AACHRAN- BEHAVIOUR
हमारा आचरण हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होता है।अच्छे आचरण से अभिप्राय हमारे अच्छे व्यवहार से होता है। अच्छे आचरण करने वाले की सब लोग इज्जत करते हैं। अच्छा आचरण करने वाले में सदाचार, विनम्रता, धैर्य, भाषा में विनम्रता के गुण विद्यमान होते हैं।
चोरी करना, दुसरों के हृदय को दुखी करना , बड़ों का इज्जत सम्मान ना करने वाले के आचरण को हम अच्छा आचरण करने वाला नहीं कह सकते। हम जो भी अच्छा बुरा आचरण करते हैं वह हमारे बर्ताव में भी झलकता है।
आचरण बड़ा या ज्ञान पर एक प्रसंग
एक बार एक राज्य के राजा अपने राज्य के राजा पुरोहित का बहुत सम्मान करते थे। जब भी वह आते राजा स्वयं अपने सिंहासन से उठकर उनका सम्मान करते थे। एक दिन राजा कहने लगे कि मेरे मन में एक प्रश्न है गुरु देव मुझे बताएं कि किसी व्यक्ति का आचरण बड़ा होता है या फिर उसका ज्ञान बड़ा होता है।
राज पुरोहित कहने लगे कि राजन् मुझे कुछ दिनों का समय दे फिर मैं आपको इस प्रश्न का उत्तर दूंगा। राजा बोला गुरुदेव ठीक है।
राज पुरोहित अगले दिन राजा के कोषागार में गए और वहां से कुछ सोने की मोहरें उठा कर अपनी पोटली में रख ली। कोषाध्यक्ष चुपचाप सब कुछ देख रहा था लेकिन वह राजा के पुरोहित है ऐसा सोच मौन रहे। राज पुरोहित कुछ दिन तक लगातार ऐसा करते रहे। कोषागार में जाते सोने की मोहरें पोटली में रखते और वापिस आ जाते।
कोषाध्यक्ष ने सारा वृत्तांत राजा को सुना दिया। राज पुरोहित एक दिन राजा महल में पहुंचे आज ना तो राजा स्वयं उन्हें लेने गया और ना ही सम्मान में सिंहासन से उठा। राज पुरोहित समझ गए कि मेरी स्वर्ण मुद्राएं चोरी करने की बात राजा तक पहुंच गई है।
राजा ने भौंहें तान कर पूछा क्या आपने कोषागार से स्वर्ण मुद्राएं चोरी की है ? राज पुरोहित ने कहा कि हां राजन् यह बात सत्य है। राजा ने क्रोधित होकर पूछा आपने ऐसा क्यों किया?
राज पुरोहित कहने लगे कि मैंने जानबूझ कर स्वर्ण मुद्राएं चुराई थी क्योंकि मैं आप को प्रत्यक्ष दिखाना चाहता था कि किसी व्यक्ति का आचरण बड़ा होता है या फिर ज्ञान।
राजन् जब आपको पता चला कि मैंने स्वर्ण मुद्राएं चोरी की है आप मेरे सम्मान में खड़े नहीं हुए उल्टा क्रोध से आपकी भौंहें मुझ पर तन गई। मेरा ज्ञान तो स्वर्ण मुद्राएं उठाने से पहले भी मेरे पास था और उठाने के बाद भी मेरे साथ ही था। लेकिन जैसे ही मेरे चोर होने की बात आपको ज्ञात हुई मेरे प्रति आपका जो सम्मान था वह लगभग समाप्त हो गया।
राजन् अब शायद आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। मेरा जो आप सम्मान करते हैं वो मेरे आचरण के कारण करते थे जैसे ही मेरा आचरण बदला आपने मेरा सम्मान नहीं किया।
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