RAKSHA SUTRA MANTAR YEN BADDHO BALI RAJA

रक्षा सूत्र मंत्र का अर्थ 

मंत्र  - येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।

तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि  रक्षे माचल माचल:।।

भावार्थ - जिस रक्षा सूत्र से  दानवीर राजा बलि बांधे गए थे मैं भी उसी रक्षा सूत्र से तुम को बांधता हूं यानि धर्म के प्रति बद्ध करता हूं। हे रक्षे (रक्षा सूत्र) चलायमान न हो , चलायमान न हो।
Raksha Sutra mantar

कलावा या मौली को रक्षा सूत्र  भी कहते हैं। रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवीर राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में बंधे थे मैं उसी सूत्र से आपको बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रति बद्ध करता हूं।

फिर ब्राह्मण या पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे(रक्षा सूत्र) चलायमान न हो , चलायमान न हो अर्थात तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मण या पुरोहित द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित करना है।

मां दुर्गा के संस्कृत श्लोक

RAKSHA SUTRA SHLOK KA RAJA BALI SE SAMBHAB  

हिन्दू धर्म में रक्षा बंधन के त्योहार का विशेष महत्व है। रक्षा बंधन का त्योहार सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को रक्षा धागा बांधती है और उनकी दीर्घ आयु और सुख समृद्धि की कामना करती है। 

रक्षा बंधन के त्योहार का राजा बलि से संबंध है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहली बार राखी या रक्षासूत्र राजा बलि को बांधा गया था। उन्हें मां लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया था। राजा बलि ने जब तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। देवताओं को स्वर्ग लोक छोड़ना पड़ा  तो देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा करने के लिए कहा।

 भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। वामन भगवान ने दो पग में ही पूरे ब्रह्मांड को नाप लिया और फिर तीसरा पग के लिए भूमि देने के लिए तब राजा बलि से कहा।

 इस पर राजा बलि ने तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया। वामन भगवान राजा बलि की समर्पण से प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा।

 राजा बलि ने वरदान के रूप में मांगा कि मैं हर समय आप को देखूं। भगवान स्वयं उसके दरवाजे पर द्वारपाल बन खड़े रहें। भगवान विष्णु ने राजा बलि की इच्छा पूर्ण की और उसके पहरेदार बन गए।

 जब बहुत समय तक भगवान बैकुंठ धाम नहीं पहुंचे तो नारद जी ने राजा बलि के वरदान के बारे में मां लक्ष्मी को बताया। माता लक्ष्मी नारद जी ने पूछने लगी कि अब भगवान वापिस बैकुंठ धाम कैसे आएंगे?  नारद जी ने माता लक्ष्मी को सुझाव दिया कि आप राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लें।

 माता लक्ष्मी रुप बदल कर एक गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के द्वार पहुंची। राजा बलि ने उसे अपनी बहन बना लिया। मां लक्ष्मी राजा बलि के महल में रहने लगी। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधा।  राजा बलि ने रक्षा सूत्र के बदले कुछ उपहार मांगने के लिए कहा।

इतना सुनते ही माता लक्ष्मी अपने वास्तविक स्वरूप में आ गई और कहने लगी कि मैं अपने पति भगवान विष्णु के बिना बैकुंठ में अकेली हूं मैं अपने पति को उपहार स्वरूप चाहती हूं। 

 माता लक्ष्मी की वास्तविकता जानने के पश्चात भी राजा बलि अपने धर्म के मार्ग पर अटल रहे और अपने दिए गए वचन के अनुसार मां लक्ष्मी को विष्णुजी को ले जाने की अनुमति दे दी। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तब से अभी तक बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं और इसके बदले भाई से रक्षा का वचन लेती हैं। 

भगवान विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर कहा कि वह प्रत्येक वर्ष चार मास तक पाताल में निवास करेंगे।‌ चार मास के उस समय को चातुर्मास कहा जाता है।

यही कारण है कि रक्षाबंधन पर या रक्षासूत्र बांधते वक्त जो मंत्र पढ़ा जाता है उस का राजा बलि से संबंध है- 

मंत्र  -  येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:

भाव - जिस रक्षा सूत्र से  दानवीर राजा बलि बांधे गए थे मैं भी उसी रक्षा सूत्र से तुम को बांधता हूं यानि धर्म के प्रति बद्ध करता हूं। हे रक्षे (रक्षा सूत्र) चलायमान न हो , चलायमान न हो। 

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