ATRI MUNI RAM STUTI

रामचरितमानस अत्रि मुनि- राम स्तुति



अत्रि मुनि द्वारा की गई स्तुति का वर्णन तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के अरण्य कांड में आता है. जब श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ 14 वर्ष के वनवास के दौरान जब अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे तो अत्रि मुनि ने प्रभु को आसान पर बैठाकर उनकी स्तुति की थी

           ।। सोरठा।।

प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि। 

मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत।।

          ।। छंद ।।

नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।।

भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।१।।


निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ     मंदरं।।

प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि  दोष  मोचनं।।२।।


प्रलंब बाहु   विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय      वैभवं।।

निषंग चाप सायकं। धरं   त्रिलोक   नायकं।।३।।


दिनेश  वंश  मंडनं। महेश    चाप   खंडनं।।

मुनींद्र  संत  रंजनं। सुरारि    वृंद    भंजनं।।४।।


मनोज वैरि वंदितं। अजादि  देवक्ष सेवितं।।

विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त      दूषणापहं।।५।।


नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं  सतां  गतिं।।

भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं।।६।।


त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा:।।

पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि  संकुले।।७।।


विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा।।

निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते  गतिं  स्वकं।।८।।


तमेकमभ्दुतं    प्रभुं। निरीहमीश्वरं      विभुं।।

जगद्गुरुं  च  शाश्वतं। तुरीयमेव         केवलं।।९।।


भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां    सुदुर्लभं।।

स्वभक्त कल्प पादपं। समं       सुसेव्यमन्वहं।।१०।।


अनूप  रूप   भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा      पतिं।।

प्रसीद मे नमामि  ते। पदाब्ज   भक्ति   देहि  मे।।११।।


पठंति ये स्तवं   इदं। नरादरेण      ते        पदं।।

व्रजंति  नात्र  संशयं। त्वदीय    भक्ति     संयुता:।।१२।।

              ।।दोहा।।

 बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि।
चरन  सरोरुह  नाथ  जनि कबहुँ  तजै मति   मोरि।। 


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