MATSYA AVTAR KATHA मत्स्य अवतार कथा

 भगवान विष्णु त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक है। भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा जाता हैं। जब भी सृष्टि खतरे में होती है भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उसका उद्धार किया है।

मत्स्यावतार भगवान विष्णु के दश अवतारों में प्रथम अवतार है। भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार हयग्रीव दैत्य के वध लिए लिया था जिसने वेदों को चुरा समुद्र में छिपा दिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लेकर वेदों को पुनः प्राप्त किया और ब्रह्मा जी को सौंप दिया।

हयग्रीव ने जब वेदों को चुराने के कारण सृष्टि में अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैल‌ गया उस समय भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और वेदों की पुनः प्राप्ति के लिए मत्स्यावतार लेकर हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की।

मत्स्यावतार कथा 

 द्रविड़ देश में सत्यव्रत नाम का एक राजा धर्मात्मा और विष्णु भक्त राजा था ।अपना मन भगवान विष्णु के चरणों में लगाकर विषयों को त्याग कर दिया था । एक दिन राजा जब कृतमाला नदी में स्नान कर हाथ में जल लेकर तर्पण कर रहे थे तो उनकी अंजलि में एक मछली आ गई ।राजा ने जैसे ही मछली को वापस छोड़ना चाहा मछली ने राजा से कहा कि, "राजन! मैं आप की शरण में आई हूँ,मेरी रक्षा करें"।

नदी के जीव मुझे बहुत तंग करते हैं। साधु पुरुष शरण में आने वालों का त्याग नहीं करते ।इसलिए आप मुझे अपने पास रख ले। राजा ने मछली की व्यथा सुनकर उसे अपने कमंडल में डाल कर वापिस आ गये।

 रात भर में मछली का आकार बढ़ गया। जब प्रातः राजा सत्यव्रत मछली को देखने गया तो वह कहने लगी कि ,"आप कृपा मुझे ऐसे पात्र में रखे जहां मैं अपना विकास कर सकूं".

 राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर विशाल जल राशि में रखवा दिया । रात भर में मछली  आकार और बढ़ गया और प्रातः मछली ने राजा से फिर कहा कि राजन मैं आपकी शरण में आई हूं ।क्या आप मुझे बड़े और सुखदाई स्थान प्रदान कर सकते हैं?

 राजा ने मछली को सरोवर में छोड़ दिया उसमें भी मछली का आकार बढ़ने पर राजा ने मछली को उससे भी बड़े सरोवर में डलवाया दिया।

 लेकिन मछली का बढ़ता ही गया। राजा ने उस मछली को समुंदर में छोड़ने का सोचा। मत्स्य राजा से कहने लगा कि समुद्र में भयंकर जीव रहते हैं राजन् मुझे वहां मत छोड़ो।

राजा सत्यव्रत की प्रार्थना

राजा सत्यव्रत आश्चर्य चकित हो गए। राजा प्रार्थना करते हुए कहने लगे कि," आप अपने रूप में मोहित कर रहे हैं एक दिन में अपने आकार को इतना बढ़ाने वाले मत्स्य को आज तक मैंने कभी देखा ना सुना"।

 मुझे आप दीनों और भक्तों पर दया करने वाले अविनाशी भगवान जान पड़ते हैं ।हे जगदीश्वर! आपको प्रणाम है। प्रभु आप की लीला और अवतार सृष्टि के कल्याण के लिए होते हैं।इसलिए आप मुझे बताएं कि प्रभु आपने इस अद्भुत मत्स्य रूप को धारण क्यों किया है?

 मत्स्य भगवान राजा सत्यव्रत से कहने लगे कि आज से सातवें दिन बाद तीनों लोक‌ प्रलय में डूब जाएंगे ।

जब सारी सृष्टि प्रलय में डूबने लगेगी तब तुम्हारे पास मेरी भेजी हुई है नौका आएंगी तुम उसमें सब औषधियां और छोटे - बड़े बीजों के साथ लेकर सप्तर्षियों के साथ बैठ जाना।

 जब प्रलय में वह नौका डगमगाने लगेगी तो तुम वहां प्रकट हुई मेरी सिंग में वासुकीनाग को लपेट कर नौका को बांध देना।

  जब तक ब्रह्मा जी की  रात्रि रहेगी कि मैं सप्तर्षियों सहित तुम्हें उस सागर में खींचता घुमता रहूंगा। तब अपना वास्तविक रूप दिखाकर तुम्हें प्रश्नों का उत्तर दूंगा इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए ।

राजा सत्यव्रत भगवान द्वारा बताए गए सातवें दिन की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन जब समुंदर ने सारी सृष्टि में प्रलय मचा दी तो एक नौका राजा के पास आकर रुकी तो राजा औषधियां सहित नौका में चढ़ गया।

नाव प्रलय समुंदर में डगमगाने लगी ।राजा सत्यव्रत ने सप्तर्षियों के कहने पर भगवान विष्णु का ध्यान किया तो मत्स्य भगवान प्रकट हुए तो राजा ने भगवान का ध्यान कर वासुकी नाग को मत्स्य भगवान की सिंग के साथ बांध दिया। 

राजा सत्यव्रत भगवान की स्तुति कर कहने लगे कि आप सब लोकों के ईश्वर, आत्मा और गुरु है। आप मनवांछित फल और ज्ञान देने वाले हैं । आप कण कण में निवास करते हैं। प्रभु मुझे ज्ञान दें।

 सत्यव्रत की प्रार्थना सुनकर भगवान ने सत्यव्रत को आत्मज्ञान का उपदेश दिया। मत्स्य रूप भगवान से आत्म ज्ञान प्राप्त कर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो गया।

भगवान कहने लगे कि हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुराया है इसलिए चारों तरफ अज्ञान और अधर्म फैला गया है। मैंने धर्म और वेदों की रक्षा और हयग्रीव के वध के लिए मत्स्यावतार लिया है।

भगवान ने प्रलय शान्त होने पर हयग्रीव का वध कर दिया और उससे वेद छीन कर ब्रह्मा जी को पुनः वेद दे दिये। भगवान विष्णु के मत्स्यावतार की कथा पढ़ने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

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