DIKHAAVE KA DAAN दिखावे का दान
दान की बहुत ही महत्त्व बताया गया है। कहते हैं कि दान या फिर किसी की मदद इस तरह से करनी चाहिए कि दाएं हाथ से दान करो तो बाएं हाथ को पता ना चले।
लेकिन बहुत से लोग प्रसिद्ध होने और दिखावे के लिए दान करते जबकि वास्तविकता में उनका आचरण कुछ और ही होता है। दिखावा करने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि ईश्वर सब देख कर है।
दिखावे के दान का प्रसंग
एक बार एक भिखारी ने किसी व्यक्ति की दुकान पर जाकर उससे भीख मांगी ।उस व्यक्ति ने उसे एक सिक्का दे दिया।
भिखारी कहने लगा कि बाबूजी मुझे बहुत प्यास लगी है एक गिलास पानी पीने के दे दो भगवान की कृपा आप पर बनी रहे।
वह व्यक्ति क्रोध में बोला कि क्या हम तेरी नौकर करने बैठे हैं? पहले भीख मांग रहा था,अब पानी मांग रहा है फिर खाना मांगेगा चल निकल मेरी दुकान से।
भिखारी बोला कि बाबूजी गुस्सा ना करें मैं स्वयं आगे जाकर पानी पी लूंगा। मुझ से बहुत बड़ी ग़लती हो गई। कल जब मैं आपकी दुकान के आगे से निकला तो जहां ठंड़े और मीठे शरबत की छबील लगी हुई थी और आप ने स्वयं मुझे पीने के लिए शरबत दिया जब मैंने एक गिलास खत्म कर लिया तो आपने मुझे एक और गिलास शरबत पीने को दिया। मुझे लगा कि आप बहुत ही दानी सज्जन हैं लेकिन आज मुझे आभास हो रहा है कि आपने वो छबील लोगों को दिखाने के लिए लगाई थी ना कि किसी प्यासे की प्यास बुझाने के लिए नहीं।
इतना सुनते ही उस व्यक्ति की नज़रों के आगे कल का सारा दृश्य घूम गया उसे अब अपनी ग़लती का अहसास हुआ। उसने अब स्वयं उठकर उस भिखारी को पानी पिलाया और उनसे क्षमा मांगी।
भिखारी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि अगर आप दान पुण्य दिखावे के लिए कर रहे हैं वह निष्फल है। क्योंकि दुनिया दिखावा देखती है और ईश्वर आपकी नियत ।यह अब आप पर है आप किसे खुश करना चाहते हैं।
स्वर्ग की रोटी
सेठ के बेटे का विवाह बहुत ही सुंदर और संस्कारी लड़की से हुआ। जब उस लड़की को खराब राशन के भण्डारे में प्रयोग करने की बात पता चली तो उसने अपनी सासू मां से इस विषय में प्रश्न किया। सासू मां कहने लगी कि," मैंने तुम्हारे ससुर को बहुत बार टोका है ,लेकिन उनके जिद्दी स्वभाव के आगे मेरी एक नहीं चलती"।
बहू कहने लगी कि," मां जी अब जैसे मै कहूं आप वैसे करना फिर देखना पिता जी को अपनी ग़लती का अहसास होगा"।
उसकी सास ने अगले दिन अपने पति से कहा कि आज बहू ने दो तरह की रोटी बनाई है -एक स्वर्ग की और एक नरक की ।
साहूकार यह सुनकर आश्चर्य चकित हो गया कि ,"मैंने आज से पहले ना कभी ऐसी रोटी देखी ना सुनी। चलो ठीक है बहू ने बनाई है तो खा लेते हैं"। बहू ने पूछा पिता जी पहले कौन सी रोटी खाएंगे? स्वर्ग वाली या नर्क वाली ।
साहूकार कहने लगा कि बेटी पहले स्वर्ग वाली ही खिला दो ।बहू ने स्वर्ग वाली रोटी उसकी थाली में रख दी और नर्क वाली साहूकार की थाली के साथ रख दी।
स्वर्ग की रोटी ना देखने अच्छी थी और ना साहूकार को खाने लायक लगी । लेकिन नई नवेली दुल्हन ने रोटी बनाई है यह सोच वह चुपचाप खा गया और सासू मां तो सब कुछ जानती थी इसलिए उन्होंने भी बिना कुछ बोले स्वर्ग की रोटी खा ली। उसके पश्चात् साहूकार ने नर्क वाली रोटी खाई जो कि एक दम नरम और स्वादिष्ट थी।
जब साहूकार ने भोजन कर लिया तो उसने अपनी बहू से पूछा कि बेटी नर्क की रोटी नरम और स्वादिष्ट थी जबकि स्वर्ग की ना देखने में अच्छी थी और ना खाने में । मैं बहुत मुश्किल से उस रोटी को खा पाया। बहू कहने लगी कि पिता जी हम सब को हर रोज़ स्वर्ग की रोटी खाने की आदत डालनी होगी।
इतना सुनते ही साहूकार अचरज से बोला कि," बेटी तुम्हारी स्वर्ग- नर्क की रोटी की बात मेरी समझ में नहीं आई"।
बहू कहने लगी कि पिता जी वेदों पुराणों में लिखा है कि," हम जो दान करते हैं वहीं भोजन हमें मृत्यु के पश्चात खाने के लिए मिलता है"। यह रोटी मैंने उस अन्न से बनाई है जिसका आप भण्डारा लगाते हो।
यहां धरती पर तो हम अच्छे अन्न से बन खाना खाते हैं लेकिन मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में आपको, मां जी को , मुझे और मेरे पति को ऐसे ही अन्न का भोजन मिलेगा इसलिए मैंने सोचा कि क्यों ना हम अब से ही स्वर्ग में मिलने वाली रोटी खाना शुरू कर दें।
आप सेठ को अपनी ग़लती का अहसास हो चुका था । सेठ ने अब से निश्चित किया कि वह सदैव अच्छे अन्न का ही भण्डारे में प्रयोग करेंगा क्यों कि उसकी आंखें उसकी समझदार बहू ने खोल दी थी।
इसलिए कहते हैं कि दान पुण्य दुनिया को दिखाने के लिए नहीं करना चाहिए । क्योंकि दुनिया बाहरी दिखावा देखती है और ईश्वर आपकी नियत। यह आप पर है आप किसे प्रसन्न करना चाहते हैं दुनिया को या फिर ईश्वर को।
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