PEACHETAON KI KATHA
श्री हरि विष्णु के भक्त प्रचेताओं की कथा (Devotional story)
राजा पृथु के बाद उनके पुत्र विजिताश्व राजाधिराज हुए। इन्होंने अपने छ: भाइयों को अलग - अलग दिशाओं का राज्य सौंप दिया। राजा विजिताश्व को देव राज इंद्र ने अंतर्धान होने की शक्ति प्रदान की थी। इसलिए उनका एक नाम अंतर्धान भी था।
उनकी शिखंडिनी नाम की पत्नी से पावक ,पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। नभस्वती नामक स्त्री से हविर्धान नामक पुत्र हुआ जो बहुत साधु प्रकृति का था।हविर्धान के छः पुत्र बर्हिषद ,गय, शुक्ल, कृष्ण,सत्य और जितव्रत हुए।
उनमें से बर्हिषद यज्ञ पर यज्ञ कर देवताओं का पूजन करते रहते। उन्होंने समुद्र की कन्या शतद्रुति से विवाह किया। जिसने दस पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम प्रचेतस हुआ। बड़े होने पर जब पिता ने इन्हें पुत्र उत्पन्न करने के लिए कहा तो वे समुद्र तट पर तप करने चले गए
उन्हें समुद्र के समीप एक दिव्य सरोवर में भगवान शिव के दर्शन हुए. उन्होंने प्रचेताओं को उपदेश सहित योगादेश स्त्रोत बताया। इस स्त्रोत में भगवान विष्णु की वन्दना थी। प्रचेताओं ने समुद्र में कटिपर्यन्त जल में खड़े रहकर तप किया.
नारद जी ने प्रणेताओं के पिता बर्हिषद को राज कार्य छोड़ वन जाकर तप करने का उपदेश दिया। नारद जी ने अपने योग बल से राजा द्वारा किये गए बुरे कर्म दिखाये । नारद जी कहने लगे कि तुम्हारे यह पाप कर्म तुमे नरक में ले जाएंगे।
नारद जी ने राजा को पुरंजन की कथा सुनाई जिसके अनुसार कर्म फल नाश नहीं होते । मृत्यु के पश्चात भी उसका फल भोगना पड़ता है.
नारद से ज्ञान प्राप्त कर बर्हिषद अपने मंत्रियों को कहने लगे कि मैं वन में तप करने जा रहा हूं जब मेरे पुत्र आ जाएं तो उन्हें राज्य सौंप देना. बर्हिषद कपिल जी के आश्रम चले गए और वहां तप कर विष्णु पद को प्राप्त हुए.
उधर प्रचेताओं ने समुंदर में प्रवेश कर तप से भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए 10 हज़ार वर्ष तक तप किया उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और प्रचेताओं को वर मांगने को कहा और आशीर्वाद दिया कि संध्या के समय जो भी तुम्हारा ध्यान करेगा वह अपने बंधुओं और प्राणियों से प्रेम करने वाला होगा और उनके द्वारा की गई मेरी स्तुति करेगा उसको कीर्ति प्राप्त होगी .
भगवान विष्णु कहने लगे कि तुम्हें बड़ा प्रतापी और तपस्वी पुत्र प्रदान करता हूं जो कि ब्रह्मा जी के समान होगा और उसकी संतान से पृथ्वी भर जाएगी.
भगवान विष्णु कहने लगे कि एक समय प्रम्लोचा नामक अप्सरा ने कण्व ऋषि की तपस्या भंग कर दी और अप्सरा को एक कन्या उत्पन्न हुई जिसे वृक्षों के राजा सोम ने अपने पास रख लिया तुम लोग जहां से जाकर प्रम्लोचा की कन्या से शादी करो . गृहस्थ आश्रम व्यतीत कर तुम लोग मेरे लोक को प्राप्त हो जाओगे.
भगवान विष्णु ने वरदान देकर अपने लोक चले गए .ब्रह्मा जी के कहने पर वृक्षों के राजा ने मरिषा नामक कन्या को प्रचेताओं को सौंप दिया .उसी कन्या से पूर्व जन्म में भगवान शिव का अपमान करने वाले दक्ष फिर से उत्पन्न हुए.
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रक्षा के लिए दक्ष को प्रजापति बना दिया . प्रचेता पुत्र प्राप्ति के पश्चात फिर से भगवान विष्णु की आराधना करने के लिए घर छोड़कर वन चलें गए. वहां देवर्षि नारद से ज्ञान प्राप्त कर भगवान विष्णु के लोक को प्राप्त हूए.
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