RAJA BALI KI KATHA IN HINDI

राजा बलि की कथा 

Mythological Story of Raja Bali: पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा बलि महर्षि कश्यप और दिति के वंशज थे। राजा बलि   श्री हरि विष्णु भगवान के परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे। जिनकी रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और दैत्य हिरण्यकश्यप का वध किया था। राजा बलि प्रह्लाद जी के पुत्र विरोचन के पुत्र थे।

  बलि बहुत ही धर्मात्मा और बलवान राजा था। जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उस समय दैत्यो के राजा बलि ही थे। समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को पीकर देवराज इन्द्र बलवान हो गया और जब इंद्र ने अपने वज्र से राजा बलि को मारा तो शुक्राचार्य जी ने अपनी संजीवनी विद्या से उसे फिर जीवित कर दिया.

 शुक्राचार्य जी ने राजा बलि से बहुत से यज्ञ करवाएं। राजा बलि ने युद्ध में समस्त भूमण्डल को जीत लिया और उसने इच्छा व्यक्त की कि मैं स्वर्ग को भी विजय करना चाहता हूं. तो उसने विश्वजीत नाम का यज्ञ किया जिसमें से स्वर्ण मंडित रथ, घोड़े, दिव्य धनुष और तर्कस और कवच निकले। विष्णु भक्त प्रह्लाद जी ने बलि को फूलों की दिव्य माला और शुक्राचार्य ने शंख प्रदान किया।

यज्ञ में मिली सामग्रियों और प्रहलाद जी द्वारा दी माला को पहनकर शुक्राचार्य जी के शंख को लेकर, वह स्वर्ग विजय पर निकल पड़ा. उसकी शोभा ऐसी थी जैसे कुंड में अग्नि शोभा पड़ती है. अपनी सेना लेकर वह इंद्रपुरी पहुंच गया और शुक्राचार्य जी द्वारा दिए शंख को बजाया जिसे सुनकर देवतागण जान गए कि इस बार बलि पूरी तैयारी कर स्वर्ग लोक पर आक्रमण करने आया है। 

इंद्रदेव गुरु बृहस्पति से पूछते हैं कि बलि इतना तेजस्वी कैसे हो गया. बृहस्पति ने इंद्रदेव को बताया कि ब्राह्मणों के प्रताप से इसका बल बढ़ा है. इसके तेज का सामना इस समय आप नहीं कर सकते। इसलिए स्वेच्छा से स्वर्ग छोड़कर चले जाने में ही भलाई है.

लेकिन भविष्य में ब्राह्मणों के अपमान के कारण ही इस का पतन होगा. बृहस्पति जी की बात मानकर देवता इंद्र सहित इंद्रपुरी छोड़ कर चले गए. 

बलि ने इंद्रपुरी पर विजय प्राप्त कर तीनों लोकों को अपने अधिकार में कर लिया और उसने सौ अश्वमेध यज्ञ किए और उसकी कीर्ति चारों दिशाओं में बढ़ गई. 

उधर देवताओं की माता अदिति को दैत्यों के स्वर्ग पर अधिकार कर लेने से बहुत कष्ट हुआ क्यों अब देवताओं को स्वर्ग छोड़ना पड़ा। अदिति कश्यप जी से प्रार्थना करती है कि मुझे कोई ऐसा व्रत, तप बताएं जिससे विष्णु जी मेरे पुत्रों सहित मुझ पर प्रसन्न हो.

ऋषि कश्यप के कहे अनुसार अदिति ने 12 दिवस तक पयोव्रत  नामक व्रत को किया, जिसके प्रभाव से भगवान अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए. अदिति ने भाव से उनकी स्तुति की ओर कहने लगी कि प्रभु आप मेरी इच्छा की पूर्ति करे.    विष्णु जी कहने लगे कि ,"मैंने तुम्हारी इच्छा जान गया हूं कि तुम अपने पुत्रों का राज्य दैत्यों से वापिस चाहती हो"।

भगवान विष्णु बोले कि मैं तुम्हारे किए पयोव्रत से प्रसन्न हूं इसलिए मैं तुम्हारे गर्भ से जन्म लेकर तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा और उनका राज्य वापिस दिलाऊंगा. ऐसा कहकर भगवान विष्णु अंतर्धान हो गए।

समय आने पर भगवान विष्णु अभिजीत मुहूर्त में अदिति के घर पैदा हुए। उनके उस अवतार का नाम वामन अवतार था।

जब वामन भगवान ने राजा बलि की दानवीरता के बारे में पता चला तो वह वहां पहुंचे जहां राजा बलि यज्ञ कर रहे थे . राजा बलि ने उनका उचित आदर सम्मान किया। वामन भगवान कहने लगे कि राजन् मैंने आपकी दानवीरता के बारे में बहुत सुना है कि आप हर याचक की इच्छा पूर्ण करते हैं। राजा बलि कहने लगे कि, ब्राह्मण देव आप आदेश करे कि आप को क्या चाहिए?  मेरे अधिकार में तीनों लोक है ।

 वामन भगवान बलि से कहने लगे कि मुझे केवल तीन पग के बराबर भूमि चाहिए । चाहे आप तीनो लोकों के स्वामी है ,मैं आपसे और कुछ नहीं चाहता ।

राजा बलि आश्चर्य चकित हो गए कि मैं तीन लोकों का स्वामी हूं फिर भी तुम्हें मुझ से तीन पग पृथ्वी चाहिए । वामन भगवान कहने लगे कि मुझे केवल तीन पग भूमि की आवश्यकता है।

यह सुनकर जब राजा बलि ने संकल्प लिया तो उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें टोका। यह वटुक विष्णु का अवतार है और तीन पग भूमि में सारी सृष्टि माप लेगा। तुम से दान में लेकर इंद्र को सौंप देगा ।तुम अपना निर्वाह कैसे करोगे? 

राजा बलि कहने लगे गुरुदेव में इस ब्रह्मचारी को तीन पग पृथ्वी जरूर दूंगा। गुरु की आज्ञा ना मानने पर गुरु शुक्राचार्य ने उसे कहा कि तुम लक्ष्मी हीन हो जाओ। गुरु के शाप के बाद भी राजा बलि ने हाथ में जल लेकर संकल्प लेकर कहा कि ब्राह्मण देव आप तीन पग पृथ्वी नाप ले। इतना सुनते ही वामन भगवान ने अपना विराट रूप बनाया और तीनों लोकों को दो पग माप लिया ।

वामन भगवान कहने लगे कि तुमने मुझसे छल लिया है । तुमने मुझसे जो संकल्प लिया था वह पूरा नहीं किया ।अब तुम को दान देने के कारण नरक का प्राप्ति होगी। राजा बलि विचार करने लगे कि दान करने पर भी नरक की प्राप्ति हो रही है यह विधाता की कैसी लीला है ।राजा बलि के कहने लगे कि प्रभु आप तीसरा पग मेरे सिर  रख लें।

उसी समय प्रह्लाद जी और राजा बलि की पत्नी विंध्याचली वहां आई और दोनों ने भगवान की स्तुति की। ब्रह्मा जी भी वहां आए और वामन भगवान की स्तुति कर कहने लगे कि प्रभु बलि ने अपना राज पाट, लक्ष्मी जहां तक कि अपना शरीर भी आपको अर्पित कर दिया है। यह दंड का नहीं उत्तम पद का अधिकारी है।

भगवान बोले कि मैं तो बलि की परीक्षा ले रहा था मैं इससे बहुत प्रसन्न हूं क्योंकि मेरे भक्त धन, राज्य और ऐश्वर्य का मोह नहीं करते। मेरे बहुत से भक्त हुए हैं लेकिन बलि जैसा कोई नहीं है। इसने अपना धन, तीनों लोकों का राज्य और अपना शरीर भी मुझे दे दिया। इसके गुरु ने इसे शाप दिया,इसे अपमानित होना पड़ा, इस बांध लिया गया लेकिन यह  सत्य के मार्ग से विचलित नहीं हुआ। मैं इसके समर्पण से प्रसन्न होकर इसे सुतल लोक प्रदान करता हूं। राजा बलि को भगवान विष्णु की कृपा से सुतल लोक प्राप्त हुआ।

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