BHAGWAN VISHNU MOHINI AVTAR KATHA

भगवान विष्णु मोहिनी अवतार कथा : भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान करवाने के लिए लिया था मोहिनी अवतार 

BHAGWAN VISHNU MOHINI AVTAR STORY/ भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार क्यों लिया/Mythological Story of mohini avtar/Hindu god story 

पुराणों में भगवान विष्णु के 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है। उनमें से मोहिनी अवतार श्री हरि विष्णु का एक मात्र स्त्री अवतार है श्री हरि विष्णु ने मोहिनी अवतार देवताओं को अमृत पान करवाने के लिए लिया था।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था। 2023 में मोहिनी एकादशी 1 मई दिन सोमवार को मनाई जाएगी।

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अमृत की प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए मित्रता कर ली। मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और वासुकि नाग को मथने की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया। 

समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा 14 रत्न निकले

जब धन्वंतरि जो कि भगवान श्री हरि विष्णु का ही अंश थे अमृत कलश लेकर निकले तो दैत्यों ने उनके हाथों से अमृत कलश छीन लिया ।देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए श्री हरि विष्णु की शरण ली।

उधर दैत्यों में भी हर कोई अमृत पान करना चाहता था ।इसलिए दैत्यों में फूट पड़ गई। श्री हरि विष्णु ने सुन्दर स्त्री का मोहिनी रूप धारण किया जिसकी सुंदरता अवर्णनीय थी। भगवान विष्णु के मोहिनी रूप ने असुरों का मन मोह लिया जो असुर अमृत के लिए आपस में झगड़ रहे थे वे अब काम के वशीभूत हो गए।

उसके अलौकिक रूप सौन्दर्य को देख कर दैत्य उससे कहने लगे कि तुम कौन हो? यहां आने का तुम्हारा प्रयोजन क्या है ? हम कश्यप जी के पुत्र हैं और अमृत के लिए हमारा विवाद हो रहा है हम चाहते हैं कि यह अमृत तुम हम सब में बांट दो।

भगवान विष्णु ने अपने मधुर वचनों से उनको मोहित कर दिया।वह मोहिनी रूप में कहने लगे कि तुम मुझ व्यभिचारी स्त्री पर भरोसा ना करो क्योंकि विद्वान कामिनी स्त्रियों पर विश्वास नहीं करते।

भगवान विष्णु की बातों के मायाजाल में दैत्य फंस गए और जब दैत्य पूरी तरह से उनके वचनों से मोहित हो गए तो मोहिनी ने कलश अपने हाथों में पकड़ लिया। भगवान विष्णु मोहिनी रूप में कहने लगे कि मैं जैसे भी कार्य करूं आप लोगों को स्वीकार करना होगा। अगर तुम लोगों को मेरा वचन स्वीकार है तो ही मैं अमृत वितरण करूंगी।

दैत्य मोहिनी के रूप सौन्दर्य पर इतने आसक्त थे कि कहने लगे कि तुम जो भी कहती हो हमें मान्य होगा। फिर दैत्य और देवता अपने अपने आसन पर विराजमान हो गये।तब मोहिनी अमृत कलश लेकर वहां पहुंची। वह अपने रूप सौन्दर्य से देवताओं और दैत्यों दोनों को मोहित कर रही थी। मोहिनी रूप धारण किये भगवान विष्णु विचार करने लगे कि दैत्यों को अमृत पिलाने का अर्थ है सांप को दूध पिलाना।

भगवान विष्णु ने जैसे पूर्व निर्धारित किया था पहले देवताओं को अमृत पिला दिया। दैत्यों को भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में अपनी मीठी मीठी बातों से भाव विभोर कर दिया और कलश से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। दैत्य उनके मोहिनी रूप के प्रेम में इतने अनुरक्त थे कि सब कुछ देख कर भी कुछ कह ना सके।

लेकिन राहू मोहिनी की चतुराई को भांप गया और देवताओं के समान रूप धारण कर उनमें जा बैठा जिससे उसने अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्रमा को इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को बता दिया। भगवान विष्णु ने उसी क्षण उसका गला काट दिया जिससे अमृत उसके गले से नीचे ना उतरा। उसका सिर पृथ्वी पर गिर गया।

अमृत उसके मुख में पहुंच गया था इसलिए ब्रह्मा जी ने उसके सिर को अमरत्व प्रदान कर ग्रह बना दिया। जब सब देवताओं ने अमृत पी लिया तो भगवान विष्णु अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।

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