RISHI JAMADAGNI KI KATHA ऋषि जमदग्नि की कथा

 JAMADAGNI RISHI KAUN THA

 ऋषि जमदग्नि भृगु ऋषि वंशी ऋषि ऋचीक के पुत्र थे। जमदग्नि ऋषि सप्त ऋषियों में से एक माने जाते हैं। उनकी पत्नी का नाम रेणुका था जो कि राजा प्रसेनजित की पुत्री थी। उनके पुत्रों के नाम रूकमवान, सुखेण, वसु, विश्ववासन और परशुराम थे। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।


ऋषि जमदग्नि जन्म कथा(RISHI JAMADAGNI JANAM KATHA)


 गाधि नरेश की सत्यवती नाम की कन्या थी। जिसका विवाह ऋषि ऋचीक से हुआ। राजा गाधि का कोई पुत्र नहीं था । सत्यवती की माता ने कहा कि तुम्हारे पति का बहुत तेजस्वी है इसलिए तुम उनसे वरदान मांगों की तुम्हारा कोई भाई हो जाएं। उधर सत्यवती की भी संतान उत्पत्ति की इच्छा हुई।

 ऋषि ऋचीक को पत्नी सत्यवती ने अपनी और उसकी माता दोनों की संतान उत्पत्ति की इच्छा ऋषि को बताई। महर्षि ऋचीक ने अपनी पत्नी सत्यवती के लिए ब्राह्मण मंत्रों से और सास के लिए क्षात्र मंत्रों से अभिमंत्रित कर पृथक - पृथक चरु पकाया। 

ऋषि स्नान करने नदी पर गए तो उनकी सास ने अपनी पुत्री के चरु को उत्तम जान कर उसके चरु को स्वयं खा लिया।

ऋषि ऋचीक को जब यह बात पता चली तो वह सत्यवती से कहने लगे कि अब तेरा पुत्र उग्र योद्धा पैदा होगा और भाई ब्रह्म ज्ञानी होगा। सत्यवती को इस बात का शोक हुआ तो ऋषि कहने लगे कि मंत्रों का प्रभाव अन्यथा नहीं होगा। परन्तु मैं इतना कर सकता हूं कि तेरा पुत्र ब्रह्म ज्ञानी और पोत्र योद्धा होगा।

समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि उत्पन्न हुए‌ं‌ और सत्यवती कौशिकी नदी हो गई। सत्यवती की माता से विश्वामित्र नाम का पुत्र हुआ।

ऋषि जमदग्नि का पुत्रों को मां का वध‌ करने का आदेश देना

एक बार ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका जब नदी पर हवन हेतु गंगा जल लेने गई तो उन्होंने वहां गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं संग विहार करते देखा। यह देख उनका मन चित्ररथ के प्रति आसक्त हो गया ।
हवन के लिए जल ले जाने में उन्हें देरी हो गई। ऋषि जमदग्नि त्रिकालदर्शी थे उन्होंने अपने आत्म बल से सब जान लिया कि उनकी पत्नी ने मानसिक व्यभिचार किया है।
उन्होंने अपनी पत्नी के इस पाप को पुत्रों को बता कर कहा कि कि अपनी माता का वध‌ कर दो। उन सभी ने मना कर दिया।
जब ऋषि जमदग्नि ने परशुराम जी से कहा तो वह अपने पिता के प्रभाव को जानते थे इसलिए उन्होंने पिता की आज्ञा मान ली। परशुराम जी से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने उनसे वर मांगने के लिए कहा।
परशुराम जी ने कहा कि मेरी माता और भाइ पुनर्जीवित हो जाएं और मैंने जो इन सब का वध किया है इसका स्मरण ना रहे। ऋषि जमदग्नि ने एवमस्तु कहा और ऋषि के तेज़ के प्रभाव से सभी पुनर्जीवित हो गये।

हैहय वंशी क्षत्रियों द्वारा ऋषि जमदग्नि की हत्या


एक समय हैहय वंशी राजा सहस्त्रार्जुन ने तप कर हजार भुजाएं और असीम धन वैभव, ऐश्वर्य और बल प्राप्त कर लिया। असीम धन वैभव और बल मिलने के कारण वह अभिमानी हो गया। एक दिन जब राजा सहस्त्रार्जुन अपनी सेना सहित ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया तो ऋषि ने कपिला गाय के प्रताप से सेना सहित राजा को भोजन करवाया। वह सोचने लगा कि इस तपस्वी ने इतनी विशाल सेना को भोजन कैसे करवाया? 

 राजा को जब कपिला कामधेनू गाय के चमत्कार के बारे में पता चला तो वह बलपूर्वक गाय को ले गया। जब परशुराम जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन को मार कर गाय अपने पिता को वापिस दे दी।

सहस्त्रार्जुन के पुत्र अपने पिता के वध का बदला लेना चाहते थे। इसलिए जब परशुराम और उनके भाई आश्रम में नहीं थे तब सहस्त्रार्जुन के पुत्र वहां आये और उन्होंने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया।

जब परशुराम जी आश्रम में अपने पिता को मृत देखा तो उनका शव सुरक्षित रखवा दिया और पिता की हत्या के कारण क्षत्रिय जाति को नष्ट करने का संकल्प लिया।

परशुराम जी ने महिष्मति पहुंच कर पिता की हत्या करने वाले सहस्त्रार्जुन के पुत्रों और वहां जितने भी क्षत्रिय थे उनके सिर काट कर सिरों का पहाड़ खड़ा कर दिया। वहां से अन्य राज्यों में रहने वाले क्षत्रियों का भी संहार किया। इस प्रकार 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन किया।

परशुराम जी ने वापिस आ कर अपने पिता के सिर और शरीर को जोड़ कर कुशा पर लेटा दिया और अनेकों यज्ञ कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया खुश होकर भगवान विष्णु ने उनके पिता को सातवें ऋषि का स्थान प्रदान किया।




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