BHGWAN VISHNU NARSIMHA AVTAR NARSIMHA JAYANTI KATHA

 नरसिंह जयंती : भगवान विष्णु ने वैशाख मास की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह अवतार लिया था। इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। 

नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे. भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा करने और हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया था।

  • हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र थे. हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को मुक्त करवाया था और हिरण्याक्ष का वध किया था.

भगवान विष्णु ने जब वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तो हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या कर शक्तियां प्राप्त करने के लिए वन में चला गया. उसने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा तो ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वरदान मांगने के लिए कहा.

 .उसने वरदान मांगा कि "मैं ना अस्त्र से मरु ना शस्त्र से"

"ना किसी पशु से मरे ना मनुष्य से", 

"ना दिन में मरे ना रात में" ,

"ना घर के अंदर मरे ना घर के बाहर ". ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया.

वरदान प्राप्त कर वह स्वयं  अमर समझने लगा और उसने तीनों लोकों को अपना अधिकार कर लिया. उसके राज्य में विष्णु भक्ति पर पाबंदी थी. उसने स्वयं को भगवान की उपाधि दे दी . उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का परम भक्त था. 

 उसने प्रह्लाद को  गुरु के पास शिक्षा के लिए भेजा. एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से कहा कि तुम ने जो अब तक जो सीखा है मुझे कोई  ज्ञान की बात सुनाओ. प्रह्लाद कहने लगाकि माया को त्याग कर श्री विष्णु का भजन करना चाहिए.

हिरण्यकश्यप को लगाकि शायद बच्चे को किसी ने बहका दिया है इसलिए उसने प्रह्लाद के गुरु को बुलाकर कहाकि इसे दैत्य कुल के अनुरूप शिक्षित करो. उन्होंने फिर से प्रह्लाद को शिक्षित किया.

हिरण्यकश्यप ने फिर से प्रह्लाद से ज्ञान के विषय में बात की तो उसने फिर से विष्णु भक्ति का ज्ञान दिया. हिरण्यकश्यप ने पूछा कि प्रह्लाद तुम को यह शिक्षा किसने दी. क्योंकि तुम्हारे गुरु का कहना है कि उसने तुमको ऐसा कोई उपदेश नहीं दिया.

प्रह्लाद कहने लगाकि भगवान विष्णु इस सृष्टि के पालक और उपदेशक है. उनके सिवाय ऐसा उपदेश कौन दे सकता है? 

 यह सुनकर हिरण्यकश्यप कहने लगाकि शत्रु का प्रेमी कुल का नाशक होता है इस लिए उसे मारने का आदेश दिया.

सैनिकों ने प्रह्लाद पर अस्त्र शस्त्र से प्रहार किया लेकिन विष्णु जी की कृपा से उसका कुछ नहीं बिगडा.

प्रह्लाद को हाथियों के आगे कुचलने के लिए फिंकवाया.

पर्वत की चोटी से फैंकने का आदेश दिया लेकिन श्री हरि की कृपा से प्रह्लाद बच गया.

हाथ पैर बांध कर समुद्र में फैंक दिया गया लेकिन फिर भी प्रह्लाद बच गया.

विषैले सांपों से डसवाया गया. उसके भोजन में विष मिलाया गया लेकिन प्रह्लाद वह भोजन भी पचा गया. 

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि में नहीं जलेगी. उसे प्रह्लाद को अग्नि  में लेकर बैठने को कहा था. जब होलिका उसे अग्नि में लेकर बैैैठी तो विष्णु भक्त प्रहलाद का अग्नि कुछ ना बिगाड़ पाई. होलिका जिसे ना जलने का वरदान प्राप्त था. अग्नि में जलकर भस्म हो गई. 

नरसिंह अवतार

हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रह्लाद को समाप्त करने का निश्चय किया और कहा कि जिसके बल पर तू मेरा अपमान करता है उसे बुला वो कहा है? प्रह्लाद ने कहा कि वह तो स्वर्त्र है. हिरण्यकश्यप कहने लगाकि क्या तेरा भगवान इस खम्बे में भी है? प्रह्लाद ने कहा कि हां इस खम्बे में भी है.
हिरण्यकश्यप ने जैसे ही खम्बे पर प्रहार किया तो उसमें से नरसिंह भगवान प्रकट हुए. उनका आधा शरीर मानव का और आधा सिंह का था.
उन्होंने हिरण्यकश्यप को राजभवन की दहलीज पर अपनी जांघों पर डाल कर अपने नखों से उसके सीने को चीर दिया.

हिरण्यकश्यप की मृत्यु का समाचार सुनकर ब्रह्मा जी, शिव जी , इंद्र आदि देवता पहुँचे और नरसिंह भगवान को शांत करने के लिए स्तुति करने लगे. लेकिन उनका क्रोध शांत ना कर पाएं.

माता लक्ष्मी भी उनके क्रोध को शांत नहीं पाई तो प्रह्लाद भक्त ने उनकी स्तुति की और उनका उग्र रूप शांत हो गया. 

भगवान विष्णु वाराह अवतार

भगवान विष्णु कपिल अवतार

भगवान विष्णु वामन अवतार

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