SAMASYA - PROBLEM समस्या -प्राबल्म


कठिन परिस्थितियां या फिर जीवन में आने वाली समस्याएं हमें मजबूत बनाती है लेकिन हम बहुत बार समस्या को ही इतना बड़ा मान लेते हैं कि उसके समाधान की तरफ ध्यान ही नहीं देते। बहुत से लोग जीवन में ऐसा सोचते हैं कि ईश्वर ने सारी समस्याएं केवल उनके जीवन में दी है। लेकिन स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अगर किसी दिन आपके जीवन में कोई समस्या ना आए तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप ग़लत मार्ग पर चल रहे है।

किसी ने क्या खूब कहा है कि शुक्र है कि मेरे जीवन में रूकावटें है वरना मुर्दों के लिए तो दुश्मन भी रास्ता छोड़ दिया करते हैं। हमारे जीवन में आने वाली कठिनाईयों के कारण हम जितना संघर्ष करते हैं उतना हमारा व्यक्तित्व निखरता है। किसी भी कठिन परिस्थिति के आने पर हम सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर बेहतरीन हल ढूंढ सकते हैं।

सारे दुख मेरे हिस्से क्यों आते हैं- प्रेरणादायक प्रसंग

एक बार एक व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं से बहुत परेशान था। भगवान को उलाहना दे रहा था कि प्रभु सारी परेशानियां, दु:ख , तकलीफ लगता है आपने मुझे ही दे दी है।

मैं तो आपका नाम भी स्मरण करता रहता हूं फिर भी मेरे ही जीवन में इतने कष्ट क्यों?

एक समस्या खत्म होती है तो दूसरी आ जाती है। आप कोई समाधान बताएं जिससे मेरे जीवन की समस्याएं, कष्ट, परेशानियां कम हो सके।

उसे एक आवाज सुनाई दी" इस धरती पर सब को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, सब के जीवन में कोई ना कोई समस्या तो होती है ऐसा तुम्हारा भ्रम है कि सारी समस्या केवल तुम्हारे साथ है"।

लेकिन भक्त भगवान के लिए तर्क से संतुष्ट नहीं हुआ तो भगवान कहने लगे कि मैं एक उपाय बताता हूं उससे शायद तुम्हें दु:ख कुछ कम हो जाए। भक्त खुश हो गया कहने लगा कि प्रभु जल्दी से समाधान बताएं।

भगवान कहने लगे कि ,"एक बहुत प्राचीन वृक्ष है तुम एक कागज़ पर तुम्हारी जितनी भी समस्या,दु:ख हो लिख पोटली में बांध कर वृक्ष पर लटका देना । तुम ने जितनी भी समस्या लिखी होगी सब दूर हो जाएगी"।

यह बात सुनकर कर भक्त की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। कहने लगाकि प्रभु आप ने बहुत अच्छा समाधान बता दिया। मैं इसी क्षण जाता हूं और सारी परेशानियां काग़ज़ पर लिख कर वहां वृक्ष पर लटका आता हूं।

भगवान बोले लेकिन उस वृक्ष पर समस्या लिख कर छोड़ने वाले के लिए एक नियम है। भक्त बोला प्रभु कैसा नियम? 

भगवान कहने लगे कि जब तुम अपने दुःख, परेशान की पोटली वहां बांध दोगे तो तुम्हें वहां वृक्ष पर पहले से लटकी किसी और की समस्या की पोटली अपने साथ लानी होगी।

भक्त उस समय बहुत उत्साहित था इसलिए प्रभु के भाव को समझ ना सका और भगवान को हां में हामी भर दी।

झटपट उसने एक कागज़ लेकिन उसपर सारे दु:ख , परेशानियां लिख दी और पोटली में बांध कर चल पड़ा।

वहां जाकर जैसे ही वह पोटली वृक्ष के साथ बांधने लगा तो उसे स्मरण हो आया कि भगवान ने कहा था कि एक पोटली बांधने के बदले एक पोटली अपने साथ घर लेकर जानी पड़ेगी।

सोचने लगा कि इस पोटली के बदले कौन सी पोटली लूं। जैसे ही वह किसी पोटली को खोलकर साथ में लेकर जाने का विचार बनाता तो मन में आता क्या पता इस पोटली में किसी का असाध्य रोग हो, या फिर अति द्ररिदता हो, क्या पता यह किसी अपराधी की पोटली हो या फिर किसी मानसिक रोगी की पोटली हो।

इसी उधेड़बुन में वह वापिस जाने लगा तो उसे फिर से भगवान की आवाज सुनाई दी । क्या हुआ पुत्र! तुम अपनी दुःख की पोटली वापस क्यों लेकर जा रहे हो?

भक्त मुस्कुराते हुए बोला प्रभु आपने मेरी आंखें खोल दी। मैं तो स्वयं को सबसे दुखी समझ रहा था यहां तो लगता है मुझ से भी दुखी अनगिनत लोग हैं। प्रभु मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया है जो मुझे लगता था कि शायद संसार में मैं सबसे ज्यादा दुखी हूं ‌ । सारी परेशानियां मेरे साथ ही क्यों है?

प्रभु कम से कम बहुत अपने जीवन में आने वाली परेशानियों और दुखों का कारण तो पता है । लेकिन सामने वाले की पोटली में क्या दुख है मैं नहीं जानता।

इसलिए मैं आज से अपने जीवन में आने वाली कठिनाईयों और दुखों का साहस और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर उन समस्याओं का हल ढूंढ़ने की कोशिश करूंगा।

प्रभु अपनी परेशानियों में आपने मुझे जो सहज ही इतना कुछ दिया है मैं उसका शुकराना करना भी भुल गया। ईश्वर आपका शुक्रिया जो आपने मेरी आंखें खोल दी। प्रभु अब मैं समझ गया कि दुख और तकलीफ तो सबके साथ होती है लेकिन यह सब नजरिये की बात है हम अपने दुःख को कितना बड़ा मान कर उनका समाधान ढूंढते हैं या फिर उस दुख को बड़ा मानकर ईश्वर को उलाहना देते हैं। प्रभु आप केवल अपनी कृपा दृष्टि सदैव मुझ‌ पर बनाएं रखना। 

    समस्या के समाधान का प्रसंग

 एक बार एक राजा था. उसका कोई भी पुत्र नहीं था . वह चाहता था कि उसका कोई उत्तराधिकारी मिल जाए. उसने अपने महल के साथ एक सुंदर सा महल बनवाया और उसके उपर एक गणित का सूत्र लिखवा दिया और कहा जो इस को सुलझाएगा और महल का दरवाजा खोलेगाा तो महल उसका हो जाएगा.

नगर में यह घोषणा करवा दी गई. पर कोई भी उसको सुलझा नहीं पाया. बात दूसरे राज्य तक पहुंची, दूर- दूर से विद्वान आए पर वह  उसे सुलझा ना सके  .

दिन- महीने बीतते चले गए. राजा ने घोषणा करवा दी कि कल आखिरी दिन है गणित का सूत्र सुलझाने का. बहुत से विद्वान आए, पंडित आए. एक 16-17 साल के लड़के ने भी सुना की राजा ने कोई प्रतियोगिता रखी है. वह भी वहा पहुंच गया.

जो प्रतियोगिता का संचालक था उसने लड़के से कहा, " अगर तुम पहले सूत्र सुलझाना चाहते हो तो पहले जा सकते हो."
लड़का बोला, "पहले विद्वानों को मौका दीजिए. मैं बाद मे चला जाऊंगा."लेकिन कोई भी सूत्र सुलझा ना पाया.
राजा ने सोचा की लगता है कोई भी उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीं है .  अंतिम बारी उस लड़के की थी. उसने समय लेकर कुछ सोचा और दरवाजा खोल दिया.

 सारा भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सब ने उस से पूछा कि यह दरवाजा कैसे खोला.

लड़के ने कहा, " मैंने देखा कि यह सूत्र किसी से भी हल नहीं हो रहा, हो सकता है की ऐसा कोई सूत्र हो ही ना. यह केवल उलझाने के लिए ही लिखा गया हो और दरवाजा को धक्का मारते ही दरवाजा खुल गया.

राजा उसकी सूझ-बूझ से प्रसन्न हुआ और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.

इसी तरह जीवन में कई बार  समस्या इतनी बड़ी नहीं होती जितनी हम समझ लेते है. बस एक विश्वास के धक्के की जरूरत होती है.

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