SHRI KRISHAN ARJUN KE SARTHI BANE

 Mahabharat story: श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी क्यों बने 


Lord Krishna and Arjuna: जब महाभारत युद्ध सुनिश्चित हो गया तो अर्जुन और दुर्योधन दोनों श्री कृष्ण के पास पहुंचे। श्री कृष्ण कहने लगे कि एक तरफ मेरी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना है और दूसरी और मैं। मैं इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊंगा।

दुर्योधन ने श्री कृष्ण की सेना का चयन किया और अर्जुन ने श्री कृष्ण को चुना।

दुर्योधन को लगा कि श्री कृष्ण बिना सेना के निहत्थे पांडवों की क्या सहायता कर पाएंगे?

श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अपने लिए अर्जुन के सारथी बनने की भूमिका का चयन किया।

श्री कृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका के साथ - साथ महाभारत युद्ध की पटकथा लिखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

श्री कृष्ण ने युद्ध से पहले अर्जुन को भगवती दुर्गा से आशीर्वाद लेने को कहा ताकि मां दुर्गा के आशीर्वाद से पांडवों को विजय सुनिश्चित हो सके।

श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि तुम अपने झंडे की ध्वजा पर आरूढ़ होने के लिए हनुमान जी का आह्वान करो क्यों कि हनुमान जी अजेय है। अर्जुन के आह्वान पर ही इसलिए हनुमान जी अर्जुन के ध्वज पर विराजमान हुएं।

 श्री कृष्ण एक सारथी के रूप में एक सारथी के सभी कर्म किये। एक सारथी की भांति वह पहले अर्जुन को रथ पर पहले आरूढ़ करवाते और फिर स्वयं रथ पर आरूढ़ होते।

अर्जुन के आदेश पर ही रथ चलाते। श्री कृष्ण ने अपने सारथी की भूमिका का बहुत अच्छे से निर्वाह किया। 

महाभारत युद्ध के पहले दिन जब दोनों सेनाएं आमने सामने हुई तो अर्जुन युद्ध के मैदान में भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, भाई-बन्धुओं को देखकर विचलित हो जाता हैं । अर्जुन कहते हैं कि,"मैं अपने लोगों को मारकर युद्ध नहीं कर सकता इससे तो अच्छा मैं भिक्षा मांग लूंगा। भगवान श्री कृष्ण जो महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी थे शांति से अर्जुन की बातें सुनते रहे।

अर्जुन के मन में जितनी शंकाएं थी उसे दूर करने के लिए श्री मद्भागवत गीता का उपदेश दिया था।

श्री कृष्ण ने सारथी के रूप में समय समय पर अर्जुन को सुरक्षित और संरक्षित भी किया।

अभिमन्यु की मृत्यु के पश्चात जब अर्जुन प्रतिज्ञा करता है कि सूर्यास्त तक अगर मैंने जयद्रथ को नहीं मारा तो मैं आत्म दाह कर लूंगा। पूरी कौरव सेना जयद्रथ को बचाने में लग गई ।

श्री कृष्ण ने अपनी माया से छद्म सूर्यास्त करवा दिया।  जयद्रथ खुशी के मारे अर्जुन के सामने गया। जयद्रथ के सामने आते ही  माया के बादल छंट गए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को उसी क्षण जयद्रथ का वध कर समाप्त करने को कहा।

 जब कर्ण के रथ का पहिया धरती में धंस गया तो कर्ण अर्जुन को धर्म का पाठ पढ़ाने लगा तो श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि इसी क्षण इस को समाप्त कर दो।

इस का धर्म तब कहा गया था," जब इसके सामने भीम को विष दिया गया, लाक्षाग्रह को जलाया गया, जब द्रोपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र किया जा रहा था, अभिमन्यु का वध किया गया"।अर्जुन ने श्री कृष्ण से मार्ग दर्शन प्राप्त कर कर्ण का वध‌ कर दिया।

भीष्म पितामह के शरशैय्या पर लेटने के पश्चात द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया तो द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा पांडव सेना का संहार कर रहे थे।  श्री कृष्ण ने ही युधिष्ठिर से कहलवाया था कि अश्वत्थामा मारा गया और यह सुनकर द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिये। उसी समय द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। 

जहां अर्जुन के सारथी के रूप में श्री कृष्ण के हाथों में घोड़ों की लगाम थी वहीं महाभारत युद्ध की समग्र डोर भी अदृश्य रूप में श्री कृष्ण के हाथों में थी।

महाभारत युद्ध जिस दिन आरंभ हुआ उस दिन से प्रतिदिन श्री कृष्ण अर्जुन को आदर से उतारने के पश्चात स्वयं उतरते थे।

लेकिन जिस दिन महाभारत युद्ध समाप्त हुआ उस दिन श्री कृष्ण अर्जुन से बोले कि पार्थ ! आज पहले तुम रथ से उतर जाओ उसके पश्चात मैं उतरूंगा। अर्जुन आश्चर्य से श्री कृष्ण को देखने लगे कि माधव तो प्रति दिन स्वयं रथ से उतर कर मुझे बड़े प्यार से उतारते थे । आज इनके व्यवहार में बदलाव क्यों? उन्होंने श्री कृष्ण से इस विषय में प्रश्न भी किया लेकिन श्री कृष्ण उस समय मौन रहे।

अर्जुन के रथ से उतरने के पश्चात श्री कृष्ण स्वयं रथ से उतरे और अर्जुन को रथ से कुछ दूरी पर ले गए।

उस के पश्चात की घटना से अर्जुन अचंभित हो गया। जिस रथ ने अजेय महारथियों का अंत देखा था उसमें एक भयंकर विस्फोट हुआ और वह क्षण भर में नष्ट हो गया।

 अर्जुन विस्मित था कि जिस रथ पर श्री कृष्ण ने मुझे गीता का उपदेश दिया, जिस रथ  पर अनगिनत योद्धाओं का वध किया  था, जिस रथ पर आरूढ़ होकर भीष्म पितामह के शरीर को बाणों से बींध दिया वह अब जल चुका था। अर्जुन ने श्री कृष्ण से प्रार्थना कि माधव मुझे बताएं कि आप के उतरते ही यह रथ नष्ट कैसे और क्यों हो गया?  मुझे बताएं कि इसके पीछे क्या मर्म है?

श्री कृष्ण कहने लगे कि पार्थ! यह रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण आदि के दिव्यास्त्रों के प्रहार से पहले ही क्षीण हो चुका था। इतने महारथियों के अस्त्रों के बार बार प्रहार करने के कारण बहुत पहले इस रथ की आयु पूर्ण हो चुकी थी। 

अर्जुन बोले कि अगर यह रथ बहुत पहले क्षीण हो चुका था तो यह इतने सुचारू रूप से चल कैसे रहा था।

श्री कृष्ण कहने लगे कि अर्जुन यह रथ आयु समाप्त होने पर भी मेरी संकल्प शक्ति से चल रहा था। इस युद्ध में धर्म की स्थापना के लिए इस दिव्य रथ की बहुत आवश्यकता थी इसलिए मैंने अपने संकल्प के बल पर इस रथ को चलाया।

श्री कृष्ण बोले कि अर्जुन ईश्वर का संकल्प अटूट और अखंड होता है। जहां भी ईश्वर का संकल्प लगता है उस स्थान पर उसका प्रभाव दिखाई देता है। कार्य पूर्ण होने के पश्चात उसका प्रभाव खत्म हो जाता है। इस तरह यह रथ भी क्षीण होने के पश्चात भी मेरी संकल्प शक्ति से चल रहा था ।अब इसका कार्य पूर्ण हो गया है तो संकल्प का प्रभाव समाप्त हो गया।

हम सब को अपने जीवन की डोर ईश्वर के हाथों में सौंप देनी चाहिए।

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