SHIV JI VISHNU BHGWAN KE MOHINI ROOP PER MOHIT HUA भगवान शिव और भगवान विष्णु मोहिनी रूप

भगवान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित क्यों हुए थे?

भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार समुद्र मंथन के दौरान लिया था । जब धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो दैत्यों ने उनसे कलश छीन लिया। देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली। भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण कर दैत्यों का मन मोह लिया। दैत्य स्वयं मोहिनी से कहने लगे कि सुंदरी तुम हम सब में अमृत वितरण कर दो। 

 विष्णु मोहिनी रूप में कहने लगे कि मैं जैसे भी कार्य करूं आप लोगों को स्वीकार करना होगा। अगर तुम लोगों को मेरा वचन स्वीकार है तो ही मैं अमृत वितरण करूंगी। दैत्य मोहिनी के रूप में इतने आसक्त थे कि उसने अमृत देवताओं को पिला दिया लेकिन वे कुछ बोल ही नहीं पाये।

  जब भगवान शिव को सूचना मिली कि भगवान विष्णु ने देवताओं को मोहिनी धारण कर अमृत पिलाया है और उन्होंने भगवान के मोहिनी रूप की प्रशंसा सुनी तो विष्णु जी से मिलने माता पार्वती के साथ गए।  

भगवान शिव ने विष्णु जी की स्तुति की और कहने लगे कि मैं आपके मोहिनी रूप के दर्शन करना चाहता हूं ।जिसे देख कर दैत्य अमृत पान करना भूल गए थे।

 भगवान विष्णु कहने लगे कि जब दैत्यों ने धनवंतरी से अमृत कलश लिया तो मैंने मोहिनी रूप धारण लिया क्योंकि दैत्य अगर अमृत पान करते तो अनर्थ हो जाता।  इसलिए मैंने मोहिनी अवतार धार कर उन्हें मोहित कर दिया और अमृत अपने हाथों में लेकर देवताओं का पिला दिया ।

भगवान शिव को अपना मोहिनी रूप दिखाने के लिए विष्णु जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए ।भगवान शिव देखते हैं सुंदरवन में एक मनमोहक कन्या हाथ में गेंद उछालती हुई जा रही है।

 उस परम सुंदरी को देखकर भगवान शिव जो कामदेव के शत्रु थे मोहित हो गये और उसके स्त्री की ओर आकर्षित होकर  उधर दौड़े। उधर मोहिनी ने देखा कि शिव जी मेरी ओर आ रहे हैं तो वह लताओं की ओट में छिप गई । 

भगवान शिव ने उसे केशों से पकड़ लिया। सुंदरी केश छुड़ा कर वहां से भागी। शिव जी जिन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था वह काम के वशीभूत हो गए और उसकी ओर दौड़े ।

कामातुर होने के कारण शिव जी का वीर्य स्खलित हो गया। जहां जहां उनका वीर्य गिरा वहां सोने चांदी की खाने बन गई और जिस मार्ग से निकले वह पवित्र हो गया।

 वीर्य स्खलित होने के पश्चात भगवान शिव को ध्यान आया कि मैं आज श्री हरि की माया से मोहित होकर उनकी माया से ठगा गया। ऐसा विचार आते ही शिव जी ने जहां थे वहीं ठहर गए।

 भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप धरकर उसके समक्ष आ गए और उन्हें कहने लगे कि अब से मेरी माया आपको कभी मोहित नहीं करेगी।

 भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिए अपने लोक चले गए और वह मार्ग में माता पार्वती से कहने लगे कि जो माया मेरी दासी है उसने मुझे मोह में फंसाकर बावला कर दिया तो साधारण मनुष्यों का मोह कैसे छोड़ सकता है । 

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