KANS JANAM KATHA कंस जन्म कथा
कंस जन्म कथा
वृष्णिवंश में आहुक राजा के दो पुत्र थे देवक और उग्रसेन। उग्रसेन की पत्नी का नाम पवनरेखा था जो कि बहुत ही सुंदर और पतिव्रता स्त्री थी।
एक दिन पवन रेखा अपनी सखियों के संग वन में विहार करने के लिए गई। वन में वह अपनी सखियों से बिछड़ गई और महा भयानक वन में पहुंच गई ।देव योग से द्रुमलिक नामक एक राक्षस भी उस वन में पहुंच गया और उसकी सुंदरता को देखकर कामातुर हो गया और वह भोग करने की सोचने लगा।
उसने अपनी राक्षसी माया से जान लिया कि यह राजा उग्रसेन की पतिव्रता स्त्री है। राक्षस सोचने लगा कि बिना किसी धोखे के यह स्त्री वश में नहीं आएंगी। इसलिए उसने राजा उग्रसेन का रूप धारण कर उससे कामभोग की इच्छा जताई।
वह उसकी राक्षसी माया को पहचान ना सकी और कहने लगी कि दिन में भोग करने से धर्म, शील, तेज़ सब नष्ट हो जाते हैं। आप जैसा परम ज्ञानी दिन में कामभोग की बात कर रहा है। उसने बहुत प्रकार उसे समझाने का प्रयास किया।
राक्षस द्रुमलिक ने उसकी एक ना सुनी और उसे पकड़ लिया और उसके साथ भोग करने के पश्चात अपना राक्षस रूप प्रकट किया।
उसकी सच्चाई जान कर पवनरेखा उसे धिक्कारने लगी कि तुम ने मेरे सतीत्व को भंग क्यों किया ? राक्षस द्रुमलिक कहने लगा कि तुम को एक बलवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। वह समस्त भूमण्डल को जीतकर अपना राज्य स्थापित करेगा। उसके अत्याचारों से पृथ्वी पर जब सब दुखी होंगे तो श्री हरि स्वयं अवतार लेकर उसका उधार करेंगे।
उसके भोग करने के कारण वह बहुत व्यथित थी लेकिन फिर भी यह सोच कर कि भगवान की इच्छा बलवान है वह धीरे धीरे चल कर जंगल से बाहर निकली । सखियों संग रथ पर सवार होकर राजमहल पहुंच गई।
दस मास के पश्चात उसने एक बालक को जन्म दिया। जब बालक उत्पन्न हुआ तो भयानक आंधी चलने लगी मानो महाप्रलय होने वाला हो। सब ओर अंधकार हो गया, उल्कापात होने लगे , बिजली चमकने लगी।
राजा उग्रसेन ने ज्योतिषियों को बुलाकर बालक का भविष्य जानना चाहा। उन्होंने बताया कि बालक बहुत बलवान होगा और अपने बल से समस्त भूमण्डल को जीत लेगा। बालक बहुत अधर्मी और दुराचारी होगा। वह अपने राज्य में धार्मिक कार्य पूजा,हवन यज्ञ नहीं करने देगा।
इसके अत्याचारों से पृथ्वी व्याकुल हो कर अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से पुकार करेंगी तो भगवान विष्णु स्वयं अवतार लेकर इसका उधार करेंगे।
ज्योतिषियों की बातें सुन कर राजा उग्रसेन दुःखी हुए लेकिन सब ईश्वर की लीला है यह सोच कर अपने दुःख को भुलाकर याचकों को दान दक्षिणा दीं और बालक का पालन पोषण करने लगे।
बालक जब पांच साल का हुआ तो खेल- खेल में बालकों को यमुनाजी में डुबो देता, ऊंचे वृक्षों के ऊपर चढ़ा कर नीचे गिरा देता, किसी को पेड़ से बांध देता है, वह ज्यों ज्यों बड़ा होता गया उसका मथुरा वासियों को मारना और सताना बढ़ता गया।
प्रजाजन जब राजा से शिकायत करते तो वह कंस को डांटते तू इतना उत्पात क्यों मचाता है? लेकिन सुधरने की बजाय उसके उत्पात और बढ़ गये। राजा उग्रसेन भी विचार करते कि ऐसी संतान से ईश्वर ही रक्षा कर सकते हैं .
कंस ने मल्ल युद्ध राजा जरासंध को हरा दिया तो जरासंध ने उसकी वीरता और पुरूषार्थ से प्रसन्न होकर अपनी पुत्रियों का विवाह कंस से कर दिया.
कुछ समय के पश्चात कंस ने राजा उग्रसेन को भी लात मार कर गद्दी से हटा दिया और स्वयं सिहांसन पर आसीन हो गया. उसने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि कोई भी जप, तप, धर्म कर्म यज्ञ नहीं करेगा और जो आज्ञा का उल्लंघन करेगा उसे कठोर दंड दिया जाएगा.
कंस के अत्याचारों के भय से सभी धर्म कर्म, शुभ कार्य बंद हो गए. ब्राह्मणों और हरि भक्तों को कष्ट दिया जाने लगा चारों ओर अधर्म का बोलबाला हो गया.
पृथ्वी पर जब कंस के अत्याचार बढ़ गये तो पृथ्वी गाय का रूप धारण कर ब्रह्मा जी के पास गई और कहने लगी कि प्रभु मैं कंस के अत्याचारों से व्याकुल हो गई हूं। आप तो सब जानते हैं अब उनका अत्याचार असहनीय हो गया .
भगवान शिव ब्रह्मा जी और पृथ्वी से कहने लगे कि आप परेशान ना हों भगवान विष्णु आपका कष्ट हरने के लिए यदुकुल में शीघ्र ही अवतार लेंगे।
इस लिए तुम लोग भी अपने अपने अंश रूप में अवतार धारण करो ताकि जब प्रभु पृथ्वी पर विचरण करे तो आप सब सहायक रुप में उनके साथ रहना। यदुवंश में प्रभु धर्मात्मा और भगवान के भक्त वसुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लेंगे। शेष जी भगवान के बड़े भाई के रूप में भगवान से पहले अवतार लेंगे। भगवान की माया जो सबसे प्रबल है वह माता यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होगी।
भगवान शिव की बात सुनकर ब्रह्मा जी पृथ्वी से कहने लगे कि तुम धन्य हो जो तुम्हारे कष्ट दूर करने के लिए प्रभु अवतार लेंगे और असुरों के अत्याचारों से तुम को मुक्त करवाएंगे।
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