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Showing posts from February, 2022

KRISHAN AUR KUMHAR KATHA कुम्हार और श्री कृष्ण की कथा

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श्री कृष्ण अपनी बाल- लीला के समय बहुत नटखट थे। गोपियां मां यशोदा को उलाहना देती रहती कि नंद रानी तेरे लला ने मेरा मटका फोड़ दिया , तो कोई कहती मेरा माखन चुराकर लिया। एक बार श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आकर मैया यशोदा छड़ी लेकर श्री कृष्ण के पीछे भागी।  श्री कृष्ण ने जब मैया को क्रोधित होकर अपने पीछे आते देखा तो श्री कृष्ण मां से बचने के लिए दौड़ने लगे।   श्री कृष्ण दौड़ते हुए एक कुम्हार के पास पहुँचे और उससे कहने लगे कि मां गुस्से में छड़ी लेकर मुझे मारने आ रही है। श्री कृष्ण कुम्हार से कहने लगे कि आप मुझे छिपा लो।   कुम्हार को ज्ञान था कि श्री कृष्ण  स्वयं साक्षात ईश्वर के रूप है। कुम्हार अपने आप को धन्य समझ रहा था कि ईश्वर स्वयं मेरे पास आए हैं और मुझे अपनी बाल लीला दिखाने के लिए छिपाने के लिए कह रहे हैं।  कुम्हार ने श्री कृष्ण को एक बड़े से घड़े के नीचे छिपा दिया और अपना काम करने लगा। कुछ देर बाद मैया यशोदा वहां आई और कुम्हार से पूछने लगी , क्या आपने मेरे लला को जहां आते देखा है। कुम्हार कहने लगा कि ,"नंद रानी मैंने आपके लला को जहां आते नहीं देखा"। कुम्हार की बात सुनकर मैय

MATA PARVATI KI KATHA पार्वती माता

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 हिन्दू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा‌‌, विष्णु और शिव है। मां पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी है। मां पार्वती को उमा , गौरी,  सती, दुर्गा, काली आदि कई नामों से जाना जाता है। उनका निवास स्थान कैलाश पर्वत है।   पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती पड़ा। उनकी माता का नाम मैनावती था। माता पार्वती पूर्व जन्म में मां सती थी जो पति का अपमान सहन ना कर पाने के कारण अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ की अग्नि में कूद गई थी। सती मरते समय श्रीहरि से यह वरदान मांगा था कि उनकी प्रीति भगवान शिव के लिए जन्म - जन्म तक रहें . उसी समय तारक नाम का एक राक्षस हुआ उसने देवताओं को युद्ध में हरा दिया. वह अपने आप को अजर अमर समझता था. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि इस की मृत्यु शिवपुत्र द्वारा होगी. सती ने पार्वती के रूप में हिमाचल के घर में जन्म ले लिया .  जब नारदजी पर्वतराज हिमालय के घर गए तो उन्होंने नारदजी से अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा.  नारद जी ने कहा तुम्हारी पुत्री सारे जगत में पूज्य होगी .संसार की स्त्रियों उनका  नाम लेकर पतिव्रत रूपी तलवार की धार चढ़ जाएगी . नारद जी ने कहा इ

SHRI HARI VISHNU 108 NAAM

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SHRI HARI VISHNU KE 108 NAAM MANTAR  त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु  और शिव में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा गया है। ब्रह्मा जी सृजनकर्ता और भगवान शिव को संहारक माना जाता है।  भगवान विष्णु का नाम लेने के कष्ट दूर होते हैं। भगवान विष्णु ने सृष्टि और अपने भक्तों पर आये कष्टों का निवारण करने के बहुत से अवतार लिये इस लिए उनको तारणहार भी कहते हैं। भगवान विष्णु को भक्त वत्सल कहा जाता है। ध्रुव , प्रह्लाद , अजामिल , गजेंद्र भगवान विष्णु के भक्त हुए हैं जो विष्णु जी का नाम जपने पर जिनका उद्धार हुआ।   भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप करने से मनोकामना पूर्ति होती है कष्ट -बाधा दूर होते हैं ,घर में सुख समृद्धि और सौभाग्य आता है। इस लिए सच्ची श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु के नामों का जाप करना चाहिए। 1.ॐ श्री विष्णवे नम:     2.ॐ श्री परमात्मने नम: 3. ॐ श्री विराट पुरुषाय नम:  4.ॐ श्री क्षेत्र क्षेत्राज्ञाय नम: 5.ॐ श्री केशवाय नम:  6.ॐ श्री पुरुषोत्तमाय नम: 7.ॐ श्री ईश्वराय नम:  8.ॐ श्री हृषीकेशाय नम: 9. ॐ श्री पद्मनाभाय नम:  10.ॐ श्री विश्वकर्मणे नम: 11.ॐ श्री कृष्णाय नम:  12.ॐ श्री प्रजापतय

BHAGWAN SHIV JI KI KATHA

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भगवान शिव की कथा  Lord Shiva: भगवान शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है। भगवान शिव सौम्य और रूद्र दोनों रूपों के लिए जाने जाते हैं। त्रिदेवों ब्रह्मा‌‌ , विष्णु और शिव में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा गया है। ब्रह्मा जी सृजनकर्ता और भगवान शिव को संहारक माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है उनकी उत्पत्ति स्वयं हुई है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के मस्तिष्क से निकले तेज से उनकी उत्पत्ति हुई है इसलिए भगवान शिव हर समय  योग मुद्रा में रहते हैं।  भगवान शिव अपने भक्तों द्वारा की गई भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता हैं क्योंकि समुद्र मंथन के समय उन्होंने ने हलाहल विष पीकर सृष्टि को विनाश से बचाया था। उन्हें अर्धनारीश्वर , महादेव, रूद्र, शंकर, विषधर, उमापति, जटाधारी, भूतनाथ आदि कई नामों से जाना जाता है। शिव का स्वरूप सिरपर जटाजूट, गंगा जी, और चंद्रमा को धारण किए हुए है। गले में नाग और रुद्राक्ष की माला धारण किए हैं। शरीर पर बाघम्बर और चिता की भस्म लगाए हुए हैं शिव जी हाथ में

SHRI HARI VISHNU BHAGWAN विष्णु भगवान

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श्री हरि विष्णु भगवान   त्रिदेवों ब्रह्मा,  विष्णु और शिव में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा गया है। ब्रह्मा जी सृजनकर्ता और भगवान शिव को संहारक माना जाता है। भगवान विष्णु को नारायण , जगदीश, वसुदेव, अच्युत, सत्यनारायण आदि कई नामों से जाना जाता है। भगवान विष्णु का निवास स्थान क्षीरसागर है और वह शेषनाग पर शयन करते हैं। मां लक्ष्मी उनकी भार्या है ।  विष्णु जी अपने हाथों में शंख, चक्र ,गदा और पद्म धारण किए हुए हैं। पक्षी राज गरूड़ उनकी सवारी है। जब भी देवताओं, सृष्टि और उनके भक्तों पर कोई संकट आया तो भगवान विष्णु ने उसका निवारण के लिए बहुत से अवतार लिये।  भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को रसातल से निकाला था। नरसिंह अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की, कपिल अवतार लेकर मां को ज्ञान दिया, कच्छप अवतार लेकर समुद्र मंथन में मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थित किया। मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत पिलाया। श्री राम का अवतार लेकर रावण नाम के राक्षस का वध किया और  कृष्ण अवतार लेकर दुष्ट कंस का वध कर माता देवकी और पिता वसुदेव जी को कारागार से मुक्त करवाया था। भृगु ऋषि ने जब त

GAJENDRA MOKSHA KATHA गजेंद्र मोक्ष कथा

भगवान विष्णु के भक्त गजेन्द्र के मोक्ष की कथा  गजेंद्र मोक्ष की कथा भागवत पुराण में आती है जिसमें ग्राह और गजेंद्र के युद्ध का वर्णन है जिसमें गजेंद्र भगवान श्री हरि विष्णु की स्तुति करता है कि वह उसे ग्राह के चंगुल से मुक्त करवाएं ।  भगवान विष्णु उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए और उसे ग्राह से मुक्त करवाया था।  क्षीरसागर में त्रिकुट नामक दस हजार योजन ऊंचा पर्वत था। वहां महात्मा श्री वरूण देव का ऋतुमान नामक क्रीड़ा कानन था जिसके चारों ओर दिव्य वृक्ष लगे हुए थे। वहां पर एक शक्तिशाली गजेंद्र बहुत सी हथिनियों के साथ रहता था।  एक दिन गजेंद्र बहुत से हथियों के साथ वहां स्थित सरोवर पर पहुंचा। गजेंद्र की गंध को सूंघकर सिंह, सर्प, अजगर आदि हिंसक पशु डर के मारे भाग गए और उसकी कृपा अनुग्रह में भालू, गीदड़, बंदर, हिरण आदि छोटे पशुओं निर्भय होकर घूमने लगे। गजराज कमल पराग से मिश्रित जल को सूंघता हुआ जलाशय में प्रवेश कर अमृत के समान जल को पीने लगा। उसके पश्चात थकावट को दूर करने के लिए अपनी सूंड में जल भरकर अपनी देह पर डालने लगा और अन्य हाथियों के साथ जल क्रीड़ा करने में मग्न हो गया।  देव

SUMUDRA MANTHAN KATHA IN HINDI

समुद्र मंथन की कथा  समुद्र मंथन का वर्णन भागवत पुराण, विष्णु पुराण में आता है जिसके अनुसार अमृत की खोज के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन क्यों किया गया  एक बार ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान करने पर देवराज इंद्र को श्री हीन होने का श्राप दिया तो भगवान विष्णु ने शाप से मुक्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने की प्रेरणा दी.  ब्रह्मा जी ने देवताओं सहित भगवान विष्णु की स्तुति की जिसे सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। ब्रह्मा जी भगवान की स्तुति कर कहने लगे कि प्रभु देवताओं के कल्याण हेतु कोई विधान बताएं। भगवान विष्णु कहने लगे कि मैं ऐसा मार्ग बताऊंगा जिससे सब का कल्याण होगा। सर्वप्रथम आप दैत्यों से मैत्री कर लो क्योंकि इस समय दैत्य बलवान है और नीति यह ही कहती हैं कि कार्य सिद्धी के लिए शत्रु से भी मित्रता कर लेनी चाहिए।  आप लोग दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करें। मन्दराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को मथने की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल कर समुद्र मंथन करो।   देवताओं और दैत्यों का मिलकर समुद्र मंथन करना  सभी देवता दैत्यों

BHAGWAN VISHNU MOHINI AVTAR KATHA

भगवान विष्णु मोहिनी अवतार कथा : भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान करवाने के लिए लिया था मोहिनी अवतार  BHAGWAN VISHNU MOHINI AVTAR STORY/ भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार क्यों लिया/Mythological Story of mohini avtar/Hindu god story  पुराणों में भगवान विष्णु के 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है। उनमें से मोहिनी अवतार श्री हरि विष्णु का एक मात्र स्त्री अवतार है श्री हरि विष्णु ने मोहिनी अवतार देवताओं को अमृत पान करवाने के लिए लिया था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था। 2023 में मोहिनी एकादशी 1 मई दिन सोमवार को मनाई जाएगी। राजा बलि की कथा अमृत की प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए मित्रता कर ली। मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और वासुकि नाग को मथने की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।  समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भ

BHAGWAN VISHNU KACHHAP(KURMA)AVTAR KURMA JAYANTI KATHA

भगवान विष्णु कूर्मा अवतार: वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को कूर्म जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु समुद्र मंथन के समय कूर्म अवतार लेकर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत धारण कर समुद्र मंथन में सहायक बने थे।  2023 में कूर्म जयंती दिन शुक्रवार 5 मई को मनाई जाएगी।  वैशाख मास की पूर्णिमा को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु शरणागत वत्सल है । उन्होंने भक्तो की रक्षा के लिए बहुत से अवतार लिये। वाराह अवतार, नरसिंह अवतार, कपिल अवतार ,कच्छप अवतार । भगवान विष्णु के कच्छप अवतार को कूर्मा अवतार भी कहा जाता है भगवान विष्णु ने कूर्मा अवतार का मुख्य उद्देश्य मन्दराचल पर्वत अपनी पीठ पर उठा कर समुद्र मंथन में अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दैत्यों का सहयोग करना था. ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान करने पर देवराज इंद्र को श्री हीन होने का श्राप दिया तो भगवान विष्णु ने शाप से मुक्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने की प्रेरणा दी. अमृत की प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए मित्रता कर ली। मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और वासु

BHAGWAN SHIV KO NEELKANTH KYUN KAHTE HAI

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महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ. महाशिवरात्रि पर पढ़े  भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है ? भगवान शिव ने विष क्यों पिया?(Mythological Story lord Shiva ko Neelkanth kyun kaha jata hai) भगवान शिव त्रिदेवों में से एक है। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता, भगवान ब्रह्मा रचयिता और भगवान शिव विनाशक कहा जाता हैं। भगवान शिव को हम भोले नाथ, महादेव, रूद्र , अर्धनारीश्वर आदि कई रूपों में पूजते हैं। उनमें से भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है। भगवान शिव ने सृष्टि के कल्याण हेतु हलाहल नामक विष को पिया था। अमृत की प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओं ने मिलकर    समुद्र मंथन करने के लिए मित्रता कर ली। मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और वासुकि नाग को मथने की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।  समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न के साथ साथ हलाहल नामक विष भी निकला। यह ऐसा विष था जिसकी कोई औ

DEVSHAYANI EKADASHI 2023 DATE VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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देवशयनी एकादशी व्रत 2023 Thursday,29 june हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पदमा एकादशी या फिर देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु  चार माह तक क्षीरसागर में शयन करते हैं। आषाढ़ मास से लेकर कार्तिक मास 4 महीने तक के समय को चातुर्मास कहा जाता हैं ।भगवान विष्णु इन चार मास तक क्षीरसागर में शयन करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अपने लोक में लौटते हैं । भगवान विष्णु के शयन के कारण इन चार मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। देवशयनी एकादशी का महत्व (Significance of Devshayani Ekadashi) देवशयनी एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। इस एकादशी से विवाह आदि शुभ कार्य चार मास तक नहीं किए जाते। इस चातुर्मास में किए गए जप - तप पूजा पाठ , व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। देवशयनी एकादशी व्रत करने से सभी प्रकार के कष्ट और पापों से मुक्ति मिलती है। श्री हरि विष्णु व्रत करने वाले को समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करते हैं।  DEVSHAYANI EKADASHI VRAT KATHA (देवशयनी एकादशी व्रत कथा)  पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मांधाता नाम का एक सूर्यव

ATRI MUNI RAM STUTI

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रामचरितमानस अत्रि मुनि- राम स्तुति अत्रि मुनि द्वारा की गई स्तुति का वर्णन तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के अरण्य कांड में आता है. जब श्री राम , माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ 14 वर्ष के वनवास के दौरान जब अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे तो अत्रि मुनि ने प्रभु को आसान पर बैठाकर उनकी स्तुति की थी            ।। सोरठा।। प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि।  मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत।।           ।। छंद ।। नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।। भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।१।। निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ     मंदरं।। प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि  दोष  मोचनं।।२।। प्रलंब बाहु   विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय      वैभवं।। निषंग चाप सायकं। धरं   त्रिलोक   नायकं।।३।। दिनेश  वंश  मंडनं। महेश    चाप   खंडनं।। मुनींद्र  संत  रंजनं। सुरारि    वृंद    भंजनं।।४।। मनोज वैरि वंदितं। अजादि  देवक्ष सेवितं।। विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त      दूषणापहं।।५।। नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं  सतां  गतिं।। भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं।।६।। त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा:।। पतंति नो भवार्णव

RAM NAVAMI 2022 OCTOBER DATE

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RAM NAVAMI 2022-  TUESDAY 4 OCTOBER    राम नवमी का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है. इस दिन भगवान श्री राम का धरती पर अवतरण हुआ था। भगवान श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार है. हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि और शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि दोनों में नवमी तिथि का विशेष महत्व है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम ने राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में अवतार लिया था। इस दिन चैत्र मास की नवमी तिथि को श्री राम के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के बारे में मान्यता है कि लंका युद्ध के समय श्री राम ने शारदीय नवरात्रि के नौ दिन मां भगवती की पूजा की थी और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात दशमी के दिन लंका पति रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि दोनों ही मां दुर्गा को समर्पित है लेकिन दोनों का संबंध श्री राम से है। इस दिन भगवान श्र

MAGH PURNIMA 2022 माघ पूर्णिमा

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 MAGH PURNIMA 2022 FEBRUARY 16, WEDNESDAY माघ पूर्णिमा 2022 बुधवार 16 फरवरी  सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। माघ मास के अंतिम दिन की तिथि को माघी पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन  भगवान विष्णु की पूजा का महत्व है। माघी पूर्णिमा को पवित्र नदी में स्नान एवं व्रत, दान  का विशेष महत्व है। खासकर प्रयाग संगम पर स्नान करने का अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन देवलोक से देवतागण पृथ्वी पर आते है।  माघ माह में प्रयागराज में संगम के तट पर पूरे माह कल्पवास किया जाता है. इस दौरान गंगा स्नान और भक्ति भजन किया जाता है. भगवान विष्णु एवं मां गंगा की कृपा से पाप मिट जाते हैं, मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गलती भगवान विष्णु के चरणों के नीचे एक बिच्छू आ गया। बिच्छू ने  श्रीहरि के चरणों में डंक मार दिया लेकिन विष्णु जी के चरणों के नीचे आने से वह बिच्छू मर गया। भगवान विष्णु अपने चरणों के नीचे आए बिच्छू की मृत्यु का दुख था और डंक की अहसहनीय पीड़ा से भगवान विष्णु बैचेन थे।   बिच्छू के डंक का जह

MAKARDHWAJ KI KATHA मकरध्वज की कथा

 Hanuman jayanti 2023 Thursday , 6 April  हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमान जी कथा (Hanuman story) हनुमान जी की मुलाकात अपने पुत्र मकरध्वज से कैसे और कहां हुई । हनुमान जी श्री राम के परम भक्त थे। उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता है लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार वह मकरध्वज के पिता थे। जब लंका दहन के पश्चात हनुमान जी अपनी पूंछ की अग्नि बुझाने समुद्र पर गए तो उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज निकला। उसे एक मछली निगल गई और गर्भवती हो गई। उसी से मकरध्वज का जन्म हुआ। बाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका युद्ध के दौरान जब मेघनाद मारा गया तो रावण को अपने दो भाईयों अहिरावण और महिरावण  से जो कि तंत्र विद्या के महाज्ञानी थे उनकी मदद मांगी। दोनों भाई मां कामाक्षी के परम भक्त थे। रावण ने कहा कि अपने छल कपट से दोनों भाई राम लक्ष्मण का वध कर देना। जब वह सुबेल पर्वत पर पहुंचे तो दोनों राम और लक्ष्मण की सुरक्षा बहुत कड़ी थी । इसलिए उन तक पहुंचना बहुत कठिन था । इस लिए वह माया से विभिषण का स्वरूप धारण कर उनकी कुटिया में पहुंच गया। राम जी महिमा देखिए कि दोनों राक्षस सो रहे राम लक्ष्मण को शिला समेत उठा कर पालात लोक ले गए।

AJAMIL KI KATHA अजामिल की कथा

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 अजामिल की कथा कैसे नारायण नारायण जप से विष्णु लोक का अधिकारी बना। अजामिल नाम का एक धर्म परायण ब्राह्मण था। उसने एक दिन एक शूद्र को एक वेश्या के साथ रमण करते देखा तो अजामिल उस वेश्या के रूप सौन्दर्य पर आसक्त हो गया। वह उसके रूप जाल में फंस गया और हर पल उसे प्रसन्न करने में लगा रहता। उसके पिता ने उसे बहुत समझाया जब वह नहीं माना तो पिता ने उसे घर से निकाल दिया ।वह अपने संस्कारों को भूल गया। वेश्या की इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह चोरी, डकैती, लूटपाट करने लगा। इस प्रकार धन अर्जित करते करते वह बूढ़ा हो गया। उस स्त्री से उसकी नौ संतानें हुई और जब दसवीं संतान के लिए उसकी स्त्री गर्भवती थी तो कुछ संत उसके गांव में पधारे। संतों ने उसे उनके रहने और खाने का प्रबंध करने के लिए कहा।  अजामिल ने उन संतों के रहने खाने और रात्रि उसके घर ठहरने का पूरा प्रबंध कर दिया। संतों ने रात को उसके घर पर हरि नाम का कीर्तन किया। मानो उसे सुन कर उसके कुछ संस्कार जागृत हो गए हो। संत जब सुबह जाने लगे तो अजामिल कहने लगा कि मैं महापापी हूं और वेश्या के साथ रमण करता हूं इसलिए मुझे मेरे पिता ने भी घर से निकाल दिया था। संत

KRISHAN MURARI KYUN KAHA JATA HAI

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 श्री कृष्ण को मुरारी क्यों कहते हैं? कश्यप ऋषि और दिति का मुर नामक पुत्र था जो कि असुर था। उसने देवताओं के साथ युद्ध किया जिसमें देवता जीत गए और असुर बलहीन हो गए। दुर दैत्य मृत्यु पर विजय पाने के लिए ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वर मांगने के लिए कहा। मुर दैत्य ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वह जिस को भी छुए उस की मृत्यु हो जाए। वरदान के प्रभाव से वह स्वयं को बहुत शक्तिशाली समझने लगा।हर कोई उससे लड़ने से डरता था। उसने देवराज इन्द्र को भी स्वर्ग से भगा दिया और स्वयं स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।  वह मृत्यु के देवता यमराज के पास युद्ध करने के लिए गया। यमराज कहने लगे कि मुझ में तुम्हारे साथ युद्ध लड़ने की शक्ति नहीं है। तुमसे बैकुंठ निवासी श्री हरि ही युद्ध कर सकते हैं। मुर दैत्य श्री हरि के पास पहुंचा तो श्री हरि विष्णु कहने लगे कि मैं तुम जैसे कमजोर से युद्ध नहीं लडूंगा क्यों कि तुम्हारा दिल डर के मारे कांप रहा है। मुर दैत्य ने जैसे ही अपने दिल पर हाथ रखा तो उसका शरीर धरती पर गिर गया और सुदर्शन चक्र से प्रभु ने उसका सिर का

LORD KRISHNA CHALISA LYRICS IN HINDI

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श्री कृष्ण चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी          श्री कृष्ण चालीसा               ।। दोहा ।। बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम।।  पूर्ण इन्द्र, अरविंद मुख,  पिताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज।।              ।। चौपाई ।। जय यदुनंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय मेरौ॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भक्तन की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजयंती माला॥ कुण्डल श्रवण पीतपट आछे। कटि किंकणी काछन काछे॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥ मस्तक तिलक, अलक घुंँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥ करि पय पान, पुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो॥ मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला। भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥ सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मसूर धार वारि वर्षाई॥ लगत लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्ध

YOGINI EKADASHI 2023 DATE VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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 योगिनी एकादशी व्रत  14 JUNE 2023 हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन श्री हरि  विष्णु  की पूजा अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होता है।आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं । इस दिन लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए । योगिनी एकादशी व्रत का महत्व SIGNIFICANCE OF YOGINI EKADASHI  इस एकादशी के व्रत के करने से पापों का नाश होता है और पीपल काटने के पाप से भी मुक्ति प्राप्त होती है। किसी द्वारा मिले शाप से मुक्ति होती है। इस व्रत को करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष प्राप्त होता है ।  योगिनी एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से 88 सहस्त्र ब्राह्मणों के भोजन के बराबर पुण्य प्राप्त होता है और इस व्रत को करने से पाप नष्ट होते हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है इस व्रत का महत्व में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं के द्वारा मिले शाप से भी मुक्ति मिलती हैं।  आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष योगिनी एकादशी व्रत कथा YOGINI EKADASHI VRAT KATHA 

LALACH - GREED लालच

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        ।। लालच बुरी बला है।। लालच , लोभ , लालसा, लोलुपता एक ऐसी अवधारणा है जिसमें किसी चीज को बहुत अधिक पाने की चाह करते हैं।लालच करने से भले ही हमें पहले लाभ हो लेकिन अंत में लालच से नुकसान होता है।बहुत बार ऐसा होता है जब व्यक्ति ज्यादा के लालच में उसके पास जो पहले से बेहतरीन है उसे भी गंवा देते हैं। "लालच बुरी बला है"प्रेरणादायक कहानी  एक बार एक व्यक्ति को जंगल में एक संत मिले। उसने संत को प्रणाम किया और उसके पास जो खाने के लिए रोटियां थी उसमें से संत को भी खिलाई। संत ने उसे प्रसन्न होकर चार दीपक दिए और कहा की पहला दिया जला कर पूर्व दिशा की ओर जाना और जहां दीपक बुझ जाए वहां ज़मीन खोद लेना। तुमको वहां ज़मीन में गाड़ हुआ धन मिलेगा। ऐसा ही तुम पश्चिम दिशा में करना और उत्तर दिशा में करना। लेकिन भुल कर भी दक्षिण दिशा वाला दीपक जलाकर वहां मत जाना। संत उसे समझाकर आपने रास्ते चले गए। वह व्यक्ति सबसे पहले दीपक जलाकर पूर्व दिशा में गया और जहां दीपक बुझ गया वहां खोदने पर उसे चांदी के सिक्कों से भरा घड़ा मिला। जिससे वह बहुत उत्सुक हो गया कि चल कर देखता हूं कि पश्चिम दिशा में धन का कौन