VINAMRATA विनम्रता
।।विनम्रता।।
एक बार एक राजा बहुत घमंडी स्वभाव का था . राजा अपनी जनता के सुख दुःख का ध्यान नहीं रखता था कि उनको कोई परेशानी तो नहीं है.
प्रजा भी राजा को सम्मान नहीं देती थी . यह बात राजा को बहुत अखरती थी और राजा अपमानित महसूस करता था.
एक दिन राजा शिकार खेलने वन में गया . वहाँ उन्हें जंगल में एक कुटिया दिखाई दी ? राजा अपने मंत्रि सहित उस कुटिया में चले गए. उस कुटिया में एक सिद्ध महात्मा थे. राजा ने मंत्री सहित अपना परिचय दिया .
महात्मा जी ने राजा के देख कर कहा कि लगता है कि कोई बात आपको परेशान कर रही है. आप उचित समझे तो आप अपनी समस्या मुझ से सांझा कर सकते हैं.
राजा ने सिद्ध महात्मा को कहा कि, " मेरी प्रजा मुझे उचित आदर - सम्मान नहीं देती, यह बात मुझे बहुत परेशान करती है ". क्योंकि राजा का सम्मान करना प्रजा का कर्तव्य होता है लेकिन मेरी प्रजा ऐसा नहीं करती.
महात्मा जी ने राजा के स्वभाव के बारे में सुना हुआ था . इसलिए उन्होंने ने राजा से कहा कि मैं आपकी समस्या समझ गया आप मेरे साथ चलिए.
महात्मा जी एक चट्टान के पास आकर रूक गए और राजा से कहने लगे कि एक पत्थर से चट्टान पर प्रहार करे.
राजा ने महात्मा के कहने पर ऐसा ही किया. लेकिन पत्थर चट्टान से टकरा कर नीचे गिर गया.
अब महात्मा ने राजा से कहा कि नीचे दरिया के तट से गीली मिट्टी लाकर आए. राजा दरिया से मिट्टी ले आया तो महात्मा ने कहा कि उससे चट्टान पर प्रहार करे.
राजा ने जैसे ही मिट्टी से चट्टान पर प्रहार किया मिट्टी चट्टान से चिपक गई.
महात्मा जी ने अब राजा को समझाया कि राजन् कोमलता को, विनम्रता को हर कोई जल्दी ग्रहण करता है और कठोरता को, उग्रता को सभी त्याग देना चाहते हैं.
अगर आप भी अपनी प्रजा से सम्मान चाहते हैं तो आप भी दरिया की मिट्टी की तरह बने ना कि कठोर पत्थर की तरह.
राजन् आपका आचरण आपके व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होता है. आपके कठोर स्वभाव के कारण ही आपकी प्रजा आपका तिरस्कार करती है आप अपने आचरण में गीली मिट्टी की तरह कोमलता, विनम्रता, धैर्य लाएंगे तो आपको प्रजा से आदर सम्मान मिलेगा.
महात्मा जी की शिक्षा से राजा ने अपने स्वभाव विनम्रता को धारण किया.
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