PRAHLAD BHAKT KI KATHA

  श्री हरि विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा 

हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भक्त प्रहलाद की कथा का वर्णन मिलता है.(Mythological Story of bhakt Prahlad)भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु के परम भक्त माना जाता है.

प्रह्लाद महर्षि कश्यप और दिति के पौत्र थे. उनके पिता का नाम हिरण्यकश्यप और माता का नाम कयाधु था. उनके चाचा का नाम हिरण्याक्ष और बुआ का नाम होलिका था. प्रह्लाद जी के पुत्र का नाम विरोचन था।

राजा बलि प्रह्लाद जी के पौत्र थे जिनसे भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन पग भूमि दान में मांगी थी और उनकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए उन्हें सुतल लोक प्रदान किया था।

 हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के पार्षद थे. एक श्राप के कारण उन्हें दैत्य योनि में जन्म लेना पड़ा. दोनों भाई जन्म लेते ही बहुत बलशाली थे. 

हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को वश में कर लिया . हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था. उसका आदेश था कि कोई भी यज्ञ में देवताओं का भाग नहीं निकालेगा. देवता पृथ्वी तक ना पहुँच सके इसलिए हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया. भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को मुक्त करवाया था और हिरण्याक्ष का वध किया था.

भगवान विष्णु ने जब वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तो हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या कर शक्तियां प्राप्त करने के लिए वन में चला गया.

देवराज इंद्र ने हिरण्यकश्यप की अनुपस्थिति में दैत्यों पर आक्रमण कर दिया. इंद्र देव ने हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु का अपहरण कर इंद्र लोक लेकर जाने लगे तो नारदजी ने उसे रास्ते में रोक दिया. उन्होंने पूछा कि आपने कयाधु का अपहरण क्यों किया? 

इंद्र देव कहने लगे कि मुझे कयाधु से कोई विरोध नहीं है. यह गर्भवती है इसके गर्भ में हिरण्यकश्यप जैसे असुर की संतान हैं. इसकी संतान के जन्म लेने के पश्चात उसको मार दूंगा और इसे छोड़ दूंगा.

नारदजी कहने लगे कि इसके गर्भ में भगवान विष्णु का परम भक्त है तुम उसको नहीं मार सकते. यह सुनते ही इंद्रदेव ने क्षमा मांगी और अपने लोक चले गए. 

नारदजी कयाधु को अपने आश्रम ले गए. आश्रम में नारदजी ने गर्भवती कयाधु को भगवान विष्णु की भक्ति के संस्कार और उपदेश दिया. कयाधु के गर्भ में पल रहे शिशु पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने विष्णु भक्ति के संस्कार ग्रहण कर लिये. समय आने पर कयाधु ने अपने पुत्र को आश्रम में जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया.

नारद जी की कथा

हिरण्यकश्यप वरदान प्राप्त कर अपनी दैत्य नगरी वापस आ गया और वह वरदान प्राप्त कर स्वयं को अमर समझने लगा और तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया. हिरण्यकश्यप कयाधु और अपने पुत्र प्रह्लाद को अपने नगर में वापस ले आया.

उसने स्वयं को भगवान की उपाधि दे दी और भगवान विष्णु की उपासना पर पाबंदी लगा दी. उसने प्रह्लाद को  गुरु के पास शिक्षा के लिए भेजा. एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से कहा कि तुम ने जो अब तक जो सीखा है मुझे कोई  ज्ञान की बात सुनाओ. प्रह्लाद कहने लगाकि माया को त्याग कर श्री विष्णु का भजन करना चाहिए.

हिरण्यकश्यप को लगाकि शायद बच्चे को किसी ने बहका दिया है इसलिए उसने प्रह्लाद के गुरु को बुलाकर कहाकि इसे दैत्य कुल के अनुरूप शिक्षित करो. उन्होंने फिर से प्रह्लाद को शिक्षित किया.हिरण्यकश्यप ने फिर से प्रह्लाद से ज्ञान के विषय में बात की तो उसने फिर से विष्णु भक्ति का ज्ञान दिया. हिरण्यकश्यप ने पूछा कि प्रह्लाद तुम को यह शिक्षा किसने दी. क्योंकि तुम्हारे गुरु का कहना है कि उसने तुमको ऐसा कोई उपदेश नहीं दिया.

प्रह्लाद कहने लगाकि भगवान विष्णु इस सृष्टि के पालक और उपदेशक है. उनके सिवाय ऐसा उपदेश कौन दे सकता है? 

 यह सुनकर हिरण्यकश्यप कहने लगाकि शत्रु का प्रेमी कुल का नाशक होता है इस लिए उसे मारने का आदेश दिया.

सैनिकों ने प्रह्लाद पर अस्त्र शस्त्र से प्रहार किया लेकिन विष्णु जी की कृपा से उसका कुछ नहीं बिगडा.

प्रह्लाद को हाथियों के आगे कुचलने के लिए फिंकवाया.

पर्वत की चोटी से फैंकने का आदेश दिया लेकिन श्री हरि की कृपा से प्रह्लाद बच गया.

हाथ पैर बांध कर समुद्र में फैंक दिया गया लेकिन फिर भी प्रह्लाद बच गया.

विषैले सांपों से डसवाया गया. उसके भोजन में विष मिलाया गया लेकिन प्रह्लाद वह भोजन भी पचा गया.

होलिका का प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठना

हिरण्यकश्यप ने जब बहुत बार प्रहलाद को मरवाना चाहा लेकिन हरि भक्त होने के कारण उसे मरवा ना पाया .उसने अपनी बहन होलिका जिसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि में नहीं जलेगी. उसे प्रह्लाद को अग्नि  में लेकर बैठने को कहा था. जब होलिका उसे अग्नि में लेकर बैैैठी तो विष्णु भक्त प्रहलाद का अग्नि कुछ ना बिगाड़ पाई. होलिका जिसे ना जलने का वरदान प्राप्त था. अग्नि में जलकर भस्म हो गई. इसलिए इस दिन को होलिका दहन किया जाता है.

नरसिंह अवतार

हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रह्लाद को समाप्त करने का निश्चय किया और कहा कि जिसके बल पर तू मेरा अपमान करता है उसे बुला वो कहा है? प्रह्लाद ने कहा कि वह तो स्वर्त्र है. हिरण्यकश्यप कहने लगाकि क्या तेरा भगवान इस खम्बे में भी है? प्रह्लाद ने कहा कि हां इस खम्बे में भी है.
हिरण्यकश्यप ने जैसे ही खम्बे पर प्रहार किया तो उसमें से नरसिंह भगवान प्रकट हुए. उनका आधा शरीर मानव का और आधा सिंह का था. उन्होंने ने हिरण्यकश्यप को राजभवन की दहलीज पर अपनी जांघों पर डाल कर अपने नखों से उसके सीने को चीर दिया.

हिरण्यकश्यप की मृत्यु का समाचार सुनकर ब्रह्मा जी, शिव जी , इंद्र आदि देवता पहुँचे और नरसिंह भगवान को शांत करने के लिए स्तुति करने लगे. लेकिन उनका क्रोध शांत ना कर पाएं.

माता लक्ष्मी भी उनके क्रोध को शांत नहीं पाई तो प्रह्लाद भक्त ने उनकी स्तुति की और उनका उग्र रूप शांत हो गया. नरसिंह भगवान ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठा लिया और कहने लगे कि जानता हूँ कि तुम जैसे भक्त को किसी चीज की अभिलाषा नहीं है मेरे आशीर्वाद से तुम एक मन्वन्तर तक अपने पिता का राज्य संभालोगे और समस्त बंधनों से मुक्त हो कर मेरे धाम को प्राप्त करोगे. देवलोक में भी तुम्हारी कीर्ति का गान होगा. यह वर दे कर नरसिंह भगवान अंतरर्धान हो गए. 
पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें राज्य पद प्राप्त हुआ और बलशाली और ऐश्वर्य सम्पन्न राजा बने. भगवान का ध्यान करते हुए अंत में निर्वाण को प्राप्त हुए.


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