LAKSHMI NARAYANA KI KATHA

 पढ़ें एक प्रेरणादायक कहानी जब मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने ली अपने भक्तों की परीक्षा 


LORD VISHNU AND GODDESS LAKSHMI STORY:एक बार भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि पृथ्वी वासियों में भक्ति बहुत बढ़ गई है. लक्ष्मी जी कहने लगी कि , प्रभु वो आप को नहीं मुझे पाना चाहते हैं".

नारायण भगवान कहने लगे कि लेकिन वो तो "नारायण- नारायण" कहते हैं. लक्ष्मी जी कहने लगी कि अगर आप को विश्वास नहीं ना हो तो उनकी परीक्षा ले लो.

भगवान नारायण एक संत का रूप धारण कर के एक नगर के सेठ के पास पहुंचे और उनसे कहने लगे कि मैं कथा सत्संग करना चाहता हूं । सेठ ने उनके रहने खाने - पीने और कथा करने का पूरा प्रबंध कर दिया।

पहले दिन थोड़े से ही लोग कथा सुनने आए। दूसरे दिन भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। संत जी के कथा की प्रसिद्धी हुई तो तीसरे दिन बहुत भीड़ बढ़ गई।

अब माता लक्ष्मी विचार करने लगी कि अब मुझे भी चलकर देखना चाहिए। लक्ष्मी जी एक घर के बाहर पहुंची तो घर की मालकिन घर को ताला लगा कर कथा श्रवण करने जा रही थी। लक्ष्मी जी कहने लगी कि ,"बेटी मुझे थोड़ा पानी पिला दो"।

वह औरत बोली कि माता जी मुझे तो सत्संग श्रवण करने में देर हो रही है। लेकिन फिर भी उसने बे मन से लक्ष्मी माता को एक लोटा जल का पीने को दें दिया। जब लक्ष्मी माता ने उसे लोटा वापिस किया तो वह सोने का हो चुका था।

 सोने का लोटा देख कर वह औरत उत्साहित होकर कहती हैं कि, माता जी आप को भूख भी लगी होगी खाने को कुछ लाती हूं"। उसके मन में चल रहा था कि खाने की प्लेट, कटोरी, चम्मच भी सोने का हो जाएगा। लक्ष्मी माता कहने लगे कि नहीं बिटिया तुम को कथा श्रवण में देर हो जाएगी इसलिए रहने दो।

वह औरत बेमन से कथा सुनने चली गई। वहां जाकर उसने चमत्कारी बुढ़िया के बारे में सब औरतों को बता दिया। धीरे- धीरे बहुत सी औरतें चलते सत्संग में माता जी के दर्शन करने उठ कर चली गई। 

माता जी जिसके घर में भोजन करती,जल पीती उसके बर्तन सोने के हो जाते। माता जी की प्रसिद्धी बढ़ गई और भगवान विष्णु जो कथाकार के रूप में धरती पर आएं थे , उनकी कथा सुनने वालों की संख्या कम होती गई। भगवान ने यजमान से पूछा कि अब कथा सुनने कम लोग क्यों आते हैं? उन्होंने कहा कि नगर में कोई चमत्कारी बुढ़िया आई है जिस भी बर्तन में खाना खाती है , पानी पीती है वह सोने का हो जाता है।

भगवान समझ गए कि लक्ष्मी जी का आगमन हो गया है। अब जिस सेठ ने विष्णु जी के रहने खाने कथा कि व्यवस्था की थी वह भी चमत्कारी माता जी के पास पहुंचे और कहने लगे कि आप मेरे घर पर क्यों नहीं पधारी?

लक्ष्मी जी कहने लगी कि ,"जब तक वह कथाकार तुम्हारे घर पर हैं मैं वहां नहीं आऊंगी"। सेठ जल्दी से घर गया और कथाकार से कहने लगा कि महाराज आपके रहने खाने की व्यवस्था मैंने धर्मशाला में करवा दी है । कथाकार कहने लगे कि अब तो कथा में कुछ दिन ही शेष रह गये है फिर आपने मेरी व्यस्था धर्मशाला में क्यों करवा दी?

सेठ कहने लगा कि मेरे घर में आपसे भी कोई खास रहने आने वाला है। लक्ष्मी जी उस सेठ के पीछे - पीछे ही उसके घर पर आ गई थी वह सेठ से कहने लगी कि मुझे इस कथाकार से कोई जरूरी बात करनी है कृपया आप बाहर जाये।

सेठ के बाहर जाते ही लक्ष्मी जी कहने लगी कि," क्यों प्रभु" मैंने क्या कहा था" ?यह भक्ति आपको पाने के नहीं मुझे पाने के लिए कर रहे हैं।

 भगवान कहने लगे कि, लक्ष्मी माना तुम उचित कह रही हो लेकिन तुम यहां पर तब आई जब मैं नारायण 'संत' के रूप में जहां पधारा और जहां संत कथा करते हैं धार्मिक अनुष्ठान होते हैं वहां लक्ष्मी स्वत चली आती है।

भगवान विष्णु‌‌ अपने धाम वापिस लौट गए। अगले दिन सेठ के घर पर लोगों का तांता लग गया हर कोई चाहता था कि चमत्कारी बुढ़िया उसके घर पर आकर भोजन ग्रहण करें ताकि उनके बर्तन भी सोने के हो जाएं। 

लेकिन यह क्या माता जी ने सब को चौंका दिया कि मैं अब वापस जा रही हूं। सब लोग आश्चर्य से पूछने लगे कि क्या माता जी हमसे कोई ग़लती हो गई है  माँ लक्ष्मी कहने लगी कि मैं वही रहती हूँ जहाँ नारायण रहते हैं ।आप लोगों ने नारायण को पहले ही भेज दिया नारायण के बिना अकेले जहाँ कैसे रह सकती हूँ। इतना कह कर लक्ष्मी जी भी अपने धाम चली गई।

अगर माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करनी है तो नारायण की भी भक्ति करें तो लक्ष्मी जी स्वयं पीछे - पीछे आ जाती है क्योंकि लक्ष्मी जी नारायण के साथ ही रहती है।

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