DRAUPADI KRIT SHRI KRISHAN STUTI LYRICS

   द्रोपदी द्वारा गई श्री कृष्ण की स्तुति


द्रोपदी ने श्री कृष्ण की स्तुति तब की थी जब कौरवों की सभा में जब युधिष्ठिर अपने भाईयों सहित द्रोपदी को भी जुएं में हार जाता है तो दुर्योधन के आदेश पर जब दुशासन द्रौपदी को सभा- कक्ष में  बालों से खींच कर लाता।

 द्रोपदी अपने सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही और अपनी मदद के लिए हर किसी की ओर देखती रही लेकिन कोई भी उसकी सहायता को आगे नहीं आया .

लेकिन जब दुशासन ने उसके वस्त्र खींचने शुरू किए तो उसने सब सहारे छोड़ बारम्बार ‘गोविन्द’ और ‘कृष्ण’ का नाम लेकर पुकारा और आपत्तिकाल में अभय देने वाले भगवान श्रीकृष्ण की मन में स्तुति की 

शङ्खचक्रगदापाणॆ! द्वरकानिलयाच्युत! 

गोविन्द! पुण्डरीकाक्ष!रक्ष मां शरणागताम् ।। 


 हा कृष्ण! द्वारकावासिन्! क्वासि यादवनन्दन! 

इमामवस्थां सम्प्राप्तां अनाथां किमुपेक्षसे।। 


 गोविन्द! द्वारकावासिन् कृष्ण! गोपीजनप्रिय! 

कौरवैः परिभूतां मां किं न जानासि केशव! ।। 


 हे नाथ! हे रमानाथ! व्रजनाथार्तिनाशन!

कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन!।। 


 कृष्ण! कृष्ण! महायोगिन् विश्वात्मन्! विश्वभावन! । 

  प्रपन्नां पाहि गोविन्द! कुरुमध्येऽवसीदतीम्।। 

 

नीलोत्पलदलश्याम! पद्मगर्भारुणेक्षण! 

पीतांबरपरीधान! लसत्कौस्तुभभूषण! ।। 

 

त्वमादिरन्तो भूतानां त्वमेव च परा गतिः।

विश्वात्मन्! विश्वजनक! विश्वहर्तः प्रभोऽव्यय! ।। 

 

प्रपन्नपाल! गोपाल! प्रजापाल! परात्पर! 

आकूतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नतास्मि ते ।। 


द्रौपदी की करुण पुकार सुनकर कृपालु श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए और भगवान श्रीकृष्ण ने वहां पधारकर अव्यक्तरूप से द्रौपदी की साड़ी में प्रवेश किया और बलवान दुशासन साड़ी खींचते खींचते थक गया लेकिन साड़ी का अंत नहीं मिला। इस तरह द्रोपदी की लाज श्री कृष्ण ने बचाई।

द्रोपदी कृत श्री कृष्ण की स्तुति को नियमित रूप से पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।

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