SHRI KRISHNA JANAM KATHA

श्री कृष्ण जन्म कथा( LORD KRISHNA BIRTH STORY)

भगवान विष्णु को भक्त वत्सल कहा जाता है उन्होंने समय समय पर भक्तों और सृष्टि की रक्षा के लिए अवतार लिये। श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था.

LORD KRISHNA STORY: पृथ्वी पर जब कंस के अत्याचार बढ़ गये तो पृथ्वी गो रूप धारण कर ब्रह्मा जी के समक्ष गई और कहने लगी कि प्रभु अब मैं असुरों के अत्याचारों से व्याकुल हो गई हूं अब उनके अत्याचार असहनीय हो गए हैं। 

ब्रह्मा जी पृथ्वी को भगवान शिव के पास ले गये भगवान शिव कहने लगे कि तुम्हारे कष्ट के निवारण हेतु भगवान विष्णु शीघ्र यदुवंश में धर्मात्मा और भगवान के भक्त वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से अवतार लेंगे।
शेष जी भगवान के बड़े भाई के रूप में पहले अवतार लेंगे और भगवान की माया यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होगी।

WHERE WAS KRISHNA BORN(श्री कृष्ण का जन्म कहां हुआ)

श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था।
कंस श्री कृष्ण की मां देवकी का भाई और श्री कृष्ण का मामा था। देवकी कंस की बहन थी. देवकी और वसुदेव जी के विवाह के बाद जब कंस अपनी बहन देवकी की विदाई कर रहा था तो आकाशवाणी हुई की तुम्हारी बहन का आठवां पुत्र तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. 

कंस तो देवकी को मारना चाहता था परंतु वसुदेव जी ने वादा किया कि वो सभी संतानों को उसे सौंप देंगें।
वसुदेव जी कहने लगे कि आकाशवाणी के अनुसार देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा शत्रु है मैं जन्म लेते ही मैं सभी बालकों को तुम्हें सौंप दूंगा। तुम जैसे चाहो वैसे उनसे अपनी रक्षा करना मैं उसमें हस्तक्षेप नहीं करूंगा। कंस ने वसुदेव जी की बात मान ली और देवकी का वध नहीं किया और दोनों को कारागार में बंद कर दिया।

जब वसुदेव जी अपनी पहली संतान को लेकर कंस के पास गए तो कंस उनके सत्य भाव से प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि इस बालक को तुम्हें वापिस ले जाओ क्योंकि आकाशवाणी के अनुसार तुम्हारा आठवां पुत्र मेरा शत्रु है। वसुदेव जी उस बालक को वापस ले गए।

स्वर्ग के देवता विचार करने लगे कि इस तरह कंस के पापों का घड़ा कैसे शीघ्र भरेंगा? उन्होंने नारद जी को कंस के पास भेजा। नारद जी का कंस बहुत सम्मान करता था।
नारद जी ने कंस को भड़का दिया कि वसुदेव, देवकी, नंद, यशोदा और सभी यदुवंशी देवताओं के अंश है और तुम्हारी मृत्यु की कामना करते हैं। कंस को भड़का कर नारदजी चले गए।
 
कंस ने यदुवंशियों को देवता मानकर उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट देने शुरू कर दिये। उसने जब देवकी के छः पुत्रों का भी वध कर दिया तो भगवान विष्णु का तेज देवकी के गर्भ में प्रविष्ट हुआ।

 कंस के अत्याचार जब मथुरा वासियों पर बढ़ गए तो भगवान ने योगमाया को आदेश दिया कि तुम सब गोपों और गोओं को साथ गोकुल चली जा और जो अंश देवकी के गर्भ में स्थापित है उसे वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दें।
रोहिणी के पुत्र का नाम संकर्षण होगा।

तू स्वयं माता यशोदा के गर्भ में उत्पन्न होना। मैं तुम्हें वर देता हूं कि तू सबको मनवांछित फल देने वाली होगी और पृथ्वी पर लोग तुम्हें काली, दुर्गा ,वैष्णवी, नारायणी आदि कई नामों से पुकारेंगे ।योगमाया ने पृथ्वी पर भगवान के कहे अनुसार सब व्यवस्था कर दी और स्वयं यशोदा के गर्भ में स्थापित हो गई।

भगवान विष्णु स्वयं देवकी के गर्भ में जा बैठे ।भगवान के तेज से देवकी के मुख पर एक अलौकिक शोभा आ गई उस तेज़ को देखकर कंस समझ गया कि उसका संहार करने के लिए भगवान प्रकट होने वाले हैं।

 कंस सोचने लगा कि," अगर वह देवकी को मारता है तो महा पाप होगा एक तो वह स्त्री है और दूसरी गर्भवती और तीसरी उसकी बहन है ।
उठते- बैठते, खाते- पीते कंस इसी ध्यान में मग्न रहता कि भगवान मेरा संहार करेंगे । उधर सभी देवता मिलकर बंदी गृह में आये और स्तुति करने लगे कि हे करूणा निधान इस पापी का वध कर अपने भक्तों की इसके अत्याचारों से रक्षा करें। सभी देवता भगवान की स्तुति कर अपने- अपने लोक चले गए।

भगवान कृष्ण के जन्म के समय पृथ्वी धन धान्य से परिपूर्ण हो गई। नदियां जल से परिपूर्ण हो गई। भगवान के अवतरण की बात सुनकर देवताओं में आनंद की लहर दौड़ गई। आकाश में नगाड़े, दुंदुभी बजने लगे, सिद्धगण, किन्नर, गंधर्व सभी भगवान का गुणगान करने लगे। फूलों की वर्षा होने लगी।

श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था. घोर अंधकार भरी रात्रि में भगवान अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए। उनका श्यामवर्ण रूप, कमल के समान नैत्र, चार भुजाएं जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित था। पिताम्बर और गले में वैजन्ती माला, कानों में मकराकृत कुण्डल,मस्तक पर कीरीट और मुकुट सुशोभित था। 

जब श्री कृष्ण बंदीगृह में प्रकट हुए तो बंदीगृह प्रकाशित हो गया जिससे वासुदेव जी की आंखें चमक उठी। उन्होंने श्री हरि को पुत्र रूप में प्रकट देखकर ब्राह्मणों को हजार गाय दान करने का संकल्प लिया और भगवान की स्तुति की ।
 वासुदेव जी कहने लगे कंस ने मेरे छः पुत्रों और आपके भाइयों का वध कर दिया है अब आपके जन्म लेने का समाचार मिलते ही वह आप को मारने के लिए दौड़ा चला आएगा।

वसुदेव जी के बाद देवकी ने भगवान की स्तुति की और कहने लगी कि जब से कंस को पता चला है कि आप उसका वध करेंगे । उसने हमें बहुत से कष्ट दिए हैं ।उससे हमारी रक्षा करें ।जब जान लेगा कि आपने अवतार लिया है तो उसी क्षण आपको मारने के लिए दौड़ेगा। आप ऐसा यत्न करे जिससे उसे यह भेद ज्ञात ना हो। आप इस चतुर्भुज रूप को गुप्त रखें।

भगवान देवकी की ममता भरी बातें सुनकर कहने लगे कि इससे पहले तीसरे जन्म में देवकी तुम और  वसुदेव, पृश्नि और सुतपा नाम के प्रजापति थे. दोनों ने 12 हज़ार वर्ष तक तपस्या की।  तुम दोनों ने मेरा घोर तपस्या किया।  तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर मैं इस चतुर्भुज रूप में प्रकट हुआ था । जब मैंने तुमको वरदान मांगने को कहा तो तुमने कहा कि ,"मैं आपके जैसा पुत्र चाहती हूं"।  

इस लिए भगवान श्री हरि उस जन्म उनके पुत्र बने और पृश्नि गर्भ नाम से विख्यात हुए।

दुसरे जन्म में श्री हरि,अदिति और देव ऋषि कश्यप के पुत्र बने। उनका नाम था उपेन्द्र. छोटा आकर होने के कारण उनके अवतार को "वामन " भी कहा जाता है.

अपने तीसरे जन्म में आप दोनों देवकी और वसुदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए श्री कृष्ण के रूप में मैंने जन्म लिया ।

 श्री कृष्ण वासुदेव जी से कहने लगे कि अगर तुम दोनो को कंस से भय है तो मैं बालक बन जाता हूं और तुम मुझे गोकुल पहुंचा दो और वहां यशोदा के गर्भ से मेरी योग माया ने जन्म लिया है उसे तुम जहां वापिस ले आना।

भगवान ने बाल रूप धारण कर लिया । भगवान की योग माया से द्वारपालों को निंद्रा आ गईं। जेल के द्वार अपने आप खुल गए। मेघ जल की वर्षा करने लगे। मेघों के जल से श्री कृष्ण को भीगने से बचाने के लिए हजार फन वाले शेष जी बाल कृष्ण के ऊपर साया किये पीछे-पीछे चलने लगे।

  वासुदेव जी जब भगवान को लेकर आए तो यमुना नदी में प्रभु के चरण स्पर्श करने के लिए ऊंची ऊंची लहरें उठने लगी। जिससे वसुदेव जी घबरा गए। पिता को घबराया ने प्रभु ने अपना एक पैर बाहर निकाला जिसके स्पर्श से यमुना जी ठहर गई। भगवान की लीला देख कर वसुदेव जी प्रसन्न हुए।

वसुदेव जी जब गोकुल पहुंचे तो भगवान की माया से सब गाढ़ी निंद्रा में सो रहे थे। वसुदेव जी ने भगवान को यशोदा के पास सुला दिया और स्वयं योग माया को लेकर बंदीगृह वापिस आ गए।
यशोदा प्रसव की पीड़ा के कारण अचेत हो गई थीं। इसलिए उन्होंने कुछ भेद नहीं जाना ।जब उन्होंने आंखें खोली तो अपने पास पुत्र को सोता हुआ पाकर प्रसन्न हुई।

 वासुदेव जी जब पुनः कारावास में आ गए और जेल के कवाड़ अपने आप बंद हो गये।  देवकी के पास आते ही कन्या ने रोना शुरू कर दिया ।भगवान ने अपनी योग माया से पहरेदारों को जगा दिया और बच्चे का रुदन सुनकर उन्होंने कंस बता दिया कि देवकी का आठवां बालक उत्पन्न हो गया है।

 इतना सुनते ही कंस जेल में जा पहुंचा। कंस को देखकर देवकी  विनती करने लगी कि इस बार मेरे कन्या हुई है और शूरवीर कन्या की रक्षा करते हैं इसलिए भाई तुम इसकी रक्षा करो।

कंस ने उसकी एक न सुनी और कन्या को उठाकर ज्यों ही उसने शीला पर घुमा कर पटकना चाहा कन्या आकाश में चली गई और कहने लगी कि मुझे मार तुम्हें क्या मिलेगा? कंस तुम्हें  मारने वाला कहीं और पैदा हो चुका है।

 योगमाया की बात सुनकर कंस चिंतित हो गया कि आकाशवाणी उल्टी कैसे हो गई ? उसने देवकी और वसुदेव को छोड़ दिया क्षमा मांग कर आदर पूर्वक घर पहुंचा दिया ।कंस ने निर्देश दिया कि मेरा शत्रु कहीं पैदा हो चुका है ।
कंस ने उस समय जितने भी बालक वहाँ पैदा हुए थे सबको मार देने का आदेश दिया। उस ने श्री कृष्ण को मरवाने के लिए कई राक्षस भेजे।

LORD KRISHNA STORIES IN HINDI 
















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