SUMUDRA MANTHAN KATHA IN HINDI
समुद्र मंथन की कथा
समुद्र मंथन क्यों किया गया
एक बार ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान करने पर देवराज इंद्र को श्री हीन होने का श्राप दिया तो भगवान विष्णु ने शाप से मुक्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने की प्रेरणा दी.
ब्रह्मा जी ने देवताओं सहित भगवान विष्णु की स्तुति की जिसे सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। ब्रह्मा जी भगवान की स्तुति कर कहने लगे कि प्रभु देवताओं के कल्याण हेतु कोई विधान बताएं। भगवान विष्णु कहने लगे कि मैं ऐसा मार्ग बताऊंगा जिससे सब का कल्याण होगा।
सर्वप्रथम आप दैत्यों से मैत्री कर लो क्योंकि इस समय दैत्य बलवान है और नीति यह ही कहती हैं कि कार्य सिद्धी के लिए शत्रु से भी मित्रता कर लेनी चाहिए।
आप लोग दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करें। मन्दराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को मथने की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल कर समुद्र मंथन करो।
देवताओं और दैत्यों का मिलकर समुद्र मंथन करना
सभी देवता दैत्यों के पास गए उस समय दैत्यो के राजा बलि थे। देवताओं ने भगवान विष्णु द्वारा सुझाया समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने का सुझाव राजा बलि को दिया। बलि और अन्य दैत्यों को अमृत प्राप्त करने का सुझाव अच्छा लगा और उन्होंने ने देवताओं से मित्रता कर ली और समुद्र मंथन करने का काम शुरू हुआ।
सबसे पहले मन्दराचल पर्वत को लाने के लिए इंद्र देव और राजा बलि ने बहुत शक्ति लगाई लेकिन वह पर्वत को समुद्र तट तक लाने में विफल रहे। लेकिन भगवान विष्णु ने एक हाथ से उठा कर क्षीरसागर तक पहुंच गए।
भगवान विष्णु ने चतुराई से वासुकि नाग के मुख को पकड़ा तो दैत्य कहने लगे कि हम भी उच्च कुल से है ,वेद शास्त्र पढ़ें है । हम नाग की पूंछ को नहीं मुख को पकड़ेंगे । दैत्य और देवता दोनों ने अपने - अपने स्थान बांट कर समुद्र मंथन करने लगे।
लेकिन राहू मोहिनी की चतुराई को भांप गया और देवताओं के समान रूप धारण कर उनमें जा बैठा जिससे उसने अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्रमा को इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को बता दिया। भगवान विष्णु ने उसी क्षण उसका गला काट दिया जिससे अमृत उसके गले से नीचे ना उतरा। उसका सिर पृथ्वी पर गिर गया।
अमृत उसके मुख में पहुंच गया था इसलिए ब्रह्मा जी ने उसके सिर को अमरत्व प्रदान कर ग्रह बना दिया। जब सब देवताओं ने अमृत पी लिया तो भगवान विष्णु अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।
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