GAJENDRA MOKSHA KATHA गजेंद्र मोक्ष कथा

भगवान विष्णु के भक्त गजेन्द्र के मोक्ष की कथा 

गजेंद्र मोक्ष की कथा भागवत पुराण में आती है जिसमें ग्राह और गजेंद्र के युद्ध का वर्णन है जिसमें गजेंद्र भगवान श्री हरि विष्णु की स्तुति करता है कि वह उसे ग्राह के चंगुल से मुक्त करवाएं । भगवान विष्णु उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए और उसे ग्राह से मुक्त करवाया था।

 क्षीरसागर में त्रिकुट नामक दस हजार योजन ऊंचा पर्वत था। वहां महात्मा श्री वरूण देव का ऋतुमान नामक क्रीड़ा कानन था जिसके चारों ओर दिव्य वृक्ष लगे हुए थे। वहां पर एक शक्तिशाली गजेंद्र बहुत सी हथिनियों के साथ रहता था।

 एक दिन गजेंद्र बहुत से हथियों के साथ वहां स्थित सरोवर पर पहुंचा। गजेंद्र की गंध को सूंघकर सिंह, सर्प, अजगर आदि हिंसक पशु डर के मारे भाग गए और उसकी कृपा अनुग्रह में भालू, गीदड़, बंदर, हिरण आदि छोटे पशुओं निर्भय होकर घूमने लगे।

गजराज कमल पराग से मिश्रित जल को सूंघता हुआ जलाशय में प्रवेश कर अमृत के समान जल को पीने लगा। उसके पश्चात थकावट को दूर करने के लिए अपनी सूंड में जल भरकर अपनी देह पर डालने लगा और अन्य हाथियों के साथ जल क्रीड़ा करने में मग्न हो गया।

 देवयोग से उसी जलाशय में रहने वाले बली ग्राह ने उसका पांव पकड़ कर गहरे जल में खींच लिया। गजराज की सहायता करने के लिए अन्य हाथी हथिनियों ने उसे खींचा लेकिन कोई भी उसका सहायक ना हो सका।

 एक हज़ार वर्ष तक युद्ध चलता रहा कभी गजेंद्र ग्राह को खींच लेता तो कभी ग्राह गजेंद्र को पानी में अंदर की ओर खींच लेता। लेकिन ग्राह जल में रहने के कारण ज्यादा बलवान हो गया और गजराज निर्बल हो गया।

 लेकिन जब ग्राह ने गजेंद्र को गहरे पानी में खींच लिया तो  गजराज ने श्री हरि विष्णु का स्मरण किया। गजेंद्र कहने लगा कि आप के कारण देहधारियों में चेतना है और करूणा रूप में सबमें विद्यमान है।

 प्रभु आप मेरी रक्षा करने करे वाले,अज्ञानियों के अज्ञान को दूर करने वाले, आप अंतर्यामी और सबमें विद्यमान है आप ग्राह से मेरी रक्षा करें। हे नारायण मुझे मुक्त करने के लिए प्रकट हो।

 मैं इस ग्रह से छूट कर भी जीना नहीं चाहता मुझे इस मूढ़ योनि से छुड़ाने के लिए प्रकट हो। हे प्रभु! मैं अपनी शरण में आया हूं मेरा उद्धार करें।

 गजेंद्र की स्तुति सुनकर नारायण भगवान प्रसन्न हुए और गरूड़ पर बैठकर वहां पहुंचे जहां गज और ग्राह में युद्ध हो रहा था। भगवान नारायण को देखकर हाथी ने सूंड में एक कमल लेकर नारायण भगवान को नमस्कार किया । भगवान ने ग्राह से ग्रसित हाथी को सरोवर से खींचकर चक्र द्वारा ग्राह के मुंह को फाड़ दिया और गजेंद्र को बचा लिया ।

यह देखकर सभी देवताओं ने फूलों की वर्षा कर भगवान विष्णु नारायण की स्तुति की । ग्राह पूर्व जन्म में हूहू नामक गंधर्व था जो कि देवल ऋषि के श्राप के कारण ग्राह के रूप में पैदा हुआ था ।इस पाप से मुक्त होकर वह फिर से गंधर्व बन गया ।

गजेंद्र पूर्व जन्म में पाण्डय देश में इन्द्रद्युम्न नाम का विष्णु भक्त राजा था। एक बार जब राजा मलय पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो तब अगस्त्य मुनि वहां पहुंचे।

 तप में लीन राजा को अगस्त्य ऋषि के आने का आभास ना हुआ। अतिथि सत्कार के अभाव होने पर ऋषि ने राजा को पशु योनि में जन्म लेने का शाप दिया लेकिन भगवान की कृपा से इस योनि में भी उसे पूर्व जन्म का ध्यान बना रहा। भगवान विष्णु की कृपा से वह शाप मुक्त हो गया। विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त कर वह विष्णु जी का पार्षद बन गया और विष्णु लोक पहुंच गया। गजेंद्र मोक्ष की कथा सुनने से गजेंद्र की तरह संसार से छूट कर विष्णु लोक प्राप्त होता है।

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