MAHASHIVRATRI VRAT KATHA

महाशिवरात्रि व्रत कथा हिन्दी में 


महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ महाशिवरात्रि पर्व के दिन माना जाता है कि भगवान शिव और माँ पार्वती का शुभ विवाह हुआ था। पुराणों में महाशिवरात्रि की एक और कथा का उल्लेख मिलता है।

महाशिवरात्रि की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। उस शिकारी ने एक साहूकार से कर्ज लिया था। परन्तु कर्ज समय पर ना चुका पाने के कारण साहूकार ने उसे एक शिवमठ में बंधक बना दिया। था। 

 देवयोग से उसे जिस दिन बंधक बनाया उस दिन महाशिवरात्रि थी और उस शिवमठ में साहूकार ने शिव पूजा का आयोजन किया था। शिकारी ने भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को ध्यान से सुना।

पूजा समाप्त होने के पश्चात साहुकार ने शिकारी को अपने पास बुलाया और जल्दी ऋण चुकाने का वचन लेकर उसे मुक्त कर दिया। 

फिर शिकारी वन में शिकार करने चला गया । शिकार खोजते -खोजते उसे रात हो गई लेकिन शिकार नहीं jमिला। उस ने उस दिन उसी वन में रात बिताने की सोची । शिकारी जंगल में जलाशय के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया।

संयोगवश उस बेलपत्र के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग वृक्ष से गिरे  बेलपत्रों से पूरी तरह ढक चुका था।

 शिकारी इस बात से अनभिज्ञ था। विश्राम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ शाखाएं तोड़ीं तो कुछ बेलपत्र की पत्तियां नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गई।

शिकारी भूख- प्यास से व्याकुल उसी पेड़ पर बैठा रहा अनजाने में  शिकारी का व्रत हो गया।

 शिकारी को एक हिरणी दिखाई  दी। जोकि गर्भिणी थी। हिरणी जलाशय पर पानी पीने के लिए आई थी। 

शिकारी ने हिरणी को मारने की धनुष पर जैसे ही तीर चढ़ाया  हिरणी विनय करने लगी कि मैं गर्भ से हूं। शीघ्र ही बच्चे को जन्म देने वाली हूं । तुमे एक साथ दो जीवों की हत्या का पाप लगेगा। शीघ्र ही मैं अपने बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी फिर आप मेरा शिकार कर लेना।

 उसकी बात सुनकर‌ शिकारी ने तीर नहीं चलाया और गर्भिणी हिरणी को जाने दिया। धनुष और तीर वापिस रखते समय पुनः कुछ बिल्व पत्र टूटकर शिवलिंग पर जा गिरे।  इस तरह अनजाने में ही शिकारी की प्रथम प्रहर की पूजा पूर्ण हो गई। 

कुछ समय पश्चात एक अन्य हिरणी वहां से गुजरी तो शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ाकर हिरणी की ओर निशाना लगाया।

हिरणी यह देखकर शिकारी से विनय करने लगीकि  मैं अभी ऋतु से निवृत्त हुई हूं। मैं कामातुर विरहिणी हूं । मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने इस हिरणी की विनय सुनकर उसे भी जाने दिया।  

उस समय रात्रि का आखिरी प्रहर था और  इस बार भी उसके धनुष रखते समय कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे।इस प्रकार शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजन प्रक्रिया भी पूर्ण हो गई। 

 इसके पश्चात तीसरी हिरणी आई जो अपने बच्चों के साथ वहां से गुजर रही थी। शिकारी ने धनुष उठाकर फिर निशाना साधा। जैसे ही शिकारी तीर को छोड़ने वाला था उसी क्षण हिरणी कहने लगी कि मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंपकर अभी लौट आऊंगी। कृप्या मुझे अभी जानें दो। शिकारी इस बार हिरणी से कहने लगा कि इस से पहले मैं दो हिरणियों  छोड़ चुका हूं। इसलिए मैं तुम्हें नहीं जाने दे सकता।

हिरणी शिकारी से विनय करने लगी और कहने लगी कि मैं वापिस आने का वचन देती हूं। शिकारी के मन में हिरणी के प्रति दया आ गई और उसने हिरणी को बच्चों सहित जाने दिया। 

इस बार भी अनजाने में कुछ बेल की पत्तियां टूटकर शिवलिंग पर गिर पड़ी। सुबह की पहली किरण के समय उसे एक हिरण दिखाई दिया।

 शिकारी ने इस बार भी अपना तीर धनुष पर चढ़ा लिया। उसी समय हिरण ने कहा कि अगर तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों का शिकार किया है तो मेरा भी शिकार कर लो । मैं उन हिरणियों का पति हूं और अगर यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे एक बार उनसे मिलकर आने दो।  शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया। 

सूर्य निकल आया था। शिकारी से अनजाने शिवरात्रि के दिन व्रत, रात्रि-जागरण, सब प्रहर की पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी की थी। भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसे इसका फल तुरंत प्राप्त हुआ। 

शिकारी का मन निर्मल हो गया। कुछ समय पश्चात हिरण‌ अपने संपूर्ण परिवार के साथ शिकारी के समक्ष आ गया ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके। लेकिन शिकारी का मन अनजाने में किए गए पूजन से पवित्र हो गया था उसने सभी को जाने दिया।

शिकारी द्वारा महाशिवरात्रि के दिन पूजन की विधि पूर्ण करने के कारण उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। शिवगण शिकारी को लेकर शिवलोक आ गए।

भगवान शिव ने जैसे आपने शिकारी को मोक्ष प्रदान किया उसी प्रकार सभी भक्तों पर भी अपनी कृपा बनाये रखना। भगवान शिव की कृपा से यही शिकारी त्रेता युग में भगवान राम के मित्र निषादराज गुह हुए।निषादराज निषादों के राजा का उपनाम है। वह ऋंगवेरपुर के राजा हुए और उनका नाम गुहराज निषादराज था। 

Also Read 

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

शिव स्तुति।        शिव चालीसा      शिव आरती

शिव रूद्राष्टकम।   शिव पार्वती विवाह कथा।                         

सती माता की कथा                         

भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप की कथा

Comments

Popular posts from this blog

BAWA LAL DAYAL AARTI LYRICS IN HINDI

MATA CHINTPURNI CHALISA LYRICS IN HINDI

RADHA RANI KE 28 NAAM IN HINDI