RAJA NIMI KI KATHA

RAJA NIMI KAUN THA 

राजा निमि कौन थे

  निमि मनु के पौत्र और राजा इक्ष्वाकु के पुत्र थे। राजा निमि ने एक यज्ञ करवाने के लिए अत्रि, अंगिरा, भृगु और गुरु वशिष्ट जी से प्रार्थना की । गुरु विशिष्ट कहने लगे कि मैं राजा इंद्र को यज्ञ कराने का वचन पहले ही देख चुका हूं। मैं इंद्र का यज्ञ करवा कर तुम्हारा यज्ञ को करवा दूंगा।

 लेकिन राजा निमि सोचने लगी कि यह जीवन क्षणभंगुर है इसलिए यज्ञ के शुभ कार्य को रोकना उचित नहीं होगा ।इसलिए उन्होंने गौतम ऋषि को आमंत्रित कर यज्ञ कर्म आरंभ करवा दिया। 

जब इंद्र का यज्ञ संपूर्ण करवा कर ऋषि विशिष्ट राजा निमि के पास पहुंचे तो वहां पहले से ही यज्ञ होते देख उन्होंने राजा निमि को शाप दिया कि तुमने शिष्य होकर भी अपने गुरु की प्रतीक्षा नहीं की । तुम ने मुझे यज्ञ करवाने का निमंत्रण देकर यज्ञ किसी अन्य से करवा कर मुझे अपमानित किया है।

 मैं तुम्हें शाप देता हूं तुम्हारा शरीर पतित हो जाए । राजा निमि को लगाकर गुरु को मुझे ऐसा शाप नहीं देना चाहिए था और इंद्र से ज्यादा दक्षिणा मिलने के लोभ में उन्होंने मेरे यज्ञ का प्रस्ताव पहले स्वीकार नहीं किया। 

इसलिए उन्होंने भी हाथ में जल लेकर गुरु वशिष्ठ को शाप दिया कि आपने लोभ में अपने धर्म की उपेक्षा की है आप शरीर भी पतित हो  जाए।

 शाप के पश्चात ऋषि विशिष्ट अपने पिता ब्रह्मा जी से प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा जी कहने लगे कि तुम को इस देह का त्याग करना होगा। तुमे मित्रावरूण और उर्वशी के संयोग से पुनः शरीर की प्राप्ति होगी। एक बार अप्सरा उर्वशी को देख कर मित्र वरुण का वीर्य धरती पर गिर गया जिसके तेज को देखकर उर्वशी अप्सरा ने उसे घड़े में डाल दिया। उस घड़े से ही वशिष्ठ जी उत्पन्न हुएं।

उधर ऋषियों ने राजा के शरीर को तेल में रखवा दिया और यज्ञ समाप्त होने पर जब देवता वहां आए थे तो ऋषियों ने प्रार्थना की अगर प्रसन्न हैं तो निमि को पुनर्जीवित कर दे, देवताओं ने एवमस्तु कहा। जब निमि से पूछा गया कि," आपके जीवन चैतन्य को कहा पुनः स्थापित किया जाये"।  

 निमि कहने लगे कि," मुझे देह की इच्छा नहीं है क्योंकि देह ही सभी दुख और शोक का कारण है। मैं इस शरीर के मोह से छूटना चाहता हूं क्योंकि इसी शरीर को खोने के भय से मैंने क्रोधित हो कर अपने गुरु को शाप दिया था। अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे प्रजा के नेत्रों में रहने का सौभाग्य प्रदान करें"।

देवताओं ने कहा कि," राजा निमि तुम देह के बिना सबकी पलकों पर निवास करोंगे और सभी जीवों की आंखों को पलक गिरने की शक्ति तुम्हारे कारण प्राप्त होगी"।

राज्य चलाने के लिए देवताओं ने निमि के शरीर का मंथन कर एक पुत्र उत्पन्न किया जो जन्म से ही जनक अर्थात भविष्य में होने वाले वंशों का उत्पन्न कर्ता  था।

 निमि के शरीर का मंथन कर निकले पुत्र का नाम विदेह हुआ क्यों वह बेजान से उत्पन्न हुआ था। निमि की देह के मंथन से पैदा होने के कारण मिथिला कहलाएं। इसी कारण निमि के वंशज जनक, मिथिला और विदेह कहलाते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2024

BAWA LAL DAYAL AARTI LYRICS IN HINDI

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA