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Showing posts from March, 2022

RAM NAVAMI 2024 WISHES QUOTES

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RAM NAVAMI 2024 राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं   चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि दोनों में नवमी तिथि का विशेष महत्व है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम ने राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में अवतार लिया था। इस दिन चैत्र मास की नवमी तिथि को श्री राम के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के बारे में मान्यता है कि लंका युद्ध के समय श्री राम ने शारदीय नवरात्रि के नौ दिन मां भगवती की पूजा की थी और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात दशमी के दिन लंका पति रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि दोनों ही मां दुर्गा को समर्पित है लेकिन दोनों का संबंध श्री राम से है। BEST RAM NAVAMI WISHES/ QUOTES HAPPY RAM NAVAMI WISHES/ QUOTES/ IMAGES  in Hindi  राम नवमी काॅटस‌/ राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं/ शुभकामनाएं/ संदेश हिंदी में  रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।  नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥ नौमी तिथि मधुमास

RAM LAKSHMAN PARSHURAM SANVAD श्री राम लक्ष्मण और परशुराम जी संवाद

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श्री राम, लक्ष्मण परशुराम जी के संवाद  तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के बालकांड में  परशुराम और लक्ष्मण जी का संवाद आता है। श्री राम और लक्ष्मण जी ऋषि विश्वामित्र जी के साथ राजा जनक जी द्वारा आयोजित धनुष यज्ञ में मिथिला नगरी में पहुंचते हैं।  राजा जनक ने सीता जी के स्वयंवर आयोजित करते हैं और इसके लिए बहुत से राज्यों को निमंत्रण भेजा गया. ऋषि विश्वामित्र को भी राजा जनक के निमंत्रण भेजा था. श्री राम और लक्ष्मण जी उस समय ताड़का, सुबाहु और राक्षसों के वध के लिए श्री विश्वामित्र के आश्रम में थे. वह दोनों भाईयों को अपने साथ सीता जी के स्वयंवर में ले गए थे.  राजा जनक के पास भगवान शिव का पिनाक धनुष था । राजा जनक के अनुसार जो भगवान शिव के धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा उसको मेरी पुत्री सीता वरण करेंगी।  सभी राजा - महाराजा धनुष को उठाने का प्रयास करते हैं तो कोई भी धनुष को हिला भी नहीं पाया। राजा जनक तब क्रोधित होकर कहते हैं कि, क्या धरती वीरों से रहित हो गई है"?  राजा जनक का कठोर वचन सुनकर लक्ष्मण जी क्रोध में भरकर बोले कि अगर श्री राम मुझे आज्ञा दे तो मैं समस्त ब्रह्मा

TENALI RAMA KI KAHANIYAN तेनालीराम की कहानियां

 राजा कृष्णदेव के राज्य में एक बार एक अरब व्यापारी घोड़े का सौदा करने आया उसने घोड़े की नस्ल की इतनी तारीफ की कि राजा कृष्णदेव राय ने सभी घोड़े खरीद लिये। महाराजा के अस्तबल में इतने ज्यादा घोड़े रखने का प्रबंध नहीं था इसलिए राजा ने आम प्रजा को 3 महीने तक एक- एक घोड़े को रखने का आदेश दिया और कहा कि घोड़े के देखभाल के लिए आपको हर महीने एक सोने का सिक्का दिया जाएगा। तेनालीराम को भी एक घोड़ा दिया गया तेनालीराम बहुत ही चतुर और होशियार था उसने घोड़े के ले जाकर घर के पीछे एक छोटे से कमरे में बांध दिया और कमरे की खिड़की से उसे केवल थोड़ी सी घास खाने को देता। लेकिन बाकी प्रजा राजा कृष्णदेव राय की अमानत समझकर घोड़े को अपना पेट काटकर उसे भोजन करवाती . धीरे-धीरे 3 महीने व्यतीत हो गए तो सारी प्रजा राजा के घोड़े लेकर राजा कृष्णदेव राय के समक्ष प्रस्तुत हुई। लेकिन तेनालीराम घोड़े के बिना ही दरबार में पहुंच गया ।राजा ने जब उनसे पूछा कि आपका घोड़ा कहां है ? तेनालीराम कहने लगे कि महाराज वह घोड़ा बहुत ही गुस्सैल और खतरनाक हो गया है इसलिए मुझे घोड़े के समीप जाने में भय लगता है। राजगुरु कहने लगे कि तेनालीर

RAJA YAYATI KI KATHA HINDU MYTHOLOGICAL STORY

 राजा ययाति की कथा: राजा ययाति के पुत्र पुरू ने ली थी उनकी वृद्धावस्था  राजा ययाति चंद्र वंशी राजा नहुष के पुत्र थे। राजा नहुष के छः पुत्र -,याति, ययाति, सयाति , अयाति, वियाति और कृति थे। ययाति परम ज्ञानी था और राज्य कार्य से विरक्त था इसलिए उनके दूसरे पुत्र ययाति को उनके पश्चात राजा बनाया गया। ययाति को जब राज्य प्राप्त हो गया तो उसने अपने भाइयों को चारों दिशाओं की रक्षा की आज्ञा दी।  ययाति का वर्णन भागवत पुराण, महाभारत और मत्स्य पुराण में आता है। देवयानी, शर्मिष्ठा और राजा ययाति की कथा  राजा ययाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की कन्या देवयानी और राजा वृषपर्वा  की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया ।देवयानी से उनके यदु और तर्वसु नाम के दो पुत्र हुए और शर्मिष्ठा के द्रुह्यु, अनु और पुरू नामक तीन पुत्र हुए। एक बार राजा वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा अपनी सखियों के साथ वन में टहल रही थी। उसके साथ दैत्य गुरु शुक्राचार्य की कन्या देवयानी भी थी।वह दोनों टहलते हुए जलाशय पर पहुंचीं और स्नान करने लगी।   उसी समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ उधर से जा रहे थे तो दोनों ने शीघ्रता से अपने अपने वस्त्र पहन लिय

SHIV TANDAV STOTRA LYRICS IN SANSKRIT

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शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स इन संस्कृत SHIV TANDAV STOTRA KI RACHNA KIS NE AUR KAB KI ?(mythological Story of shiv tandav stotra) शिव तांडव की रचना रावण ने की थी। रावण प्रकांड विद्वान पंडित था। उसने संस्कृत में शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बोला था। रावण द्वारा भगवान शिव की स्तुति किए जाने के कारण शिव तांडव स्तोत्र को रावण तांडव भी कहते हैं। शिव ताण्डव स्तोत्र में 17 श्लोंको में भगवान शिव की स्तुति गाई है।  रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना क्यों की? एक समय रावण कुबेर से छीने हुए  पुष्पक विमान पर सवार होकर भ्रमण पर निकला । पुष्पक विमान मन की गति से चलने वाला विमान था। रावण जब कैलाश पर्वत से निकला तो विमान की गति रुक गई। जब रावण को पता चला कि भगवान शिव और माता पार्वती की इच्छा के बिना कोई भी वस्तु कैलाश पर्वत पर प्रवेश नहीं कर सकती तो रावण ने अभिमान में  कैलाश को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव उसका अहंकार देख अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिस कारण रावण का हाथ पर्वत के नीचे आ गया।   रावण के लिए वह पीड़ा असहनीय थी। तब रावण ने भगवान  शिव की तांडव स्तोत

RISHI JAMADAGNI KI KATHA ऋषि जमदग्नि की कथा

 JAMADAGNI RISHI KAUN THA  ऋषि जमदग्नि भृगु ऋषि वंशी ऋषि ऋचीक के पुत्र थे। जमदग्नि ऋषि सप्त ऋषियों में से एक माने जाते हैं। उनकी पत्नी का नाम रेणुका था जो कि राजा प्रसेनजित की पुत्री थी। उनके पुत्रों के नाम रूकमवान, सुखेण, वसु, विश्ववासन और परशुराम थे। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। ऋषि जमदग्नि जन्म कथा(RISHI JAMADAGNI JANAM KATHA)  गाधि नरेश की सत्यवती नाम की कन्या थी। जिसका विवाह ऋषि ऋचीक से हुआ। राजा गाधि का कोई पुत्र नहीं था । सत्यवती की माता ने कहा कि तुम्हारे पति का बहुत तेजस्वी है इसलिए तुम उनसे वरदान मांगों की तुम्हारा कोई भाई हो जाएं। उधर सत्यवती की भी संतान उत्पत्ति की इच्छा हुई।  ऋषि ऋचीक को पत्नी सत्यवती ने अपनी और उसकी माता दोनों की संतान उत्पत्ति की इच्छा ऋषि को बताई। महर्षि ऋचीक ने अपनी पत्नी सत्यवती के लिए ब्राह्मण मंत्रों से और सास के लिए क्षात्र मंत्रों से अभिमंत्रित कर पृथक - पृथक चरु पकाया।  ऋषि स्नान करने नदी पर गए तो उनकी सास ने अपनी पुत्री के चरु को उत्तम जान कर उसके चरु को स्वयं खा लिया। ऋषि ऋचीक को जब यह बात पता चली तो वह सत्यवती से कहने लगे कि अ

RAJA NIMI KI KATHA

RAJA NIMI KAUN THA  राजा निमि कौन थे   निमि मनु के पौत्र और राजा इक्ष्वाकु के पुत्र थे। राजा निमि ने एक यज्ञ करवाने के लिए अत्रि, अंगिरा, भृगु और गुरु वशिष्ट जी से प्रार्थना की । गुरु विशिष्ट कहने लगे कि मैं राजा इंद्र को यज्ञ कराने का वचन पहले ही देख चुका हूं। मैं इंद्र का यज्ञ करवा कर तुम्हारा यज्ञ को करवा दूंगा।  लेकिन राजा निमि सोचने लगी कि यह जीवन क्षणभंगुर है इसलिए यज्ञ के शुभ कार्य को रोकना उचित नहीं होगा ।इसलिए उन्होंने गौतम ऋषि को आमंत्रित कर यज्ञ कर्म आरंभ करवा दिया।  जब इंद्र का यज्ञ संपूर्ण करवा कर ऋषि विशिष्ट राजा निमि के पास पहुंचे तो वहां पहले से ही यज्ञ होते देख उन्होंने राजा निमि को शाप दिया कि तुमने शिष्य होकर भी अपने गुरु की प्रतीक्षा नहीं की । तुम ने मुझे यज्ञ करवाने का निमंत्रण देकर यज्ञ किसी अन्य से करवा कर मुझे अपमानित किया है।  मैं तुम्हें शाप देता हूं तुम्हारा शरीर पतित हो जाए । राजा निमि को लगाकर गुरु को मुझे ऐसा शाप नहीं देना चाहिए था और इंद्र से ज्यादा दक्षिणा मिलने के लोभ में उन्होंने मेरे यज्ञ का प्रस्ताव पहले स्वीकार नहीं किया।  इसलिए उन्होंने भी हाथ में

BHAGWAN VISHNU PARSHURAM AVTAR PARSHURAM AVTAR KI KATHA

 भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की कथा  परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है। उनका जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ। इस दिन को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। 2023 में परशुराम जयंती 22 अप्रैल को मनाई जाएगी। BHAGWAN VISHNU PARSHURAM AVTAR/ PARSHURAM JAYANTI/ PARSHURAM RAM NE MATA KA VADH KYUN KIYA परशुराम जी का जन्म महर्षि भृगु के पुत्र जमदग्नि के जहां मां रेणुका के गर्भ से हुआ। उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार माना जाता है। उन्हें रामभद्र , भृगुवंशी, भृगुपति भी कहा जाता है ‌ महर्षि भृगु ने उनके नामकरण संस्कार के समय उनका नाम राम रखा था। जब भगवान शिव ने परशु नाम का अस्त्र जिसे फरसा या कुल्हाड़ी कहते हैं प्रदान किया तो उनका नाम परशुराम प्रसिद्ध हुआ। महर्षि विश्वामित्र और ऋचीक ने उन्हें शिक्षा दी। भगवान शिव ने उन्हें श्रीकृष्ण का त्रेलोक्य विजेता कवच दिया। उन्होंने ने भीष्म ,द्रोण , और कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की। परशुराम जी द्वारा पिता के आदेश पर माता का वध करना परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी मात

SHIV JI VISHNU BHGWAN KE MOHINI ROOP PER MOHIT HUA भगवान शिव और भगवान विष्णु मोहिनी रूप

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भगवान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित क्यों हुए थे? भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार समुद्र मंथन के दौरान लिया था । जब धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो दैत्यों ने उनसे कलश छीन लिया। देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली। भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण कर दैत्यों का मन मोह लिया। दैत्य स्वयं मोहिनी से कहने लगे कि सुंदरी तुम हम सब में अमृत वितरण कर दो।   विष्णु मोहिनी रूप में कहने लगे कि मैं जैसे भी कार्य करूं आप लोगों को स्वीकार करना होगा। अगर तुम लोगों को मेरा वचन स्वीकार है तो ही मैं अमृत वितरण करूंगी। दैत्य मोहिनी के रूप में इतने आसक्त थे कि उसने अमृत देवताओं को पिला दिया लेकिन वे कुछ बोल ही नहीं पाये।   जब भगवान शिव को सूचना मिली कि भगवान विष्णु ने देवताओं को मोहिनी धारण कर अमृत पिलाया है और उन्होंने भगवान के मोहिनी रूप की प्रशंसा सुनी तो विष्णु जी से मिलने माता पार्वती के साथ गए।   भगवान शिव ने विष्णु जी की स्तुति की और कहने लगे कि मैं आपके मोहिनी रूप के दर्शन करना चाहता हूं ।जिसे देख कर दैत्य अमृत पान करना भूल गए थे।  भगवान विष्णु कहने लगे कि जब दैत्यों ने धनवंतरी से अमृत

KAMIKA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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कामिका एकादशी व्रत कथा महत्व  कामिका एकादशी 2023 13 July  हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है।  हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। श्रावम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका या पवित्रा एकादशी कहते हैं इस दिन  भगवान विष्णु  की पूजा करनी चाहिए । कामिका एकादशी  चार्तुमास  की दूसरी एकादशी होती है। Significance of Kamika Ekadashi(कामिका एकादशी महात्म) कामिका एकादशी व्रत का महात्म भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था जो ब्रह्मा जी ने नारदजी को बताया था। ब्रह्मा जी ने नारद जी को बताया कि काशी, गंगा और पवित्र नदियों पर स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वही फल कामिका एकादशी व्रत धारण करने वाले को मिलता है सूरज और चंद्र ग्रहण के समय कुरूक्षेत्र में स्नान करने से जैसा फल प्राप्त होता है वैसा ही इस व्रत को करने से मिलता है। इस व्रत को करने से मनोकामना पूर्ण होती है ।ब्रह्म हत्या के दोष का निवारण होता है, पापों से मुक्ति होती है ।इस एकादशी की कथा सुनने से भी वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य स्वर्ग लोक में जाता है। इ

SWAMI VIVEKANANDA QUOTES IN HINDI

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स्वामी विवेकानंद के सुविचार हिन्दी में  निंदा के डर से लक्ष्य ना छोड़े । लक्ष्य मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है।  एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकरें खाने के बाद ही होता है। जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते। परेड में पीछे मुड़ बोलते ही पहला आदमी आखरी और आखरी आदमी पहले नंबर पर आ जाता है ।जीवन में कभी आगे होने का घमंड और आखरी होने का गम ना करें ।पता नहीं कब जिंदगी बोल दे: पीछे मुड़ जो कुछ भी तुमको कमज़ोर बनाता है- शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो। धैर्यवान व्यक्ति सब कुछ हासिल कर पाता है ।इसलिए हिम्मत मत हारिए, कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखिये। जैसा तुम सोचोगे, वैसे तुम बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे। जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। रफ्तार दुगुनी हो जाती है जब जिंदगी दाँव पर लग जाती हैं । सच को कहने के हज़ारों तरीके हो सकते हैं और फिर भी सच तो वही रहता है। अपना जीवन बदलना चाहते हो तो हर दिन अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें। बुरी बात ये है

RAJA AMBARISH KI KATHA

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भगवान विष्णु के भक्त राजा अम्बरीष की कथा  राजा अम्बरीष राजा नाभाग के पुत्र थे। वह सात द्वीपों के राजा थे। वह बहुत ही ब्रह्मज्ञानी और विष्णु भक्त थे। वह भगवान विष्णु की कथाएं सुनते और मंदिरों में दर्शन करने जाते। विष्णु भक्ति के आगे वह घर, स्त्री, पुत्र, धन धान्य सब कुछ तुच्छ समझते थे।  एक बार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने साल भर पत्नी सहित एकादशी का व्रत रखा। कार्तिक मास में व्रत जब समाप्त हुआ तो उन्होंने तीन दिनों तक उपवास किया। विष्णु भगवान का पूजन किया। ब्राह्मणों को साठ हजार गोओं का दान दिया। संत महात्माओं को दान दिया और उन्हें भोजन करवाकर संतुष्ट किया। राजा अम्बरीष जब ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात पारण करने लगे तो उसी समय दुर्वासा ऋषि अतिथि के रूप में वहां आ गए। राजा अम्बरीष ने दुर्वासा ऋषि का पूजन और स्वागत किया और उन्हें भोजन के लिए विनती की। दुर्वासा ऋषि कहने लगे कि मैं पहले यमुना नदी में स्नान कर भोजन करूंगा। दुर्वासा ऋषि स्नान करने चले गए। उधर द्वादशी केवल कुछ मुहुर्त ही रह गई जिस मुहुर्त में पारण  करना आवश्यक था , नहीं तो राजा का व्रत निष्फल हो जाता। रा

MATSYA AVTAR KATHA मत्स्य अवतार कथा

 भगवान विष्णु त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक है। भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा जाता हैं। जब भी सृष्टि खतरे में होती है भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उसका उद्धार किया है। मत्स्यावतार भगवान विष्णु के दश अवतारों में प्रथम अवतार है। भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार हयग्रीव दैत्य के वध लिए लिया था जिसने वेदों को चुरा समुद्र में छिपा दिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लेकर वेदों को पुनः प्राप्त किया और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। हयग्रीव ने जब वेदों को चुराने के कारण सृष्टि में अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैल‌ गया उस समय भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और वेदों की पुनः प्राप्ति के लिए मत्स्यावतार लेकर हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। मत्स्यावतार कथा   द्रविड़ देश में सत्यव्रत नाम का एक राजा धर्मात्मा और विष्णु भक्त राजा था ।अपना मन भगवान विष्णु के चरणों में लगाकर विषयों को त्याग कर दिया था । एक दिन राजा जब कृतमाला नदी में स्नान कर हाथ में जल लेकर तर्पण कर रहे थे तो उनकी अंजलि में एक मछली आ गई ।राजा ने जैसे ही मछली को वापस छोड़ना चाहा मछली ने राजा से कहा कि, "राजन! मैं

KRISHNA STORY IN HINDI

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श्री कृष्ण की कहानी  श्री कृष्ण हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता हैं.श्री कृष्ण  भगवान विष्णु  के आठवें अवतार माने जाते है. श्री कृष्ण को दार्शनिक, कर्मयोगी, राजनीतिज्ञ और युग पुरुष कहा जाता है.  श्री कृष्ण का वर्णन भागवत पुराण, महाभारत, ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि में किया गया है।  श्री कृष्ण को बाँकेबिहारी, गिरधारी, मुरारी मोर मुकुट धारी देवकीनदंन, यशोदानंदन, वसुदेव, नंदलाल, गोविन्द, गोपाल, मुरारी , लड्डू गोपाल , कुंजबिहारी कई नामों से पुकारते है .   श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था.  इस लिए इस तिथि को ‌‌कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है. कृष्ण का माँ देवकी और वासुदेव के पुत्र थे।उनका जन्म कंस के कारागार में हुआ.  देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवां पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देगें, इस प्रकार उन्होंने ने देवकी की जान बचा ली।  आठवीं संतान श्री कृष्