BHADRAPAD MASS AJA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE
अजा एकादशी 2023
SUNDAY, 10 SEP
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इस दिन श्री विष्णु भगवान की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है क्योंकि एकादशी श्री हरि विष्णु की प्रिय तिथि है। इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।
Significance of Aja ekadashi अजा एकादशी का महत्व
अजा एकादशी व्रत करने से सभी पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि प्राप्त होती है। इसका महत्व श्री कृष्ण ने धर्म राज युधिष्ठिर को बताया था कि जो इस दिन भगवान हृषिकेश की पूजा करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा करने से सुख समृद्धि आती है।
AJA EKADASHI VRAT KATHA(अजा एकादशी व्रत कथा)
सतयुग में अयोध्या में सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र राज्य करते थे. जोकि प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट थे। एक बार उन्होंने ने स्वप्न देखा कि उन्होंने ने ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया है.
अगले दिन सुबह जब ऋषि विश्वामित्र उनके दरबार में आए तो उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र को उनका स्वप्न स्मरण करवाया. राजा हरिश्चन्द्र ने अपना सम्पूर्ण राज्य ऋषि को भेट कर दिया.
ऋषि विश्वामित्र ने उनसे दक्षिणा में स्वर्ण मुद्राएँ मांगी तो राजा ने कहा कि राज्य के साथ ही मेरा खजाना भी आप का हो गया है.
दान की दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेच दिया. राजा हरिश्चन्द्र एक चांडाल के दास बन गए क्यों कि उनको एक डोम ने खरीदा था जो कर लेकर शमशान में लोगों के दाह संस्कार करवाता था. कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा.
एक दिन राजा हरिश्चन्द्र चिंता मग्न थे कि मेरा उद्धार कैसे होगा ? उसी समय महर्षि गौतम उनके पास आए. महर्षि गौतम ने उन्हें भाद्रमाह के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत करने और रात्रि को जागरण करने को कहा. महर्षि गौतम ने कहा कि इस व्रत से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएगे.
महर्षि गौतम के कहे अनुसार राजा हरिश्चन्द्र ने व्रत और रात्रि जागरण किया. अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हुए और उनके सारे कष्ट दूर हुए. आकाश में बाजे बजने लगे और ब्रह्मा विष्णु और शिव तथा इंद्र आदि देवता उसके सामने प्रकट हुए और उन्होंने उसके मृत पुत्र को जीवन प्रदान किया।
राजा हरिश्चन्द्र को अपना खोया हुआ राज्य, पत्नी और पुत्र पुनः मिल गया और उनके पिछले जन्मों के पाप नष्ट हो गए. अन्त में सपरिवार स्वर्ग की प्राप्ति हुई। भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहने लगे कि यह सब कुछ अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से हुआ। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश होता है और स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। इस एकादशी की कथा के सुनने पढ़ने से अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
एक व्रत विधि
एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए.
इस दिन विष्णु भगवान के शंख, चक्र, गदा और पदम् धारी रूप की पूजा करनी चाहिए।
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.
भगवान कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए. गीता का पाठ करना चाहिए.
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.
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