MAKARDHWAJ KI KATHA मकरध्वज की कथा

 Hanuman jayanti 2023

Thursday , 6 April 

हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमान जी कथा (Hanuman story) हनुमान जी की मुलाकात अपने पुत्र मकरध्वज से कैसे और कहां हुई ।

हनुमान जी श्री राम के परम भक्त थे। उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता है लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार वह मकरध्वज के पिता थे। जब लंका दहन के पश्चात हनुमान जी अपनी पूंछ की अग्नि बुझाने समुद्र पर गए तो उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज निकला। उसे एक मछली निगल गई और गर्भवती हो गई। उसी से मकरध्वज का जन्म हुआ।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका युद्ध के दौरान जब मेघनाद मारा गया तो रावण को अपने दो भाईयों अहिरावण और महिरावण  से जो कि तंत्र विद्या के महाज्ञानी थे उनकी मदद मांगी।

दोनों भाई मां कामाक्षी के परम भक्त थे। रावण ने कहा कि अपने छल कपट से दोनों भाई राम लक्ष्मण का वध कर देना। जब वह सुबेल पर्वत पर पहुंचे तो दोनों राम और लक्ष्मण की सुरक्षा बहुत कड़ी थी । इसलिए उन तक पहुंचना बहुत कठिन था । इस लिए वह माया से विभिषण का स्वरूप धारण कर उनकी कुटिया में पहुंच गया।

राम जी महिमा देखिए कि दोनों राक्षस सो रहे राम लक्ष्मण को शिला समेत उठा कर पालात लोक ले गए।

विभिषण जी को जब सारे घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने हनुमान जी को उनके पीछे भेजा। हनुमान जी को पता चला कि अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण जी को बलि के लिए पाताल लोक ले गए हैं।

हनुमान जी को पाताल लोक के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार दिखा जिसका आधा शरीर वानर का और आधा शरीर मछली का था। उसने हनुमान को द्वार पर रोका और कहने लगा कि मुझे हराये बिना तुम भीतर प्रवेश नहीं कर सकते। 

हनुमानजी ने उसका परिचय पूछा। उसने बताया कि मेरा नाम मकरध्वज है। मैं एक मछली के शरीर से उत्पन्न हुआ हूं और हनुमान मेरे पिता है। हनुमान जी आश्चर्य चकित रह गए। हनुमान जी कहने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं तो आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं तो फिर मेरा पुत्र कैसे हो सकता है?

मकरध्वज ने हनुमान जी को अपने जन्म की कथा सुनाई। जब लंका दहन के पश्चात जब हनुमान जी अपनी पूंछ में लगी अग्नि को शांत करने समुद्र पर गए तब उनके शरीर से पसीना गिरा ।तब संयोग वश मेरी माता जोकि एक मछली थी। 

वह पसीने रूपी तेज मेरी मां के अंदर चला गया और वह गर्भवती हो गई। उनको मछुआरों ने पकड़ लिया और जब मछली का पेट काटा गया तो उसमें से उनको मैं मिला । मेरा आधा शरीर वानर का और आधा शरीर मछली का था। मछुआरे मुझे अहिरावण के पास ले गए। मेरे तेज को देख कर अहिरावण ने मुझे पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त कर दिया।

हनुमान जी कहने लगे कि मेरे स्वामी श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण की अहिरावण और महिरावण बलि देने वाले हैं। मैं उन्हें जहां से ले जाने आया हूं। मकरध्वज कहने लगा कि मैं भी अपने स्वामी अहिरावण के आदेश पर द्वार की सुरक्षा में खड़ा हूं इस लिए मैं आपको भीतर नहीं जाने दे सकता।

 मकरध्वज ने बहुत वीरता से हनुमान जी के साथ युद्ध किया लेकिन हनुमान जी के तेज़ के आगे टिक नहीं पाया।हनुमान मकरध्वज को अपनी पूंछ में बांध कर भीतर प्रवेश कर गये।

हनुमान जी ने मां कामाक्षी को प्रणाम किया और प्रार्थना की क्या मां आप सचमुच श्री राम और लक्ष्मण जी की बलि देना चाहती है।

मां कहने लगी कि अहिरावण और महिरावण दोनों दैत्य अधर्मी और अत्याचारी है। मां ने हनुमान जी को बताया कि अहिरावण ने मुझे प्रसन्न करने के लिए मंदिर में पांच दीपक जलाएं है। जब सारे दीपक एक साथ बुझाएं जाएंगे उस समय उनका अंत होगा।

हनुमान जी ने उत्तर दिशा में वराह मुख ,दक्षिण में नरसिंह मुख , पश्चिम में गरूड़, पूर्व में वानर और आकाश की तरफ हयग्रीव मुख धारण कर अपने पांचों मुखों से एक साथ सभी दीपक बुझा दिये। अब हनुमान जी ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया।

हनुमान जी फिर श्री राम और लक्ष्मण जी को चेतना में लाए तो उन्होंने हनुमान जी से प्रश्न किया कि तुम्हारी पूंछ में कौन बंधा है जिसका स्वरूप तुम्हारे जैसा है। हनुमान जी ने मकरध्वज को मुक्त करते हुए उस का परिचय दिया। श्री राम ने उसे पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया। श्री राम, लक्ष्मण और हनुमान जी फिर से धरती पर लौट आए।

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