AJAMIL KI KATHA अजामिल की कथा

 अजामिल की कथा कैसे नारायण नारायण जप से विष्णु लोक का अधिकारी बना।


अजामिल नाम का एक धर्म परायण ब्राह्मण था। उसने एक दिन एक शूद्र को एक वेश्या के साथ रमण करते देखा तो अजामिल उस वेश्या के रूप सौन्दर्य पर आसक्त हो गया। वह उसके रूप जाल में फंस गया और हर पल उसे प्रसन्न करने में लगा रहता।

उसके पिता ने उसे बहुत समझाया जब वह नहीं माना तो पिता ने उसे घर से निकाल दिया ।वह अपने संस्कारों को भूल गया। वेश्या की इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह चोरी, डकैती, लूटपाट करने लगा। इस प्रकार धन अर्जित करते करते वह बूढ़ा हो गया।

उस स्त्री से उसकी नौ संतानें हुई और जब दसवीं संतान के लिए उसकी स्त्री गर्भवती थी तो कुछ संत उसके गांव में पधारे। संतों ने उसे उनके रहने और खाने का प्रबंध करने के लिए कहा। 

अजामिल ने उन संतों के रहने खाने और रात्रि उसके घर ठहरने का पूरा प्रबंध कर दिया। संतों ने रात को उसके घर पर हरि नाम का कीर्तन किया। मानो उसे सुन कर उसके कुछ संस्कार जागृत हो गए हो। संत जब सुबह जाने लगे तो अजामिल कहने लगा कि मैं महापापी हूं और वेश्या के साथ रमण करता हूं इसलिए मुझे मेरे पिता ने भी घर से निकाल दिया था।

संत कहने लगे कि तुम अपनी होने वाली संतान का नाम नारायण रखना जिससे तेरा कल्याण अवश्य होगा। संत अजामिल को आशीर्वाद देकर चले गए।

अजामिल ने अपनी दसवीं संतान के उत्पन्न होने पर उसका नाम नारायण रखा। अजामिल हर पल अपने छोटे पुत्र के मोह में आसक्त रहता। उठते- बैठते, खाते - पीते हर पल हर पल अपने पुत्र नारायण का नाम पुकारता रहता।

जब अजामिल की मृत्यु का समय आया तो यमदूत उसे लेने आए तो पुत्र में आसक्ति के कारण वह नारायण! नारायण! पुकारने लगा। भगवान विष्णु का नाम सुनते ही भगवान विष्णु के पार्षद तत्काल उसके निकट आ गए और अजामिल को यमदूतों से मुक्त करवाया।

विष्णु पार्षदों के दर्शन कर उसका हृदय पवित्र हो गया। अजामिल ने प्रणाम कर उनकी वन्दना की फिर भगवान विष्णु के पार्षद अंतर्धान हो गए। अजामिल के हृदय में वैराग्य जागृत हो गया  और वह हरिद्वार चला गया ।वहां संतों संगति में ईश्वर में मन लगाया शीघ्र ही भगवान विष्णु के पार्षद उसके समीप आए और वह दिव्य विमान पर चढ़कर विष्णु लोक पहुंचे गया।

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