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Showing posts from May, 2022

SAVITARI AUR SATAYVAAN KATHA

SAVITRI SATAYVAAN KI KATHA वट सवित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है ।सुहागिन स्त्रियाँ इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती है।  पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश में राजा अश्वपति एक धर्मात्मा राजा थे उनकी सावित्री नाम की पुत्री थी।  वह विवाह के योग्य हई तो उसने साल्व देश से निष्कासित राजा  द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को चुना । रूक्मि नामक सामंत ने उनका राजपाट छीन लिया था और राजा द्युमत्सेन नैत्रहीन चुके थे वह अपनी पत्नी और पुत्र के साथ वन में रहते थे. जब नारद जी को यह बात पता चली तो वह महाराज अश्वपति से कहने लगे कि इस विवाह को रोक ले क्योंकि सत्यवान तो अल्पायु है। लेकिन सावित्री कहने लगी कि सनातनी स्त्री एक बार ही अपना वर चुनती है इसलिए सावित्री अपने निर्णय पर दृढ़ रही। राजा ने सवित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया और सवित्री सत्यवान की पत्नी बन कर वन में आ गई । समय व्यतीत होता गया और वह दिन आ गया जो नारद जी के सवित्री को सत्यवान की मृत्यु के लिए बताया था।  सावित्री जब सत्यवान के साथ वन में लकडियाँ काटने गई तो उसको पीड़ा होने लगी तो सवित्री वट के पेड़ के नीचे सत

HANUMAN AUR BALI YUDH हनुमान जी और बाली युद्ध

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Hanuman jayanti 2023 Thursday , 6 April  हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमान जी और बालि युद्ध कथा(Hanuman story) हनुमान जी ने कैसे बालि के अहंकार को चूर चूर किया था। हनुमान जी और बाली युद्ध में युद्ध क्यों हुआ ? बाली का वर्णन रामायण में आता है। बाली सुग्रीव का भाई था और किष्किन्धा नगर का राजा था। उसकी पत्नी का नाम तारा और पुत्र का अंगद था। बाली को ब्रह्मा जी से एक वरदान प्राप्त था जिसके अनुसार जब भी कोई युद्ध करने उसके सामने आएगा शत्रु की आधी शक्ति उसमे आ जाएंगी। अपने इस वरदान के कारण वह स्वयं को अजेय समझने लगा था। उसने इसी वरदान के कारण हजारों हाथियों के बल वाले दुंदुभी नामक दैत्य का वध किया और उसके पश्चात् उसके भाई मायावी का भी गुफा में वध किया था। बाली ने इसी वरदान के बल पर रावण को युद्ध में हराकर छः महीने तक उसे अपनी कांख में दबाए रखा था। अंत में रावण ने हार मान कर बाली से मित्रता कर ली थी। बाली को अपने  बल पर अहंकार हो गया था उसे लगता था कि संसार में उससे बढ़ कर योद्धा कोई नहीं है। एक दिन वह अपने बल के मद में चूर होकर वन की सम्पत्ति को नष्ट कर रहा था और उससे युद्ध करने के लिए ललकार रहा थ

NINDA - CONDEMNATION निंदा -बुराई

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      निंदा का अर्थ होता है किसी की वास्तविक या काल्पनिक दोष या बुराई बताना किसी द्वारा की गई निंदा से कभी भी नहीं डरना चाहिए क्योंकि क्या पता सामने वाला निंदा द्वारा आपको अपमानित करके आपको आपके लक्ष्य से भटकाना चाहता हो। स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि निंदा के डर से लक्ष्य ना छोड़े क्योंकि लक्ष्य प्राप्त होते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है। किसी द्वारा की गई निंदा या आलोचना  को अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण से लेते हैं तब यह हमारे आत्मिक बल का मापदंड भी बन सकता है। क्योंकि एक तो जब कोई हमारी निंदा करता है तो वह हमारी उस कमजोरी पर कटाक्ष करता है जिसे हम स्वयं नहीं देख पाते। सामने वाले द्वारा की गई आलोचना से हम अपनी उस कमी को सुधार कर सकते हैं। लेकिन यह मेरा निजी अनुभव है क्योंकि एक समय था जब मैं भी किसी और द्वारा मुझ पर किए गए कटाक्ष या फिर निंदा से परेशान हो जाती थी। आलोचना करने वाले की बातें मन में नकारात्मक विचार उत्पन्न करती थी। लेकिन एक दिन मैंने एक लेख पढ़ा उसने मुझे जीवन में बहुत प्रेरणा दी। उसका शीर्षक था आपके आलोचक आपके सच्चे शुभचिंतक होते हैं। मैंने उत्सुकतावश उसक

BRAHMA JI NE SHRI KRISHNA KI PRIKSHA KYU LI

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 पढ़ें श्री कृष्ण की बाल लीला ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की परीक्षा क्यों ली थी? Mythology story in hindi  श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण वृन्दावन में बलराम जी और ग्वाल बाल संग वन में बछड़े और गाय चराने जाते थे। एक बार ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की परीक्षा लेने की सोची। श्री कृष्ण और बलराम जब ग्वाल बाल संग गाय और बछड़े चराने वन में गए हुए थे । दोपहर के समय जब थक कर भोजन के पश्चात सब आपस में अमोल प्रमोद करने लगे । उनके गाय और बछड़े चरते हुए बहुत दूर चले गए।  गाय और बछड़ों को ना पाकर ग्वाल बाल घबरा गए तो श्री कृष्ण कहने लगे कि आप लोग चिंतित ना हो मैं उनको ढूंढ कर लाता हूं। श्री कृष्ण गायें और बछड़ों वन, पर्वत और गुफाओं में खोजने लगे। श्री कृष्ण को गाय और बछड़ों में से कोई भी नहीं मिला क्योंकि श्री कृष्ण की परीक्षा लेने के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने उनका हरण कर लिया था क्योंकि ब्रह्मा जी को लगा था कि श्री कृष्ण अब मदद के लिए उनके पास आएंगे। जब श्री कृष्ण वापिस यमुना तट पर आए तो उन्हें वहां ग्वाल - बाल को भी वहां ना पाकर श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लि

PARIVARTNI EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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भाद्रपद मास परिवर्तिनी एकादशी 2023 25 September 2023 एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है।भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी या वामन एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार्तुमास के शयन के मध्य क्षीरसागर में करवट बदलते हैं ‌ और इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि चतुर्मास में भगवान विष्णु वामन रूप में पाताल लोक में शयन करते हैं। वामन एकादशी महत्व  इस एकादशी व्रत का महत्व श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था। वामन या परिवर्तिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के बौने रूप की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट होते हैं। इसके दूसरे दिन को वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है।  भगवान विष्णु के वामन रूप और मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन वैभव ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से यश की प्राप्ति होती है और कथा को सुनने पढ़ने मात्र से हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त तांबा, चांदी और दही का दान बहुत उत्तम माना गया है । भगवान विष्णु को कमल का

SHRI KRISHNA KA NAAMKARAN SANSKAR KIS NE KIYA

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Lord Krishna: श्री कृष्ण नामकरण संस्कार किस ने किया  श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार यदुवंशियों के कुल गुरु महर्षि गर्ग जी ने किया था जो कि उच्च कोटि के ज्योतिषाचार्य और विद्वान थे।   श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में  अत्याचारी कंस का वध करने के लिए मथुरा नगरी के कारावास में हुआ. जब कंस को पता चला कि देवकी और वसुदेव जी का आठवां पुत्र उसका वध‌ करेगा तो उस ने दोनों को जेल में बंद कर दिया और देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया। सातवीं बार जब देवकी गर्भवती थी तो भगवान के आदेश पर योग माया ने देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।  श्री कृष्ण देवकी और वसुदेव जी की आठवीं संतान थे जिन्हें पैदा होते ही वसुदेव जी भगवान के आदेश पर नंद और यशोदा की बिटिया योग माया से बदल लाएं थे। योग माया ने कंस को बता दिया कि तुम्हें मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है। श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस ने पूतना , शकटासुर और तृणावर्त जैसे राक्षस भेजे थे। इसलिए श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार बहुत गुप्त रूप से किया गया था। वसुदेव जी ने महर्षि गर

BHADRAPAD MASS AJA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE

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 अजा एकादशी 2023  SUNDAY, 10 SEP भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं।  इस दिन श्री विष्णु भगवान की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है क्योंकि एकादशी श्री हरि विष्णु की प्रिय तिथि है। इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। Significance of Aja ekadashi अजा एकादशी का महत्व  अजा एकादशी व्रत करने से सभी पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि प्राप्त होती है। इसका महत्व श्री कृष्ण ने धर्म राज युधिष्ठिर को बताया था कि जो इस दिन भगवान हृषिकेश की पूजा करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा करने से सुख समृद्धि आती है। AJA EKADASHI VRAT KATHA(अजा एकादशी व्रत कथा)   सतयुग में अयोध्या में सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र राज्य करते थे.  जोकि प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट थे। एक बार उन्होंने ने स्वप्न देखा कि उन्होंने ने ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया है.  अगले दिन सुबह जब ऋषि विश्वामित्र उनके दरबार में आए तो उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र को उनका स्वप्न स्मरण करवाया. राजा हरिश्चन्द्र  ने अपना सम्पूर्ण

SAMASYA - PROBLEM समस्या -प्राबल्म

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कठिन परिस्थितियां या फिर जीवन में आने वाली समस्याएं हमें मजबूत बनाती है लेकिन हम बहुत बार समस्या को ही इतना बड़ा मान लेते हैं कि उसके समाधान की तरफ ध्यान ही नहीं देते। बहुत से लोग जीवन में ऐसा सोचते हैं कि ईश्वर ने सारी समस्याएं केवल उनके जीवन में दी है। लेकिन स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अगर किसी दिन आपके जीवन में कोई समस्या ना आए तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप ग़लत मार्ग पर चल रहे है। किसी ने क्या खूब कहा है कि शुक्र है कि मेरे जीवन में रूकावटें है वरना मुर्दों के लिए तो दुश्मन भी रास्ता छोड़ दिया करते हैं। हमारे जीवन में आने वाली कठिनाईयों के कारण हम जितना संघर्ष करते हैं उतना हमारा व्यक्तित्व निखरता है। किसी भी कठिन परिस्थिति के आने पर हम सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर बेहतरीन हल ढूंढ सकते हैं। सारे दुख मेरे हिस्से क्यों आते हैं- प्रेरणादायक प्रसंग एक बार एक व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं से बहुत परेशान था। भगवान को उलाहना दे रहा था कि प्रभु सारी परेशानियां, दु:ख , तकलीफ लगता है आपने मुझे ही दे दी है। मैं तो आपका नाम भी स्मरण करता रहता हूं फिर भी मेरे ही जीवन में इतने कष्ट क्

DIKHAAVE KA DAAN दिखावे का दान

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दान की बहुत ही महत्त्व बताया गया है। कहते हैं कि दान या फिर किसी की मदद इस तरह से करनी चाहिए कि दाएं  हाथ से दान करो तो बाएं हाथ को पता ना चले।  लेकिन बहुत से लोग प्रसिद्ध होने और दिखावे के लिए दान करते जबकि वास्तविकता में उनका आचरण कुछ और ही होता है। दिखावा करने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि ईश्वर सब देख कर है ।  दिखावे के दान का प्रसंग एक बार एक भिखारी ने किसी व्यक्ति की दुकान पर जाकर उससे भीख मांगी ।उस व्यक्ति ने उसे एक सिक्का दे दिया। भिखारी कहने लगा कि बाबूजी मुझे बहुत प्यास लगी है एक गिलास पानी पीने के दे दो भगवान की कृपा आप पर बनी रहे। वह व्यक्ति क्रोध में बोला कि क्या हम तेरी नौकर करने बैठे हैं? पहले भीख मांग रहा था,अब पानी मांग‌ रहा है फिर खाना मांगेगा चल निकल मेरी दुकान से। भिखारी बोला कि बाबूजी गुस्सा ना करें मैं स्वयं आगे जाकर पानी पी लूंगा। मुझ से बहुत बड़ी ग़लती हो गई। कल जब मैं आपकी दुकान के आगे से निकला तो जहां ठंड़े और मीठे शरबत की छबील लगी हुई थी और आप ने स्वयं मुझे पीने के लिए शरबत दिया जब मैंने एक गिलास खत्म कर लिया तो आपने मुझे एक और गिलास शरबत पीने को दिया। मुझे ल

SAKTASUR, TRINAVART RAKSH VADH शकटासुर और तृणावर्त वध

श्री कृष्ण द्वारा शकटासुर राक्षस वध कथा mythology story in hindi  श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण ने जब पुतना का वध कर दिया तो कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए शकटासुर नामक राक्षस को भेजा जो श्री कृष्ण का वध करने आया था। शकटासुर छकड़े में प्रवेश कर शत्रु को मारने में निपुण था। एक दिन श्री कृष्ण को अकेले पाकर शकटासुर नामक राक्षस उनके पालने में आकर बैठ गया।  शकटासुर जैसे ही श्री कृष्ण का वध करने के लिए आगे बढ़ा उसके बोझ से शकटा टूट गया और श्री कृष्ण ने क्रुद्ध होकर उस राक्षस को लात मारकर धरती पर पटक दिया और वह मारा गया। छकड़े का टूटना सुनकर सब दौड़े । श्री कृष्ण के हाथों मारे जाने के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। मां यशोदा ने श्री कृष्ण को उठाकर अपनी छाती से लगा लिया। सभी गांव वासी मां यशोदा और नंद बाबा को बधाई देने लगे कि आपका बालक बच गया। शकटासुर का वध करने के कारण उनका नाम शकटासुर भनजन पड़ा। श्री कृष्ण द्वारा तृणावर्त  राक्षस का वध कथा  तृणावर्त राक्षस को कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा था। तृणावर्त बवंडर का रूप धारण कर श्री कृष्ण को आकाश मे

SHRI KRISHNA KE KANJOOS BHAKT KI KATHA

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 Lord Krishna: श्री कृष्ण के कंजूस भक्त की कथा जब श्री कृष्ण ने उसकी कंजूसी देखकर उसका हाथ पकड़ लिया  एक बार एक कंजूस सेठ करोड़ी मल था। कंजूसी में उसका हाल ऐसा की चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए ।   वह श्री कृष्ण का भक्त था। एक बार वह संत के पास गया और कहने लगा कि महाराज कोई ऐसा उपाय बताए जिससे मैं श्री कृष्ण की सेवा भी कर सकूं और मेरा कोई पैसा भी ना लगे। संत जी उसकी कंजूसी की आदत से अवगत थे इसलिए कहने लगे कि तुम श्री कृष्ण की मानसिक सेवा किया करो। ऐसा आभास करो कि जैसे तुम श्री कृष्ण महाराज के लड्डू गोपाल विग्रह को स्नान करवा रहे हो, उन्हें सुंदर वस्त्र धारण करवा रहे हो, उन्हें भोग लगा रहे हो यह सब तुम को मानसिक रूप से करना है इस लिए इसमें कोई कंजूसी मत करना। पूरे वैभव के साथ श्री कृष्ण के विग्रह की सेवा करना इसमें तुम्हारा कोई पैसा भी नहीं लगेगा और तुमको श्री कृष्ण की भक्ति और सेवा दोनों का फल और आनंद प्राप्त होगा। अब कंजूस सेठ का नियम बन गया वह प्रतिदिन बहुत ही भाव से श्री कृष्ण को स्नान करवाता, वस्त्र धारण करवाता उनकी पूजा- पाठ करता और दूध में शक्कर डालकर भोग लगवाता। ऐसे नियम का पालन क

HAR SAMAY DUSARO KI GALTI NIKALNA

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हर समय दूसरों की गलतियां निकालने को छिद्रान्वेषण कहा जाता है।  कुछ लोग आत्मविश्लेषण की ओर ध्यान ना दे कर हर समय दूसरों की कमियाँ ,गलतियां निकाल कर हर समय छिद्रान्वेषण में लगे रहते हैं। आचार्य चाणक्य का मानना था कि जो व्यक्ति अपना समय दूसरे की गलतियां निकालने में लगे रहते हैं वह जीवन में तरक्की नहीं कर सकते ‌। चाणक्य का मानना था कि," दूसरों के दोष ढूँढने में समय बर्बाद ना करे ऐसा करने से खुद में सुधार करने की गुंजाइश खत्म हो जाती है" । स्वामी विवेकानंद का मानना था कि," अगर अपने जीवन को बदलना है तो हर दिन स्वयं की कमियों का सुधार करो"। बहुत बार हम में से बहुत तो अपने बहुमूल्य जीवन का बहुमुल्य समय दूसरे की बुराई और कमियाँ निकालने में लगा देते हैं लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं देते कि अगर हमने यही समय अपने ऊपर काम करते तो शायद परिणाम कुछ और होते। पढ़े एक प्रसंग अपनी कमियाँ निकालने और दूसरे की कमियाँ निकालने दोनों का फल क्यों अलग अलग है एक बार भगवान का एक भक्त था उसने उनकी भक्ति की और भगवान ने जब वर मांगने को कहा। भक्त कहने लगा कि," प्रभु मैं जो काम करता हूँ उसमें मैं

EK CHHUP SO SUKH एक चुप सौ सुख

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एक चुप सौ सुख - मौन का महत्व मौन का मनुष्य जीवन में बहुत होता है। जिस तरह संवाद हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है उसी तरह जीवन में कई बार मौन रहकर हम बड़े से बड़े क्लेश को टाल सकते हैं।  आचार्य चाणक्य का मानना था कि," मौन रहकर हम कलह का नाश कर सकते हैं"। राम धारी सिंह दिनकर का मानना था कि," वाणी का वर्चस्व रजत है किन्तु मौन कंचन है"। मौन के महत्व की प्रेरणा हमें ईश्वर ने भी दी है इसलिए उन्होंने हमें देखने के लिए दो आंखें, सुनने के लिए दो कान , सुंघने के लिए दो नासिका प्रदान की। लेकिन ईश्वर ने हमें जिह्वा एक ही दी है ताकि हम उसका इस्तेमाल सोच समझ कर सके। जब हम अपनी जिह्वा पर नियंत्रण कर लेते हैं तो बाकी कि इन्द्रियों पर काबू पाया भी सरल हो जाता है। एक चुप सौ सुख का प्रेरणादायक प्रसंग एक बार एक मछली पकड़ने वाला तालाब में मछली पकड़ने वाला काँटा डाल कर किनारे पर बैठ गया। लेकिन उसे बहुत अचरज हुआ क्योंकि कोई बहुत समय बाद भी कोई भी मछली उसके कांँटे  में फंसी ही नहीं थी।उसे लगा कि शायद जहां उसने मछली पकड़ने के लिए काँटा डाला है वहां कोई मछली मौजूद ना हो। लेकिन जब उसने तालाब

AACHRAN- BEHAVIOUR

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हमारा आचरण हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होता है।अच्छे आचरण से अभिप्राय हमारे अच्छे व्यवहार से होता है। अच्छे आचरण करने वाले की सब लोग इज्जत करते हैं। अच्छा आचरण करने वाले में सदाचार, विनम्रता , धैर्य, भाषा में विनम्रता के गुण विद्यमान होते हैं। चोरी करना, दुसरों के हृदय को दुखी करना , बड़ों  का इज्जत सम्मान ना करने वाले के आचरण को हम अच्छा आचरण करने वाला नहीं कह सकते। हम जो भी अच्छा बुरा आचरण करते हैं वह हमारे बर्ताव में भी झलकता है। आचरण बड़ा या ज्ञान पर एक प्रसंग एक बार एक राज्य के राजा अपने राज्य के राजा पुरोहित का बहुत सम्मान करते थे। जब भी वह आते राजा स्वयं अपने सिंहासन से उठकर उनका सम्मान करते थे। एक दिन राजा कहने लगे कि मेरे मन में एक प्रश्न है गुरु देव मुझे बताएं कि किसी व्यक्ति का आचरण बड़ा होता है या फिर उसका ज्ञान बड़ा होता है। राज पुरोहित कहने लगे कि राजन् मुझे कुछ दिनों का समय दे फिर मैं आपको इस प्रश्न का उत्तर दूंगा। राजा बोला गुरुदेव ठीक है। राज पुरोहित अगले दिन राजा के कोषागार में गए और वहां से कुछ सोने की मोहरें उठा कर अपनी पोटली में रख ली। कोषाध्यक्ष चुपचाप सब कुछ दे

SHRI KRISHNA AUR PUTNA VADH KI KATHA

 श्री कृष्ण और पूतना वध की कथा  पूतना का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण, भागवत पुराण, आदि पुराण महाभारत में आता है पूतना एक भयंकर राक्षसी थी.  एक पौराणिक कथा के अनुसार पूतना कैतवी राक्षस की कन्या थी और कंस की पत्नी की सखी थी.  ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी। जब भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास पहुंचे तो रत्नमाला भगवान के सुंदर रूप को देखकर उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त कर उन्हें दुग्ध पान करवाने की इच्छा जागृत हुई।  लेकिन जब भगवान ने दो पग में सारी सृष्टि माप ली और राजा बलि ने वामन भगवान के तीसरा पग रखने के लिए अपना मस्तक आगे किया तो रत्नमाला ने इसे अपने पिता का अपमान समझा और सोचने लगी कि अगर मेरा ऐसा पुत्र होता तो मैं उसे विष दे देती। भगवान ने इस जन्म में उसकी दोनों इच्छाओं को पूर्ण कर दिया। पूतना वध कथा PUTNA VADH KATHA   देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवा पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा। कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि व

LAKSHMI NARAYANA KI KATHA

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 पढ़ें एक प्रेरणादायक कहानी जब मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने ली अपने भक्तों की परीक्षा  LORD VISHNU AND GODDESS LAKSHMI STORY:एक बार भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि पृथ्वी वासियों में भक्ति बहुत बढ़ गई है. लक्ष्मी जी कहने लगी कि , प्रभु वो आप को नहीं मुझे पाना चाहते हैं". नारायण भगवान कहने लगे कि लेकिन वो तो "नारायण- नारायण" कहते हैं. लक्ष्मी जी कहने लगी कि अगर आप को विश्वास नहीं ना हो तो उनकी परीक्षा ले लो. भगवान नारायण एक संत का रूप धारण कर के एक नगर के सेठ के पास पहुंचे और उनसे कहने लगे कि मैं कथा सत्संग करना चाहता हूं । सेठ ने उनके रहने खाने - पीने और कथा करने का पूरा प्रबंध कर दिया। पहले दिन थोड़े से ही लोग कथा सुनने आए। दूसरे दिन भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। संत जी के कथा की प्रसिद्धी हुई तो तीसरे दिन बहुत भीड़ बढ़ गई। अब माता लक्ष्मी विचार करने लगी कि अब मुझे भी चलकर देखना चाहिए। लक्ष्मी जी एक घर के बाहर पहुंची तो घर की मालकिन घर को ताला लगा कर कथा श्रवण करने जा रही थी। लक्ष्मी जी कहने लगी कि ,"बेटी मुझे थोड़ा पानी पिला दो"। वह औरत बोली कि माता जी म

SHRI KRISHNA JANAM KATHA

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श्री कृष्ण जन्म कथा( LORD KRISHNA BIRTH STORY) भगवान विष्णु को भक्त वत्सल कहा जाता है उन्होंने समय समय पर भक्तों और सृष्टि की रक्षा के लिए अवतार लिये। श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था. LORD KRISHNA STORY: पृथ्वी पर जब कंस के अत्याचार बढ़ गये तो पृथ्वी गो रूप धारण कर ब्रह्मा जी के समक्ष गई और कहने लगी कि प्रभु अब मैं असुरों के अत्याचारों से व्याकुल हो गई हूं अब उनके अत्याचार असहनीय हो गए हैं।  ब्रह्मा जी पृथ्वी को भगवान शिव के पास ले गये भगवान शिव कहने लगे कि तुम्हारे कष्ट के निवारण हेतु भगवान विष्णु शीघ्र यदुवंश में धर्मात्मा और भगवान के भक्त वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से अवतार लेंगे। शेष जी भगवान के बड़े भाई के रूप में पहले अवतार लेंगे और भगवान की माया यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होगी। WHERE WAS KRISHNA BORN(श्री कृष्ण का जन्म कहां हुआ) श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। कंस श्री कृष्ण की मां देवकी का भाई और श्री कृष्ण का मामा था। देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी क

DRAUPADI KRIT SHRI KRISHAN STUTI LYRICS

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   द्रोपदी द्वारा गई श्री कृष्ण की स्तुति द्रोपदी ने श्री कृष्ण की स्तुति तब की थी जब कौरवों की सभा में जब युधिष्ठिर अपने भाईयों सहित द्रोपदी को भी जुएं में हार जाता है तो दुर्योधन के आदेश पर जब दुशासन द्रौपदी को सभा- कक्ष में  बालों से खींच कर लाता।  द्रोपदी अपने सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही और अपनी मदद के लिए हर किसी की ओर देखती रही लेकिन कोई भी उसकी सहायता को आगे नहीं आया . लेकिन जब दुशासन ने उसके वस्त्र खींचने शुरू किए तो उसने सब सहारे छोड़ बारम्बार ‘गोविन्द’ और ‘कृष्ण’ का नाम लेकर पुकारा और आपत्तिकाल में अभय देने वाले भगवान श्रीकृष्ण की मन में स्तुति की  शङ्खचक्रगदापाणॆ! द्वरकानिलयाच्युत!  गोविन्द! पुण्डरीकाक्ष!रक्ष मां शरणागताम् ।।   हा कृष्ण! द्वारकावासिन्! क्वासि यादवनन्दन!  इमामवस्थां सम्प्राप्तां अनाथां किमुपेक्षसे।।   गोविन्द! द्वारकावासिन् कृष्ण! गोपीजनप्रिय!  कौरवैः परिभूतां मां किं न जानासि केशव! ।।   हे नाथ! हे रमानाथ! व्रजनाथार्तिनाशन! कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन!।।   कृष्ण! कृष्ण! महायोगिन् विश्वात्मन्! विश्वभावन! ।    प्रपन्नां पाहि गोविन्द! कुरुमध्येऽवसीदती

KANS JANAM KATHA कंस जन्म कथा

कंस जन्म कथा वृष्णिवंश में आहुक राजा के दो पुत्र थे देवक और उग्रसेन। उग्रसेन की पत्नी का नाम पवनरेखा था जो कि बहुत ही सुंदर और पतिव्रता स्त्री थी।  एक दिन पवन रेखा अपनी सखियों के संग वन में विहार करने के लिए गई। वन में वह अपनी सखियों से बिछड़ गई और महा भयानक वन में पहुंच गई ।देव योग से द्रुमलिक नामक एक राक्षस भी उस वन में पहुंच गया और उसकी सुंदरता को देखकर कामातुर हो गया और वह भोग करने की सोचने लगा। उसने अपनी राक्षसी माया से जान लिया कि यह राजा उग्रसेन की पतिव्रता स्त्री है। राक्षस सोचने लगा कि बिना किसी धोखे के यह स्त्री वश में नहीं आएंगी। इसलिए उसने राजा उग्रसेन का रूप धारण कर उससे कामभोग की इच्छा जताई। वह उसकी राक्षसी माया को पहचान ना सकी और कहने लगी कि दिन में भोग करने से धर्म, शील, तेज़ सब नष्ट हो जाते हैं। आप जैसा परम ज्ञानी दिन में कामभोग की बात कर रहा है। उसने बहुत प्रकार उसे समझाने का प्रयास किया। राक्षस द्रुमलिक ने उसकी एक ना सुनी और उसे पकड़ लिया और उसके साथ भोग करने के पश्चात अपना राक्षस रूप प्रकट किया।  उसकी सच्चाई जान कर पवनरेखा उसे धिक्कारने लगी कि तुम ने मेरे सतीत्व को