SHRI KRISHNA AUR PUTNA VADH KI KATHA
श्री कृष्ण और पूतना वध की कथा
पूतना का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण, भागवत पुराण, आदि पुराण महाभारत में आता है पूतना एक भयंकर राक्षसी थी.
एक पौराणिक कथा के अनुसार पूतना कैतवी राक्षस की कन्या थी और कंस की पत्नी की सखी थी.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी। जब भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास पहुंचे तो रत्नमाला भगवान के सुंदर रूप को देखकर उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त कर उन्हें दुग्ध पान करवाने की इच्छा जागृत हुई।
लेकिन जब भगवान ने दो पग में सारी सृष्टि माप ली और राजा बलि ने वामन भगवान के तीसरा पग रखने के लिए अपना मस्तक आगे किया तो रत्नमाला ने इसे अपने पिता का अपमान समझा और सोचने लगी कि अगर मेरा ऐसा पुत्र होता तो मैं उसे विष दे देती। भगवान ने इस जन्म में उसकी दोनों इच्छाओं को पूर्ण कर दिया।
पूतना वध कथा PUTNA VADH KATHA
देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवा पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा। कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देगें, इस प्रकार उन्होंने ने देवकी की जान बचा ली। कंस ने देवकी और वसुदेव जी को जेल में कैद कर दिया।
देवकी और वसुदेव ने अपने छह पुत्र कंस को दे दिए। उनके सातवें पुत्र हुए 'बलराम' , जिसे योग माया ने माँ रोहिणी के गर्भ में संरक्षित कर दिया. भगवान श्री कृष्ण ने जब कंस के कारागार में जन्म लिया तो वसुदेव जी श्री कृष्ण को भगवान के आदेश पर गोकुल छोड़ आये और वहाँ से यशोदा की कन्या योग माया को ले आये ।
कंस को जब देवकी की आठवीं संतान की उत्पत्ति की सूचना मिली तो वह तुरंत बंदी गृह में पहुँचा और उसने ज्यों ही शीला पर घुमा कर बच्चे को पटकना चाहा कन्या आकाश में चली गई और कहने लगी कि मुझे मार तुम्हें क्या मिलेगा? कंस तुम्हें मारने वाला कहीं और पैदा हो चुका है।
कंस ने बालकों को मारने के लिए मायावी राक्षसी पूतना को भेजा। पूतना रूप बदलने में माहिर थी। वह सुंदर स्त्री का रूप बनाती और उसने आसपास के गांव में बहुत से बालकों को मार दिया।
पूतना एक दिन देवयोग से सुंदर रूप धारण कर बालकों को ढूंढती हुई नंद बाबा के घर पहुंच गई । उसने बहुत ही सुंदर वस्त्र धारण किये हुए थे उसका रूप मन को मोहित करने वाला था। वह हाथ में कमल लिए हुए लक्ष्मी जी के समान मोहित करती हुई गोकुल पहुंच गई।
पूतना ने बाल कृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया। उसका श्री कृष्ण को उठाना ऐसे जान पड़ता था जैसे मूर्ख सोये हुए सर्प को उठा ले। रोहिणी और यशोदा उसके रूप से इतना मोहित हो गई थी कि बिना कुछ कहे उसे देखती रही।
उसने श्री कृष्ण को उठा कर उनके मुख कमल में विष से भरा हुआ अपना स्तन दे दिया। श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर उसके स्तन को दोनों हाथों से दबा कर उसके प्राण हर लिये।
पूतना असहनीय पीड़ा के मारे छोड़ दें ,छोड़ दें कहती हुई हाथ पैर पटकने लगी और घर से बाहर निकल कर आकाश मार्ग में आ गई । पूतना के रूदन से पृथ्वी कांपने लगी। पूतना का माया रूप नष्ट हो गया और वह भयंकर राक्षसी के वेश में परवर्तित हो गई और छोड़- छोड़ चिल्लाती हुई आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़ी।
पूतना ने गिरते समय उसका शरीर छः कोस लम्बा था। मरते समय पूतना का रूप भयानक था। पूतना के भयंकर रूप को देखकर गोप और गोपियां व्याकुल हो गये। गोपियों ने श्री कृष्ण को पूतना के ऊपर खेलते हुए उठा लिया। रोहिणी और यशोदा ने रक्षा स्तोत्रों का पाठ कर ईश्वर का आभार व्यक्त किया।
गोपों ने पूतना के शरीर को काटकर यमुना के किनारे चिता बना कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया ।संस्कार के समय जलने पर पूतना के शरीर से सुगंधित खुशबू आ रही थी।
पूतना ने चाहे श्री कृष्ण को विष युक्त दुग्ध पान करवाया था लेकिन प्रभु ने उसे माँ का दर्जा दिया और उसे मुक्ति प्रदान कर स्वधाम भेज दिया।
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