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Showing posts from January, 2022

KARPUR GAURAM KARUNAVTARAM MANTAR LYRICS WITH HINDI MEANING

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कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र लिरिक्स हिन्दी अर्थ सहित  कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।   भगवान शिव की "स्तुति मंत्र" श्री हरि विष्णु  ने भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह समय की थी । देवी- देवताओं  की आरती के पश्चात भगवान शिव का मंत्र बोला जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव पार्वती के विवाह के समय बोले गए अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिव जी की स्तुति की गई है। इसका अर्थ इस प्रकार है कर्पूरगौरं - कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले। करुणावतारं - करुणा के जो साक्षात् अवतार है। संसारसारं - समस्त सृष्टि के जो सार है। भुजगेंद्रहारम् - जो सांप को हार के रूप में धारण किए हुए हैं। सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि - जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है। अर्थात - जो कर्पूर समान गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार है,  समस्त संसार के सार है और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। कर्पूरगौरम् क

POLITENESS - VINAMRTA

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 VINAMRTA - POLITENESS लक्ष्मण जी युद्ध से पूर्व जब श्रीराम से आशीर्वाद लेने पहुंचे तो श्री राम लक्ष्मण से कहने लगे कि लक्ष्मण युद्ध से पूर्व जो भी पहला व्यक्ति मिले उससे भिक्षा मांग कर आओ। लक्ष्मण और हनुमान जी को आश्चर्य हुआ कि प्रभु ने आशीर्वाद के बजाय भिक्षा मांगने का आदेश क्यों दिया? लेकिन अगर श्री राम भिक्षा मांगने की आज्ञा दी तो लक्ष्मण जी बिना प्रश्न किये भिक्षा मांगने निकल पड़े। लक्ष्मण जी को रास्ते में सबसे पहले रावण के सैनिक से भेंट होती है। श्री राम की आज्ञानुसार लक्ष्मण जी उससे भिक्षा मांगते हैं। रावण का सैनिक अपने राशन में से कुछ अन्न लक्ष्मण जी को भिक्षा में देता है। लक्ष्मण जी वापस आकर वह भिक्षा श्री राम को देते हैं। उसके पश्चात श्री राम लक्ष्मण जी को विजयी भव: होने का आशीर्वाद देते हैं। कोई भी श्री राम द्वारा लक्ष्मण जी से भिक्षा मांगने के मर्म को ना जान पाया।  लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ। मेघनाद ने लक्ष्मण जी पर ब्रह्मास्त्र, पशुपात्र और कौन अस्त्र चलाये  जो अभेद्य थे। लक्ष्मण जी ने हाथ जोड़ कर सभी को प्रणाम किया और सभी अस्त्र वापिस चले गए। उसके पश्चात जब

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA

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राधा रानी के 16 नाम अर्थ सहित    श्री राधा के 16 नामों की व्याख्या ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्री कृष्ण जन्म खंड में स्वयं "भगवान नारायण" ने  "नारद जी"         से कहीं है।  RADHA RANI KE 16 NAMES WITH HINDI MEANING  राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी।  कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी।। कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी ।  कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ।।  चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना ।  नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च।। राधा रानी के 16 नामों का अर्थ 1.राधा– ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । राधा मुक्ति, निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं ।  2.रासेस्वरी– वह रासेश्वर श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया अर्धांगिनी हैं, अत: ‘रासेश्वरी’ कहलाती हैं । 3. रासवासिनी–उनका रासमण्डल में निवास है, अतः वह ‘रासवासिनी’ कहलाती हैं। 4. रसिकेश्वरी- समस्त रसिक देवियों की सर्वश्रेष्ठ स्वामिनी हैं, इसलिए उन्हें ‘रसिकेश्वरी’ कहलाती है । 5. कृष्णप्राणाधिका– श्रीकृष्ण को वे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं ।इसलिए उनको ‘कृष्णप्राणाधिका’ कह

NIRJALA EKADASHI VRAT KATHA IN HINDI

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निर्जला एकादशी व्रत कथा और महत्व  निर्जला एकादशी 2023 WEDNESDAY, 31 MAY  Nirjala Ekadashi : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी( Jyeshta Mass sukal paksh ekadashi)   को निर्जला एकादशी कहा जाता है । इस एकादशी का व्रत करने से साल भर की एकादशी के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है। भीमसेन ने इस व्रत को किया था इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी और पांडव एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी में सूर्य उदय से लेकर द्वादशी के सूर्य उदय तक जल ना ग्रहण करने का विधान है इसलिए ही इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। ज्येष्ठ मास में दिन बड़े होते हैं और गर्मी के कारण प्यस भी बहुत लगती है इसलिए इस व्रत को करना बहुत कठिन साधना है। SIGNIFICANCE OF NIRJALA EKADASHI (निर्जला एकादशी का महत्व)  एकादशी का व्रत करने से साल भर की एकादशी के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है। एकादशी के दिन ब्राह्मणों को अनाज, वस्त्र, क्षेत्रफल जल से भरे कलश और दक्षिणा देने का विधान है। भक्त  मिट्टी के घड़े, बर्तन, अनाज, शरबत आदि दान में देते हैं‌ जो मनुष्य निर्जला एकादशी व्रत करते हैं मृत्यु के समय यम भी उसके पास नहीं आते भगवान के पार्षद उसके पुष्प

KRISHAN NAAM KI MAHIMA

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कृष्ण नाम की महिमा मंत्र lord Krishna mantra  1. कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। नाम हइते सर्व जगत निस्तार।। भाव- श्री कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं। कलियुग में श्री कृष्ण स्वयं हरिनाम के रूप में अवतार लेते है। केवल हरिनाम से ही सम्पूर्ण संसार का उद्धार संभव है।  2. ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने॥ प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥ भाव-हे वासुदेव नंदन परमात्मा स्वरूप श्री कृष्ण आपको प्रणाम है। उन गोविन्द को पुनः प्रणाम वह हमारे कष्टों को हरे।  ऐसा माना जाता है कि जब कभी भी मनुष्य पर आकस्मिक विपत्ति आ जाती है तो पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ श्री कृष्ण के इस मंत्र का जाप से संकट से मुक्ति मिल सकती है।  गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं कृष्ण नाम की महिमा का भावपूर्ण कथा (Devotional story)  एक बार एक औरत का मन‌ श्री कृष्ण की भक्ति के प्रति उचाट हो गया था। वह श्री कृष्ण की परम भक्त थी ।दिन - रात उनके नाम का सिमरन करती थी। लेकिन एक दिन उसका 8-10 सालका बेटा घर की छत से आंगन में गिर पड़ा । अपने खुन से लथपथ बेटे को देख कर को गोद में उठा कर वह बद्दहवास ही दौड़ पड़ी। उस समय उसके सिवाय घर

ANDHVISHWAAS अंधविश्वास

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 ANDHVISHVAAS - BLIND FAITH अंधविश्वास-  जब हम बिना सोचे समझे किसी रीति रिवाज या परम्परा को बिना किसी आधार के अपना लेते हैं। एक बार एक ऋषि को अपने आश्रम के पास एक बिल्ली का बच्चा मिला।‌ मुनि के आश्रम में वह बिल्ली का बच्चा बड़ा होने लगा। ऋषि जब भी ध्यान में बैठते तो वह बिल्ली का बच्चा उनके ऊपर चढ़ कर उनके ध्यान में विध्न डालता।  इस लिए ऋषि ने ध्यान पर बैठने से पहले अपने शिष्य से कहते कि  बिल्ली के बच्चे को  सामने पेड़ से बांध दो। अब उनका नियम बन गया था कि ध्यान पर बैठने से पहले बिल्ली को बांधना और फिर बाद में बिल्ली के बंधन को खोल देना ।  एक दिन अचानक ऋषि का देहांत हो गया। अब उसके शिष्य को गद्दी पर बैठाया गया। संयोग वश उस बिल्ली भी ऋषि के देहांत के अगले दिन भर गई। अब जिस शिष्य को गद्दी पर बैठाया गया उसे लगा कि यह कोई परम्परा शुरू ने शुरू की थी कि जब भी ध्यान पर बैठना है तो सामने पहले बिल्ली बंधी होनी चाहिए। अब आनन फानन में एक ओर बिल्ली का बच्चा लाया गया और उसे सामने के पेड़ के साथ बांधा गया।फिर नई गद्दी प्राप्त करने वाला शिष्य ध्यान पर बैठा। अब आने वाले समय में गुरु गद्दी संभालने वाले

UDDHAV GEETA उद्धव गीता

 UDDHAV GITA -  SHRI KRISHNA AUR UDDHAV SANVAD  उद्धव गीता श्री कृष्ण और उद्धव संवाद श्री कृष्ण के सखा रहे उद्धव ने कभी भी श्रीकृष्ण से कोई वरदान नहीं मांगा . श्री कृष्ण के गोलोक जाने का समय आया तो श्री कृष्ण उद्धव से कहने लगे मेरे अवतार काल में बहुत से लोगों ने मुझ से वरदान प्राप्त किया. लेकिन तुमने कभी भी कोई वरदान नहीं मांगा. मैं चाहता हूं कि तुम कुछ मांगों. उद्धव ने उसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं मांगा . वह कहने लगे कि प्रभु मेरे मन में महाभारत युद्ध  के घटनाक्रम से संबंधित कुछ शंकाएं हैं उनका समाधान चाहता हूं. श्री कृष्ण कहने लगे कि अर्जुन को कुरूक्षेत्र के युद्ध में जो ज्ञान दिया वह भगवद्गीता के नाम से जाना जाएगा लेकिन तुम को जो ज्ञान दूंगा वह उद्धव गीता के नाम से विख्यात होगा. उद्वव जी ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि सच्चा मित्र कौन है? सच्चे मित्र का धर्म क्या है?  श्री कृष्ण कहने लगे कि सच्चा मित्र वही है जो बिना मांगे ही विपत्ति में अपने मित्र कि हर संभव मदद करें. उद्वव ने श्री कृष्ण को टोकते हुए कहा कि माधव अगर मित्र को बिना मांगे मित्र की सहायता करनी चाहिए तो फिर आपने मि

SHIV RUDRASHTAKAM RAMCHRITMANAS शिव रूद्राष्टकम

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  SHIV RUDRASHTAKAM KI          RACHNA KIS NE KI शिव रूद्राष्टकम की रचना किस ने की   शिव रूद्राष्टकम् का वर्णन  तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है. उत्तर कांड में काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी को अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं जिसके अनुसार भगवान शिव उन्हें गुरु का अपमान करने के कारण शाप देते हैं और उनके गुरु ने तब उन्हें शाप से शीघ्र मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव की  हाथ जोड़ कर विनती की थी.  काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी कहने लगे कि पूर्व जन्म मेरा जन्म अयोध्या पूरी में हुआ.मैं शिव जी का सेवक और दूसरे देवताओं की निंदा करने वाला अभिमानी था.  अयोध्या में एक बार अकाल पड़ा और मैं विपत्ति का मारा उज्जैन चला गया और वहाँ शंकर जी की अराधना करने लगा. एक ब्राह्मण वेद विधि से शिवजी की पूजा करते लेकिन हरि निंदा करने वाले नहीं थे. वह मुझे पुत्र की भांति मानकर पढ़ते थे. उन्होंने ने मुझे शिव मंत्र दिया. मैं शिव मंदिर में जाकर मंत्र जपता. मैं हरि भक्तों से द्रोह करता था.   एक बार गुरु जी ने मुझे  शिक्षा दी कि ब्रह्मा जी और शिव जी भी श्री हरि के चरणों के प्रेमी है. तू उनसे द्रोह क

SHIV RUDRASHTAKAM शिव रूद्राष्टकम्

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 SHIV RUDRASHTAKAM             शिव रूद्राष्टकम्  शिव रूद्राष्टकम् का वर्णन  तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है. उत्तर कांड में काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी को अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं जिनमें भगवान शिव उन्हें गुरु का अपमान करने के कारण शाप देते हैं और उनके गुरु ने तब उन्हें शाप से शीघ्र मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव की  हाथ जोड़ कर विनती की थी.             ।।छंद।।  नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ।।  निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।  करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।  तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं ।मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।  स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दुक कंठे भुजंगा ।।  चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।।  मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।  प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं।अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।।  त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।।

MAA DURGA KE 32 NAAM

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Goddess Durga: मां दुर्गा के 32 नाम  नवरात्रि में या फिर प्रतिदिन माता का जो भक्त देवी माँ के 32 नामों के मंत्र का जाप करता है उसे कठिन समय में या विपत्ति और हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है.  1.ॐ दुर्गा 2. दुर्गर्तिशमनी 3.दुर्गापद्विनिवारिणी 4.दुर्गमच्छेदनी 5.दुर्गसाधिनी 6.दुर्गनाशिनी 7.दुर्गतोद्धारिणी 8.दुर्गनिहन्त्री 9.दुर्गमापहा 10.दुर्गमज्ञानदा 11.दुर्गदैत्यलोकदवानला 12.दुर्गमा 13.दुर्गमालोका 14.दुर्गमात्मस्वरूपिणी 15.दुर्गमार्गप्रदा 16.दुर्गमविद्या 17. दुर्गमाश्रिता 18., दुर्गमज्ञानसंस्थाना 19.दुर्गमध्यानभासिनी 20.दुर्गमोहा 21.दुर्गमगा 22.दुर्गमार्थस्वरूपिणी 23.दुर्गमासुरसंहंत्रि 24.दुर्गमायुधधारिणी 25. दुर्गमाङ्गी 26.दुर्गमता 27.दुर्गम्या 28. दुर्गमेश्वरी 29.दुर्गभीमा 30.दुर्गभामा 31. दुर्गमो 32. दुर्गोद्धारिणी महिषासुर के संहार के पश्चात सभी देवताओं ने मां दुर्गा की स्तुति की और माँ से विनती करने लगे कि कोई ऐसा उपाय बताऐ जो हर कठिन परिस्थिति से मुक्ति दिलाने वाला हो.  माँ दुर्गा ने अपने बत्तीस नामों की माला का उपदेश दिया जो भक्तों को विपत्ति और दुख और कष्ट से उबारने वाला है.

DAYALUTA - KINDNESS दयालुता की कहानी

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 DAYALUTA  - KINDNESS  की प्रेरणादायक कहानी  दयालुता एक ऐसा व्यवहार होता है जब व्यक्ति बिना किसी अपेक्षा के दूसरों की फिक्र या चिंता करते हैं या दया भाव दिखाते हैं।                  दयालु गुरु की कहानी Motivational story in hindi  एक बार एक राजा ने अपनी राजकुमार को गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेजा.राजा की इच्छा थी कि उसके गुरु राजकुमार के साथ राजकुमार की तरह व्यवहार करे नाकि एक सामान्य छात्र की तरह पढ़ाएं . लेकिन गुरु ने ऐसा करने से मना कर दिया. इस बात का राजा के मन में शूल रह गया कि गुरु ने उसकी बात नहीं मानी और राजा ने उसे अपना अपमान समझा . गुरुकुल में गुरु ने राजकुमार को उत्तम शिक्षा दी. राजकुमार ने शिक्षा समाप्त होने पर गुरु से गुरु दक्षिणा पूछी तो गुरु कहने लगे कि समय आने पर मैं ले लूंगा . जब राजकुमार शिक्षा पूरी कर राजमहल वापस आए तो राजा ने अपना अपमान का बदला लेने के लिए गुरु के आश्रम को राख में मिलाने की आज्ञा सैनिकों को दी. सैनिकों ने गुरु के आश्रम को राख में मिला दिया.उधर जब राजकुमार ने पता चला कि किसी ने उसके गुरु के आश्रम को राख में मिला दिया है तो उसने कसम खाई कि जिसने भी ऐसा

OM JAI JAGDISH HARE VISHNU JI KI AARTI

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OM JAI JAGDISH HARE AARTI ॐ जय जगदीश हरे आरती ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे।  भक्त  जनों   के  संकट   क्षण   में   दूर करे॥  जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।। प्रभु੦।।  सुख-संपत्ति घर आवे,  कष्ट मिटे तन का।।   ॐ जय जगदीश हरे    मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।। प्रभु੦।।  तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी।।   ॐ जय जगदीश हरे   तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी॥प्रभु੦।।  पारब्रह्म परेमश्वर,  तुम सबके स्वामी।।   ॐ जय जगदीश हरे   तुम करुणा के सागर ,तुम पालनकर्ता।। प्रभु੦।।  मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।।   ॐ जय जगदीश हरे   तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।। प्रभु੦।।  किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति।।   ॐ जय जगदीश हरे   दीनबंधु दु:खहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।। प्रभु੦।।  अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।।   ॐ जय जगदीश हरे   विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।प्रभु੦।।  श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।।   ॐ जय जगदीश हरे   तन- मन- धन ,  सब  कुछ है तेरा।।प्रभु ੦।।  तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।।   ॐ जय जगदीश हरे ALSO READ गणेश जी की आरती माँ लक्ष्मी जी की आरती रामायण जी की आरती आरती कुँज

TULSIDAS JI DOHE CHAUPAI

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तुलसीदास जी के दोहे चौपाई  श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि वरनउं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।  रामचरितमानस के प्रसिद्ध दोहे चौपाई श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भावभय दारुणं । नवकंज -लोचन, कंजमुख, कर-कंज, पद कंजारुणं ॥ राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरीं द्वार।  तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जौं चाहसि उजिआर॥  मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक। पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक॥  जाके प्रिय न राम बैदेही । तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि  परम  सनेही ।।  हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।  श्री रघुवीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।   ते मतिमंद जे तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।। काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। सब परहरी रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।  नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं। भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।  तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज। भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज॥  सिया राममय सब जग जानी,  करउ प्रणाम जोर जुग पानी।  दया धर्म का मूल है,पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोड़िये,जब तक घट में प्राण।। सकल सुगमंल दायक रघुनायक गुन गान। सादर सुनहिं ते तरहिं भव

MAA DURGA KE 108 NAAM WITH MEANING IN HINDI

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Goddess Durga: माँ दुर्गा के 108 नाम अर्थ सहित  माँ दुर्गा की अष्टोत्तरशतनामवली  का जाप करने से सुख - समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है. नवरात्रि में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है. माना जाता है नवरात्रि में मां दुर्गा अपने भक्तों के बीच में रहती है और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है.कहते हैं कि जो भक्त नवरात्रि में या फिर प्रतिदिन मां दुर्गा के 108 नामों का जाप करता है उसके रोग, कष्ट मां दूर कर उसकी मनोकामना पूर्ण करती है.  MATA RANI KE 108 NAAM WITH MEANING  1.सती  -अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली 2. साध्वी -आशावादी 3. भवप्रीता - भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली 4. भवानी -ब्रह्मांड में निवास करने वाली 5. भवमोचनी -  संसार के बंधनों से मुक्त करने वाली 6. आर्या -देवी 7. दुर्गा - अपराजेय 8. जया -विजयी 9. आद्य - शुरूआत की वास्तविकता 10. त्रिनेत्र - तीन नैत्रों वाली 11. शूलधारिणी -  करने वाली 12. पिनाकधारिणी - भगवान शिव का  त्रिशूल धारण करने वाली 13. चित्रा - सुरम्य, सुंदर  14. चण्डघण्टा - प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली  15. महातपा  - भारी तपस्या करने

BHGWAN VISHNU NARSIMHA AVTAR NARSIMHA JAYANTI KATHA

 नरसिंह जयंती : भगवान विष्णु ने वैशाख मास की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह अवतार लिया था। इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।  नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे. भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा करने और हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया था। हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र थे. हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को मुक्त करवाया था और हिरण्याक्ष का वध किया था. भगवान विष्णु ने जब वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तो हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या कर शक्तियां प्राप्त करने

PRAHLAD BHAKT KI KATHA

   श्री हरि विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा  हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भक्त प्रहलाद की कथा का वर्णन मिलता है.(Mythological Story of bhakt Prahlad)भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु के परम भक्त माना जाता है. प्रह्लाद महर्षि कश्यप और दिति के पौत्र थे. उनके पिता का नाम हिरण्यकश्यप और माता का नाम कयाधु था. उनके चाचा का नाम हिरण्याक्ष और बुआ का नाम होलिका था. प्रह्लाद जी के पुत्र का नाम विरोचन था। राजा बलि प्रह्लाद जी के पौत्र थे जिनसे भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन पग भूमि दान में मांगी थी और उनकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए उन्हें सुतल लोक प्रदान किया था।   हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के पार्षद थे. एक श्राप के कारण उन्हें दैत्य योनि में जन्म लेना पड़ा. दोनों भाई जन्म लेते ही बहुत बलशाली थे.  हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. भगवान विष्णु ने वाराह