपदेश

प्रभु राम और लक्ष्मण जी  शबरी के आश्रम में पधारे  . शबरी प्रेम में इतनी मग्न हो गई की मुख  से वचन नहीं निकल पा रहा . उसने दोनों भाइयों के चरण धोकर आसन पर बिठाया और स्वादिष्ट कंदमूल और फल खाने को  दिए .

शबरी कहने लगी कि प्रभु मैं अधम जाति की हूँ . मैं आप की स्तुति किस प्रकार करूं  . प्रभु श्री राम ने कहा मैं तो केवल भक्ति का ही संबंध मानता हूं . मैं तुमसे अपनी नवधा भक्ति कहता हूं.

पहली भक्ति है संतों की संगत

 दूसरी भक्ति है मेरी कथा प्रसंग

 तीसरी है गुरु के चरण कमलों की सेवा

 चौथी कपट छोड़कर मेरे गुणों का गान 

पांचवी भक्ति मंत्र का जाप और मुझ पर दृढ़ विश्वास

छठी भक्ति है अच्छा स्वभाव या चरित्र

सातवीं भक्ति है जगत को समभाव से ही राममय देखना 

आठवीं भक्ति है जो मिल जाए उसमें संतोष करना और पराए के दोषों को ना देखना 

नवीं भक्ति है सरलता और किसी से छल ना करना और हृदय में मेरा भरोसा रखना .

इन नवों में से जिनके पास एक भी होती है . वह मुझे अत्यंत प्रिय हैं . फिर तुम में तो हर प्रकार की भक्ति है.

प्रभु श्री राम ने शबरी से पूछा कि  क्या आप  सीता की कोई खबर जानती है तो बता दे ? शबरी कहती है कि प्रभु आप पंपा नामक सरोवर पर जाएं . वहां आपकी सुग्रीव से मित्रता होगी वह सब हाल आपको बताएगा . शबरी भगवान के दर्शन करके हरिपद में लीन हो गई. 

शबरी जयंती के दिन कैसे पूजा की जाती है 

शबरी जयंती के दिन शबरी माला मन्दिर में विशेष मेला आयोजित किया जाता है। 

शबरी जयंती के दिन मंदिरों में अखंड रामायण का पाठ होता है। 

शबरी जयंती के दिन श्री राम भगवान श्रीराम और माता शबरी को स्मरण कर उनकी कथा पढ़नी चाहिए।

शबरी ने श्री राम को बेर खिलाए थे इसलिए भगवान श्रीराम को प्रसाद में बेर अवश्य भेंट करें।

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