RAJA YAYATI KI KATHA HINDU MYTHOLOGICAL STORY

 राजा ययाति की कथा: राजा ययाति के पुत्र पुरू ने ली थी उनकी वृद्धावस्था 

HINDU MYTHOLOGYICAL STORY/ PURANIK KATHA 

राजा ययाति चंद्र वंशी राजा नहुष के पुत्र थे। राजा नहुष के छः पुत्र -,याति, ययाति, सयाति , अयाति, वियाति और कृति थे। ययाति परम ज्ञानी था और राज्य कार्य से विरक्त था इसलिए उनके दूसरे पुत्र ययाति को उनके पश्चात राजा बनाया गया। ययाति को जब राज्य प्राप्त हो गया तो उसने अपने भाइयों को चारों दिशाओं की रक्षा की आज्ञा दी। 

ययाति का वर्णन भागवत पुराण, महाभारत और मत्स्य पुराण में आता है।

RAJA YAYATI DEVAYANI AUR SHARMISTHA KI KATHA IN HINDI

राजा ययाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की कन्या देवयानी और राजा वृषपर्वा  की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया ।देवयानी से उनके यदु और तर्वसु नाम के दो पुत्र हुए और शर्मिष्ठा के द्रुह्यु, अनु और पुरू नामक तीन पुत्र हुए।

एक बार राजा वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा अपनी सखियों के साथ वन में टहल रही थी। उसके साथ दैत्य गुरु शुक्राचार्य की कन्या देवयानी भी थी।वह दोनों टहलते हुए जलाशय पर पहुंचीं और स्नान करने लगी।

  उसी समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ उधर से जा रहे थे तो दोनों ने शीघ्रता से अपने अपने वस्त्र पहन लिये। लेकिन गलती से राजकुमारी शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए तो देवयानी क्रोधित हो गई कि तुम मेरे वस्त्र कैसे पहन सकती हो? मैंने श्रेष्ठ ब्राह्मण कुल में जन्म लिया है।मेरे वस्त्र पहन कर तुम ने बहुत ही अनुचित कार्य किया है । तुम्हारे पिता मेरे पिता के शिष्य हैं ।

जब देवयानी ने शर्मिष्ठा का अपमान किया तो शर्मिष्ठा क्रोधित होकर बोली की तुम व्यर्थ ही अपनी प्रशंसा कर रही हो। क्या मेरे दिए हुए टुकड़ों पर तुम्हारा शरीर नहीं पलता?

क्रोध में उसने देवयानी को कुएं में धकेल दिया और स्वयं उससे अपने वस्त्र छीन कर घर चली गई ।उसी समय राजा यजाति शिकार खेलने हुए वन में आये। प्यास लगने पर वह उसी कुएं के पर पहुंचे जहां देवयानी गिरी थी । राजा ने देवयानी को देखकर उसे अपना दुपट्टा ओढ़ने को दिया और हाथ पकड़ कर बाहर निकाला।

 शुक्राचार्य जी की बेटी देवयानी कहने लगे कि आप मुझे अपनी पत्नी बना लो। देवयानी राजा ययाति से  बोली कि आप मन में यह विचार ना करें कि आप क्षत्रिय हैं और मैं ब्राह्मण पुत्री हूं। यह सब ईश्वर की प्रेरणा से ही हो रहा ।

मुझे बृहस्पति के शिष्य कच ने शाप दिया था कि मेरा विवाह किसी ब्राह्मण के साथ ना हो। कच मेरे पिता शुक्राचार्य जी से मृत संजीवनी विद्या सीखता था । मैंने उस से आकर्षित होकर उससे शादी का प्रस्ताव रखा। कच कहने लगा कि," तुम मेरे गुरु की कन्या और मेरे लिए पुजनीय हो इसलिए मैं तुम से विवाह नहीं कर सकता"।

मैंने क्रोधित होकर उसे शाप दिया कि तुम्हारी सीखी हुई विद्या निष्फल हो जाये। यह सुनकर कच ने भी मुझे शाप दिया कि तुम्हारा विवाह किसी ब्राह्मण से नहीं होगा।

राजा ययाति देवयानी से कहने लगे कि ,"अगर तुम्हारे पिता शुक्राचार्य अपनी अनुमति से मुझे तुम्हारा पति मानेंगे तो मैं तुम से विवाह कर लूंगा" । इतना सुनकर देवयानी अपने पिता के पास गई और उसे शर्मिष्ठा का सारा वृत्तांत सुनाया।

 गुरु शुक्राचार्य क्रोधित होकर राजा वृषपर्वा के पास पहुंचे और उनकी पुत्री शर्मिष्ठा की सारी बात बताई और राजा से कहा कि तुम देवयानी की बात मान लो। देवयानी ने कहा कि जब मैं ससुराल जाऊं तो उनकी कन्या शर्मिष्ठा मेरी दासी बने। शर्मिष्ठा ने अपने पिता को गुरु शुक्राचार्य के क्रोध से बचाने के लिए देवयानी की बात मान ली।

 शुक्राचार्य जी ने देवयानी का विवाह राजा ययाति से करवा दिया और कहा कि राजा तुम शर्मिष्ठा की सेज पर कभी ना सोना ।देवयानी कुछ समय पश्चात पुत्रवती हुई तो शर्मिष्ठा को भी संतान की इच्छा हुई उसने राजा ययाति से गुप्त रूप से विवाह कर लिया और शुक्राचार्य के वचन के विरुद्ध जाकर ययाति ने शर्मिष्ठा की इच्छा की पूर्ति की।

देवयानी के यदु और तर्वसु नाम के दो पुत्र हुए और शर्मिष्ठा के द्रुह्यु, अनु और पुरू नामक तीन पुत्र हुए। जब देवयानी को राजा ययाति और शर्मिष्ठा के विवाह और पुत्रों‌ की बात पता चली तो उसने अपने पिता शुक्राचार्य को सारी बात बता दी।

क्रोधित होकर शुक्राचार्य ने राजा ययाति को शाप दिया कि तुमे बुढ़ापा घेर ले। गुरु का शाप सुनकर राजा ययाति ने याचना की तो शुक्राचार्य कहने लगे कि अगर तेरा कोई पुत्र तेरा बुढ़ापा ले तो तुम जवान हो सकते हो।

राजा ने अपने बड़े पुत्रों से अपनी जरावस्था बुढ़ापा लेने की बात कही तो सब ने इंकार कर दिया। लेकिन राजा के सबसे छोटे पुत्र को कहा तो सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसका मानना था कि जिस पिता के कारण मनुष्य दोनों लोकों में पुरूषार्थ पाता है उसके मन अनुसार कार्य करना श्रेष्ठ है ‌।पुरू ने राजा ययाति की वृद्धावस्था ले ली।

राजा ययाति ने पुत्र से युवा अवस्था लेकर बहुत से सुख भोगे। देवयानी ने भी अपने पति को प्रसन्न करने हेतु हर प्रयास किया। एक दिन राजा ययाति को आत्म ज्ञान हुआ और देवयानी से कहने लगे कि मैंने विषयों के भोग में अपने पुत्र‌ को वृद्ध बना दिया और स्वयं युवा अवस्था का आनंद भोग रहा हूं। जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि बढ़ जाती है वैसे ही भोगों को जितना भोगों उतनी तृष्णा बढ़ जाती है। विषय दु:ख के के रूप है।

विषयों से विरक्त हो कर उसने अपने पुत्र पुरू को उसकी युवा अवस्था वापिस कर दी। पुरू की पितृ भक्ति के लिए उसे राजा बना दिया। राजा ययाति स्वयं वन चले गए और वहां पर तप कर मोक्ष को प्राप्त हुए।

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