HAR SAMAY DUSARO KI GALTI NIKALNA
हर समय दूसरों की गलतियां निकालने को छिद्रान्वेषण कहा जाता है।
कुछ लोग आत्मविश्लेषण की ओर ध्यान ना दे कर हर समय दूसरों की कमियाँ ,गलतियां निकाल कर हर समय छिद्रान्वेषण में लगे रहते हैं।
आचार्य चाणक्य का मानना था कि जो व्यक्ति अपना समय दूसरे की गलतियां निकालने में लगे रहते हैं वह जीवन में तरक्की नहीं कर सकते ।
चाणक्य का मानना था कि," दूसरों के दोष ढूँढने में समय बर्बाद ना करे ऐसा करने से खुद में सुधार करने की गुंजाइश खत्म हो जाती है" ।
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि," अगर अपने जीवन को बदलना है तो हर दिन स्वयं की कमियों का सुधार करो"।
बहुत बार हम में से बहुत तो अपने बहुमूल्य जीवन का बहुमुल्य समय दूसरे की बुराई और कमियाँ निकालने में लगा देते हैं लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं देते कि अगर हमने यही समय अपने ऊपर काम करते तो शायद परिणाम कुछ और होते।
पढ़े एक प्रसंग अपनी कमियाँ निकालने और दूसरे की कमियाँ निकालने दोनों का फल क्यों अलग अलग है
एक बार भगवान का एक भक्त था उसने उनकी भक्ति की और भगवान ने जब वर मांगने को कहा। भक्त कहने लगा कि," प्रभु मैं जो काम करता हूँ उसमें मैं हर प्रकार से दक्ष होना चाहता हूँ"।
भगवान ने उसे एक कपड़े से बंधी हुई दो पोटली दी और कहने लगे कि ध्यान रखना कि आगे वाली पोटली पीछे नहीं आनी चाहिए और पीछे वाली आगे नहीं जानी चाहिए। उसने वैसे ही किया आगे वाली पोटली के प्रभाव के कारण उसे अपनी कमियाँ दिख जाती थी जिसे वो सुधारता गया और जीवन में तरक्की करता गया।
लेकिन एक दिन गलती से उससे पोटली बदल गई आगे वाली पोटली पीछे और पीछे वाली आगे आ गई। दूसरी पोटली के प्रभाव के कारण उसे सामने वाले की कमियाँ ,बुराईयां नजर आती थी। अब वह हर समय दूसरों की कमियाँ निकालने, उनकी निंदा चुगली करने में लगा रहता।
अब अपनी कमियाँ ना दिखने के कारण उसकी तरक्की रूक गई ।उसे व्यापार में लगातार घाटा होने लगा ।उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्यों हो रहा है?
उसने फिर से भगवान को याद किया तो भगवान कहने लगे कि इसमें तेरी ही गलती है ।जब तक तेरी कमियाँ दिखाने वाली पोटली आगे रही तू उन कमियों को दूर कर तरक्की करता गया लेकिन जैसे ही तुमने गलती से पोटली बदल दी वैसे ही तुम को सामने वाले की कमियाँ नज़र आने लगी ।
तुझे उनकी निंदा चुगली करने में, उनकी कमियाँ निकालने में आनंद आने लगा तो तुम्हारा ध्यान अपने व्यापार से भटक गया इसलिए तुम्हारी तरक्की रूक गई ।
भगवान कहने लगे कि," तू व्यर्थ ही दूसरों को सुधारने के चक्कर में पड़ गया। हर एक में कमियां ढूंढने लगा अपना कीमती समय निंदा, चुगली में लगाने से तुम को क्या लाभ हुआ"? तुम्हारे कहने से कोई सुधारा तो नहीं लेकिन उल्टे उस चक्कर में तुम्हारी अपनी तरक्की रूक गई। अब उस व्यक्ति को अपनी ग़लती का अहसास हो गया।
हमारे आपके साथ भी ऐसा ही होता है ।हम लगे रहते हैं दिन रात अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों की कमियां ढूंढने लेकिन शायद हम भी ईश्वर की थी हूई समझदारी की पोटली का ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाते। इस लिए निंदा, चुगली छोड़ कर अपने लक्ष्य पर ध्यान क्रेन्द्रित करो।
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