EK CHHUP SO SUKH एक चुप सौ सुख


एक चुप सौ सुख - मौन का महत्व

मौन का मनुष्य जीवन में बहुत होता है। जिस तरह संवाद हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है उसी तरह जीवन में कई बार मौन रहकर हम बड़े से बड़े क्लेश को टाल सकते हैं।
 आचार्य चाणक्य का मानना था कि," मौन रहकर हम कलह का नाश कर सकते हैं"।

राम धारी सिंह दिनकर का मानना था कि," वाणी का वर्चस्व रजत है किन्तु मौन कंचन है"।

मौन के महत्व की प्रेरणा हमें ईश्वर ने भी दी है इसलिए उन्होंने हमें देखने के लिए दो आंखें, सुनने के लिए दो कान , सुंघने के लिए दो नासिका प्रदान की। लेकिन ईश्वर ने हमें जिह्वा एक ही दी है ताकि हम उसका इस्तेमाल सोच समझ कर सके। जब हम अपनी जिह्वा पर नियंत्रण कर लेते हैं तो बाकी कि इन्द्रियों पर काबू पाया भी सरल हो जाता है।

एक चुप सौ सुख का प्रेरणादायक प्रसंग

एक बार एक मछली पकड़ने वाला तालाब में मछली पकड़ने वाला काँटा डाल कर किनारे पर बैठ गया। लेकिन उसे बहुत अचरज हुआ क्योंकि कोई बहुत समय बाद भी कोई भी मछली उसके कांँटे  में फंसी ही नहीं थी।उसे लगा कि शायद जहां उसने मछली पकड़ने के लिए काँटा डाला है वहां कोई मछली मौजूद ना हो। लेकिन जब उसने तालाब में ध्यान से झांका तो उसे बहुत सी मछलियां पानी में तैरती हुई दिखी। अब तो वह आश्चर्यचकित था कि कोई भी मछली कांँटे में क्यों नहीं फंसी।

तभी गांव का एक व्यक्ति वहां से गुजर रहा था वह दूर से सब देख रहा था। वह मछली पकड़ने वाले के समीप पहुंच कर बोला कि शायद आप बहुत देर बाद जहां मछली पकड़ने आये हैं। इस बार शायद कोई भी मछली आपके कांँटे में नहीं फंसेगी।

मछली पकड़ने वाले ने आश्चर्य से पूछा कि ऐसा क्यों? वह व्यक्ति कहने लगा कि कुछ दिन पहले जहां पर एक संत प्रवचन करने के लिए आये थे और वह प्रतिदिन इस तालाब के किनारे ही अपना प्रवचन देते थे।

एक दिन संत जी ने मौन की महत्ता बताई थी । उनकी वाणी में एक तेज़ था कि उनके प्रवचनों का सब पर बहुत प्रभाव पड़ता था। लगता है कि तालाब की मछलियों ने भी उनके प्रवचनों का प्रभाव हो गया है। शायद उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई तालाब में उन्हें पकड़ने के लिए काँटा डालता है तो वह मौन धारण कर लेती है। जब मछली अपना मुंह खोलेंगी ही नहीं तो काँटे में कैसे फंसेगी?

इस लिए आप मछली पकड़ने के लिए अपना काँटा किसी और तालाब में डालो।

#प्रेरणादायक #मुहावरे #motivation



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