HIRANYAKASHIPU KI KATHA हिरण्यकशिपु की कथा
हिरण्यकश्यप की कथा भागवत पुराण में आती है. दोनों भाई असुर थे.वह दोनों ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र थे.
दिति ने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया. प्रजापति कश्यप ने जो पहले उत्पन्न हुआ उसका नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे का हिरण्याक्ष रखा
हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को मुक्त करवाया था और हिरण्याक्ष का वध किया था.
हिरण्यकश्यप के राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर पाबंदी थी . क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष को मारा था . अपने भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु का बदला भगवान विष्णु से लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा
ब्रह्मा जी ने उसे कुछ और वरदान मांगने के लिए कहा .उसने वरदान मांगा कि "मैं ना से अस्त्र से मरु ना शस्त्र से","ना किसी पशु से मरे ना मनुष्य से", "ना दिन में मरे ना रात में" ,"ना घर के अंदर मरे ना घर के बाहर ". वरदान प्राप्त कर वह स्वयं को अमर समझने लगा और उसने तीनों लोकों को अपना अधिकार कर लिया. उसके राज्य में विष्णु भक्ति पर पाबंदी थी.
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही ब्रहम ज्ञानी था और विष्णु जी के भक्त था. हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किए कि वह विष्णु भक्ति बंद कर दें. उसने प्रहलाद के गुरु से कहा कि,साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से उसकी विष्णु भक्ति छुड़ावाने का प्रयास करो लेकिन प्रहलाद ने विष्णु भक्ति नही छोड़ी.
हिरण्यकश्यप ने बहुत बार प्रहलाद को मरवाना चाहा लेकिन हरि भक्त होने के कारण उसे मरवा ना पाया .उसने अपनी बहन होलिका जिसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि में नहीं जलेगी. उसे प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठने को कहा था. जब होलिका उसे अग्नि में लेकर बैैैठी तो विष्णु भक्त प्रहलाद का अग्नि कुछ ना बिगाड़ पाई. होलिका जिसे ना जलने का वरदान प्राप्त था. अग्नि में जलकर भस्म हो गई. इसलिए इस दिन को होलिका दहन किया जाता है.
हिरण्यकश्यप ने स्वयं अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया और कहने लगाकि जिसके बल पर तू मेरा अपमान करता है उसे बुला वो विष्णु कहा है? प्रह्लाद कहने लगा कि वो तो सर्वत्र विद्यमान है. हिरण्यकश्यप तमतमाते हुए कहने लगा कि क्या वह इस खम्बे में भी है?
प्रह्लाद ने कहा कि हां पिता जी वह इस खम्बे में भी है. हिरण्यकश्यप ने जैसे ही खम्बे पर प्रहार किया उस में से नरसिंह भगवान प्रकट हुए. उनका आधा शरीर मनुष्य का और आधा सिंह का था. नरसिंह भगवान ने राज भवन की दहलीज पर अपनी जांघों पर डाल कर अपने नखों से उसके सीने को चीर दिया.
इसके पश्चात भी भगवान का उग्र रूप शांत ना हुआ तो उनको शांत करने के लिए प्रह्लाद ने उनकी स्तुति की जिससे भगवान शांत हो गए और प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया.
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