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Showing posts from June, 2022

SHRI JAGANNATHA PURI TEMPLE ODISHA

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श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर उड़ीसा   जगन्नाथ पुरी मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। श्री कृष्ण का एक नाम जगन्नाथ भी है।  जगन्नाथ भगवान के लिए कहा जाता है कि - अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः। यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो॥ भाव - जिसका इस दुनिया में कोई नहीं है,भगवान जगन्नाथ उसके स्वामी (नाथ) है, इसमें कोई संशय नहीं है और जिसके नाथ जगन्नाथ जी है उसको जीवन में क्या दुःख हो सकता है। जगन्नाथ मंदिर को धरती का बैकुंठ जाता है ।यह मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ जी को श्री क्षेत्र, श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र और नीलगिरी भी कहा जाता है। जगन्नाथ पुरी हिंदू धर्म के चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका पुरी, रामेश्वरम और जगन्नाथ में से एक है।  ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने सबसे पहले बद्रीनाथ धाम में स्नान किया, गुजरात के द्वारिका जी में कपड़े बदलें और जगन्नाथ में भोजन किया और तमिलनाडु के रामेश्वरम में विश्राम किया। स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु नीलमावध रूप में अवतरित हुए जो सबर जाति के देवता हैं। जगन्नाथ मंदिर

HOW TO MAKE YOUR WEAKNESS YOUR STRENGTH

अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत कैसे बनाएं ?  हम सबके जीवन में कोई ना कोई कमज़ोरी जरूर होती है कई बार हम उस कमज़ोरी के चलते लगता है कि हमारे लिए जीवन बहुत कठिन हो गया है।  उस कमज़ोरी के लिए कई बार लोग दया भावना दिखाते हैं तो कुछ लोग उपहास उड़ाते हैं। लेकिन जरूरत उस कमज़ोरी को समझ कर उसे अपनी ताकत बनाने की है। लोग तो कहेंगे तुम नहीं कर सकते लेकिन तुम तो निश्चय करके कुछ कर दिखाना है।  धैर्य और परिश्रम के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर  अपनी कमजोरियों पर भी विजय प्राप्त कर सकते है। जरूरत बस उनको पहचान कर उन पर काम करने की है कि हम उन्हें अपनी ताकत कैसे बना सकते हैं। एक बार एक लड़का था जिसका एक हाथ नहीं था इसलिए हर कोई उसको दया की दृष्टि से देखता या फिर उसका उपहास करता रहता था। एक दिन लड़के ने मन में ठान लिया कि लोगों की इस दया भावना से देखने को उसे सम्मान में बदलने के लिए कुछ करना पड़ेगा। उसके गांव में बहुत से लड़के कुश्ती लड़ते थे इसलिए उसने ठान लिया कि मुझे कुश्ती सीखनी है। वह लड़का गांव के बहुत से उस्तादों के पास गया लेकिन कोई भी उसे कुश्ती सिखाने के लिए राज़ी नहीं हुआ। जब वह गांव के नाम

GURU PURNIMA 2024

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 गुरु पूर्णिमा 2024 हिन्दू सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। 2024 में गुरु पूर्णिमा रविवार 21 जुलाई को मनाई जाएगी।  हिन्दू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है । "गु"का अर्थ है अंधकार और "रु" का अर्थ है प्रकाश। इस तरह गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ जो हमें अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लें कर जाएं।  गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? ऐसा माना जाता है कि चारों वेदों के रचयिता महार्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था।  उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की थी। वेदों की रचना के कारण ही उनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। उनके नाम पर ही गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहा जाता है. उस दिन गुरु को व्यास जी का अंश मान कर पूजा की जाती है.  गुरु पूर्णिमा का महत्व  हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु को भगवान से भी ऊंचा माना गया है क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर से

TULSIDAS JI AUR JAGANNATH JI DARSHAN

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तुलसीदास जी ने कैसे किये जगन्नाथ मंदिर में अपने इष्ट देव श्री राम के दर्शन   एक बार तुलसीदास जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए गए क्योंकि उनको किसी ने कहा कि जगन्नाथ जी में साक्षात ईश्वर के दर्शन होते हैं। तुलसीदास जी महाराज भी अपने इष्ट देव के दर्शन के लिए जगन्नाथ पुरी की़ ओर चल पड़े। तुलसीदास जी जब बहुत लंबी और थका देने वाली यात्रा के पश्चात जगन्नाथ मंदिर पहुंचे तो अपने इष्ट देव के दर्शन की इच्छा से प्रसन्न चित्त होकर मंदिर से प्रवेश किया।  जगन्नाथ जी के दर्शन करके उनके मन कों धक्का लगा कि यह  हस्तपादविहिन और गोलाकार आंखों वाला देवता मेरे सुंदर नयनों वाले मेरे इष्ट श्री राम कैसे हो सकते हैं? तुलसीदास जी मंदिर से निकल कर निराश होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए और सोचने लगे कि मेरा इतनी दूर दर्शन करने आना सफल नहीं हुआ। इसी सोच विचार में रात्रि हो गई। तभी उन्हें किसी बालक ने पुकारा कि यहां तुलसीदास कौन है? बालक हाथ में जगन्नाथ जी का भोग लिये बोला कि बाबा तुलसीदास जी कौन है? तुलसीदास जी सोचने लगे कि उनके साथ जो श्रद्धालु आए हैं उन्होंने पुजारी को बताया होगा कि तुलसीदास भी दर्शन के लिए आए हैं तो उन्

JAGANNATH PURI RATH YATRA 2022 जगन्नाथ रथयात्रा

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 JAGANNATH PURI RATH YATRA 2022 1 JULY, FRIDAY 2022   JAGANNATH RATH YATRA - विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में बड़े हर्षोल्लास के साथ आयोजन किया जाता है। इस रथ यात्रा का आनंद लेने देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है जहाँ पर भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विद्यामान है।  मान्यता है कि जो भी भक्त इस शुभ रथ यात्रा में सम्मिलित होते हैं उन्हें सौ यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष रथ यात्रा जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई को आरंभ होगी। आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि से लेकर आषाढ़ मास एकादशी तक चलने वाले इस पर्व के बारे में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं। रथ यात्रा क्यों निकाली जाती हैं?  भगवान जगन्नाथ गर्भ गृह से निकल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं। शास्त्रों में भी इस रथ यात्रा के महत्व का वर्णन किया गया है।  कहते हैं कि एक ब

SAWAN MONTH 2022 MONDAY, FESTIVAL DATE LIST

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 सावन मास सोमवार और मुख्य व्रत, त्यौहार लिस्ट  सावन मास हिंदू पांचांग के अनुसार पांचवां महीना होता है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आधा जुलाई और आधा अगस्त महीना होता है। आषाढ़ मास के पश्चात सावन मास आता है और सावन मास के पश्चात भाद्रपद मास शुरू होता है। सावन मास चार्तुमास का दूसरा महीना होता है। शास्त्रों में श्रावण मास का बहुत महत्व बताया गया है। श्रावण मास में श्रावण नक्षत्र होता है इसलिए इसे श्रावण मास कहा जाता हैं। सावन‌ महीना भगवान शिव को अति प्रिय है । सावन मास में किए गए पूजा पाठ का विशेष महत्व है।  प्रकति का सावन‌ मास से घनिष्ठ संबंध है तपती गर्मी के पश्चात सावन मास में होने वाली बर्षा से सभी को बहुत आंनद प्राप्त होता है।  सावन मास पहले के अंतिम सोमवार व्रत तिथि शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में सोमवार व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है । इसलिए भगवान शिव के भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने हेतु श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार का व्रत जरुर करते हैं। SAWAN MONTH MONDAY (SOMVAR) सावन‌ पहला सोमवार- 18 जुलाई  सावन दूसरा सोमवार -25 जुलाई  सावन तीसरा सोमवार -01 अगस्त  सावन‌

DON'T JUDGE A BOOK BY ITS COVER

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किसी किताब को उसके आवरण से ना आंके  DON'T JUDGE A BOOK BY ITS COVER का हिन्दी में अर्थ है कि किसी किताब को उसके आवरण से ना आंके या फिर बाहरी दिखावे के आधार पर कोई निर्णय ना ले। अक्सर होता है कि चीजें या व्यक्ति जैसे दिखते हैं लेकिन उनकी वास्तविकता कुछ और ही होती है। किसी के चरित्र का देखकर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।  Never judge a book by it's cover idiom पर आधारित hindi moral story   एक बार एक व्यक्ति राजमहल के द्वार पर आया और सिपाही से कहने लगा कि राजा को सूचना दो कि उनका भाई मिलने आया है।  सैनिक ने जाकर राजा को सूचना दी। राजा ने व्यक्ति को आदर सहित अंदर बुलाया। उसने राजा को प्रणाम किया और उनका हालचाल पूछा। व्यक्ति कहने लगा कि कहिए बड़े भाई क्या हालचाल है ?  राजा विनम्रता से बोला कि, मैं तो अच्छा हूं , आप बताएं आपका क्या हालचाल है। व्यक्ति कहने लगा कि," महाराज मैं जिस भवन में रहता हूं वह जर्जर हो गया है जिस कारण वह कभी भी टूट सकता है। महाराज मेरे बत्तीस नौकर थे लेकिन अब सभी मुझे छोड़ कर जा चुके हैं। मेरी पांच रानियां थीं लेकिन अब वह सब भी वृद्धावस्था में है। व्यक्ति की

JHANSI KI RANI LAKSHMIBAI

 झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं? झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की  पुण्यतिथि पर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता की वह पंक्तियां याद आती है "खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" 18 जून को उनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। उनके शौर्य और वीरता की गाथा आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। झांसी की रानी महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल तब कायम की जब औरतों को ज्यादा अधिकार भी नहीं होते थे। वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है जो स्वयं को बहादुर और निड़र मानती है। घर और परिवार की जिम्मेदारी के साथ बाहर निकल काम कर रही है।  झांसी की रानी लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका थीं। अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रही कभी भी उनके आगे झुकी नहीं। वह इतनी बहादुरी से लड़ी कि अंग्रेज भी उसकी बहादुरी के कायल हो गए। हम लक्ष्मीबाई से स्वाभिमानी, कर्त्तव्य पारायण स्वयं पर आत्मविश्वास करना आदि गुणों की प्रेरणा ले सकते हैं। उनमें पराक्रम और साहस अकल्पनीय था।  लक्ष्मी बाई कभी अपने आदर्शों के आगे झुकी नहीं। उनका दत्तक पुत्र दामोदर र

SAWAN MAAS BHAGWAAN SHIV KO KYUN PASAND HAI

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श्रावण मास भगवान शिव को अति प्रिय क्यों है?   सावन मास भगवान शिव को अति प्रिय माना जाता है। सनातन धर्म में श्रावण मास का बहुत महत्व है । श्रावण ( सावन) मास भगवान शिव को इतना प्रिय क्यों है ? शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त श्रावण मास में भगवान शिव पूजा करते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है  द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ:। श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत:।‌ श्रवणर्क्षं पौर्णिमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत:।। भाव - भगवान शिव का कहना है कि सभी मास में मुझे श्रावण प्रिय है। इस की महिमा सुनने योग्य है इसलिए भी इसे श्रावण मास कहा जाता है। मास में पूर्णिमा का पावन श्रावण नक्षत्र होता है इस लिए इसे  श्रावण मास कहा जाता है। इस मास की महिमा सुनने से सिद्धि प्राप्त होती है इसलिए इसको श्रावण मास कहा जाता हैं। श्रावण मास से जुड़ी पौराणिक कथाएं   माता पार्वती पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान ना सह सकीं और यज्ञ की अग्नि में देह त्याग कर दिया। उन्होंने मरते समय भगवान विष्णु से वर मांगा कि उनकी प्

PRATHNA प्रार्थना

 प्रार्थना का अर्थ - श्रद्धा और भक्ति के साथ ईश्वर या फिर आपने आराध्य से मांगना या विनती करना। ईश्वर का मनन करना और उसे अनुभव करना।  प्रार्थना से हम ईश्वर से संबंध जोड़ने की कोशिश करते हैं। प्रार्थना अपने लिए या फिर किसी अपने की शुभ कामना के लिए हो सकती है। ईश्वर से की गई प्रार्थना में ईश्वर के प्रति विश्वास, आवेदन और स्नेह समाहित होता है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु सब कुछ अब आपके हाथों में है आप सर्वशक्तिमान है आप के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। ईश्वर से की गई प्रार्थना में बहुत ताकत होती है। हम लोगों को बचपन से ही संस्कार दिये जाते हैं कि ईश्वर से प्रार्थना करो । घर पर में माता - पिता और दादा - दादी और स्कूल में भी हमें ईश्वर की प्रार्थना करवाई जाती है। उनका यही मानना था कि ईश्वर सच्ची प्रार्थना जरूर सुनते हैं। अगर आपकी प्रार्थना सच्ची हो तो ईश्वर उचित समय पर सही व्यक्ति को अपकी मदद के लिए भेज ही देते हैं। प्रार्थना सच्चे मन से करनी चाहिए है क्योंकि ईश्वर तो उनकी भी सुनते हैं जो बोल नहीं सकते। मैंने सच्ची प्रार्थना का एक प्रसंग पढ़ा था कि एक हार्ट सर्जन थे ।उनको एक छोटी सी

SHRI KRISHNA DAMODAR LEELA AUR YAMALAARJUN KA UDDHAAR

श्री कृष्ण दामोदर लीला और यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। कृष्ण को कृष्ण, मुरारी, द्वारिकाधीश, मयुर, लड्डू गोपाल आदि की नामों से जाना जाता है। उनमें से श्री कृष्ण का एक नाम दामोदर भी है। दाम का अर्थ होता है 'रस्सी' और उदर का अर्थ होता है 'पेट'। पेट से रस्सी से बंधने के कारण उनका नाम दामोदर पड़ा। कार्तिक मास को दामोदर मास क्यों कहते हैं  मां यशोदा ने कार्तिक मास में दिवाली के दिन श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर उनके पेट को रस्सी से बांध कर ऊखल से बाँधा था। इसलिए कार्तिक मास को दामोदर मास कहा जाता है। एक बार मां यशोदा ने श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर उनको ओखल से बांधना चाहा । श्री कृष्ण की माया से मां यशोदा उन्हें जिस रस्सी से बांधना चाहती वो दो अंगुल छोटी रह जाती। मां यशोदा और रस्सी उसमें जोड़ती तो वह भी दो अंगुल छोटी सी रह जाती ऐसा करते करते उन्होंने घर की सभी रस्सियों को जोड़ दिया लेकिन श्री कृष्ण की माया से हर बार रस्सी दो अंगुल छोटी ही रह जाती। श्री कृष्ण ने जब देखा कि मां शिथिल हो गई है तो श्री कृष्ण स्वयं उसमें ब

SHRI KRISHNA DWARKA RAM NAAM KI MAHIMA

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 श्री कृष्ण ने कही राम नाम की महिमा SHRI KRISHNA DWARKA RAM NAAM KI MAHIMA  राम नाम सदा प्रेम्णा संस्मरामि जगद्गुरुम्  क्षणं न विस्मृति याति सत्यं सत्यं वचो मम् (श्री आदि पुराण)  भगवान श्री कृष्ण श्री आदि पुराण में अर्जुन से कहते हैं कि," हे अर्जुन! मैं सदैव राम नाम स्मरण करता हूँ राम का नाम ही जगत गुरु हैं मैं क्षण भर के लिए भी राम नाम को नहीं भूलता यह मेरा सत्य वचन है"। श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया राम नाम जपने का महत्व एक बार अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं कि," हे कृष्ण! कोई अत्यन्त सरल से सरल उपाय बताएं जिससे मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है "। श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! राम नाम लोक परलोक में कल्याण करने वाला है ।  जो राम नाम का नियमित पाठ करने से पुत्र हीन को पुत्र प्राप्त हो जाएगा । उसकी सर्व‌कामनाएं पूर्ण होगी। गंगा, काशी, गया, नर्मदा, पुष्कर आदि तीर्थ भी राम नाम की महिमा की बराबरी नहीं करते। राम नाम का उच्चारण करने से मानो चारों वेदों का पाठ हो जाता है।  जिसकी जिह्वा पर राम नाम विद्यमान है उसके यज्ञ, जप- तप सब हो जाएंगे। राम नाम से सभी पापों का पश्च

KALIYA NAAG DAMAN SHRI KRISHNA LEELA

श्री कृष्ण लीला कालिया नाग का दमन कथा  Mahabharat story: महाभारत में श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग दमन की कथा आती है।  श्री कृष्ण ने वृन्दावन में बहुत सी बाल लीला की थी। श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उनमें से कालिया नाग का दमन कर श्री कृष्ण ने उसे पुनः रमणक  द्वीप भेज दिया था। कालिया नाग कद्रु और कश्यप ऋषि का पुत्र और पन्नग  जाति का नाग था .वह पहले रमणक द्वीप में रहता था . लेकिन गरुड़ राज से शत्रुता के कारण जमुना में रहने लगा . कालिया नाग यमुना जी में निर्भय होकर क्यों रहता था ?   एक बार गरूड़ जी यमुना तट पर मछलियों का शिकार कर रहे थे तभी सौभरि ऋषि वहां तपस्या कर रहे थे। उन्होंने गरूड़ जी को वैसा करने से रोका लेकिन गरूड़ जी नहीं माने और एक बड़ी सी मछली को मारकर खा गए। उस मछली के कुटुंब ने सौभरि ऋषि से विनती की । ऋषि को उन पर दया आई और उन्होंने गरूड़ को शाप दिया कि अब यदि गरूड़ जहां आएगा तो मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।‌‌सौभरि ऋषि के इस शाप के बारे में कालिया नाग जानता था इसलिए वह जहां आकर रहने लगा।   कालिया नाग और गरूड़ जी ने शत्रुता इसलिए थी क्योंकि गरूड़ जी अपनी

BAJRANG BAAN LYRICS IN HINDI

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बजरंग बाण लिरिक्स इन हिन्दी श्री हनुमान जी भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाते हैं। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है क्योंकि हनुमान जी अपने भक्तों के संकट को हर लेते हैं।  बजरंग बाण लिरिक्स इन हिन्दी  ।।दोहा।। निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।। ।।चौपाई।। जय हनुमंत संत हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।। जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।। जैसे कूदि सिंधु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।। आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।। जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम-पद लीन्हा।। बाग उजारि सिंधु महं बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।। अछय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।। लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई।। अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।। जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होय दुःख करहु निपाता।। जय गिरधर जय जय सुख- सागर। सुर-समूह - समरथ भट- नागर।। ऊँ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिं मारु बज्र की कीले।। गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज

HANUMAN JI NE AMAR RAKSHAS KO KAISE HARAAYA

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हनुमान जी ने अमर राक्षसों को कैसे हराया ? लंका युद्ध के समय  जब रावण को लगा कि उसका विजयी होना कठिन है तो रावण ने युद्ध भूमि में 1000 अमर राक्षसों को भेज दिया। जिनको काल भी समाप्त नहीं कर सकता था। विभिषण को जब पता चला तो उन्होंने श्री राम से इस विषय पर मंत्रणा की। अब चिंता होने लगी कि यह राक्षस तो अमर हैं इनके साथ वानर सेना कब तक युद्ध लड़ेगी। सीता माता का उद्धार कैसे होगा? वानर राज सुग्रीव भी विचार करने लगे कि वानर सेना इन राक्षसों के साथ अनंत काल तक युद्ध कर सकती है लेकिन विजयी होना असम्भव है? जब हनुमान जी ने श्री राम सहित वानर वाहिनी को चिंतित देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा तो विभिषण जी ने हनुमान जी को सारी बात बताई। विभिषण कहने लगे कि हनुमान अब विजय असंभव प्रतीत हो रही है। हनुमान श्री राम से कहने लगे कि प्रभु आप मुझे आज्ञा दे ।मैं रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूंगा प्रभु आप चिंता ना करें। मुझ पर विश्वास रखें। उधर रावण ने भी अमर राक्षसों को युद्ध भूमि में जाते वक्त कहा था कि हनुमान नाम के वानर से सावधान रहना। हनुमान जी को अकेले देख कर राक्षस कहने लगे कि तुम कौन हो? तुम्हें हम को देख

VATSASUR, BAKASUR AUR AGHASUR VADH

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  श्री कृष्ण ने किया वत्सासुर, बकासुर और अघासुर दैत्यों का वध  श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। कंस को जब पता चला कि उसे मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है तो उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए बहुत से दैत्यों को भेजा। पुतना , शकटासुर और तृणावर्त को गोकुल में भेजा। जिनको मार कर श्री कृष्ण ने उनका उधार किया।  उसके पश्चात् नंद बाबा और गोकुल के सभी गोप गोपियों ने निश्चय किया कि जहां पर रहना सुरक्षित नहीं है इसलिए वह गोकुल छोड़ कर वृन्दावन आ गए । वृन्दावन में चारों ओर प्राकृति का सुंदर नजारा था। सब ओर फलों से लदे हुए वृक्ष थे। वृन्दावन में गोवर्धन जैसा पर्वत और यमुना जैसी पावन नदी थी।  श्री कृष्ण प्रतिदिन वृन्दावन के वन में ग्वाल बाल संग गाय और बछड़े चराने जाया करते थे। VATSASUR VADH वत्सासुर वध श्री कृष्ण जब बछड़े चराने वन में गए तो वहां वत्सासुर नाम का दैत्य वहां बछड़े का रूप धारण कर आया। उस दैत्य को देखकर गोप - गोपियां और गाय - बछड़े देख कर भयभीत हो गए। श्री कृष्ण ने बलराम जी को इशारे से समझा दिया कि राक्षस बछड़े का रूप धारण कर आया है।  श्री कृष्ण ने बछड़े रूपी र

BARBARIK KI KATHA बर्बरीक की कथा

 BARBARIK KAUN HAI  ? BARBARIK KE TEEN TEER KA KYA MAHATAV THA? बर्बरीक भीम और हिडिम्बा के पोत्र थे। उनके पिता का नाम घटोत्कच और माता का नाम मोरवी(अहिलावती) था जो कि मूर दैत्य की पुत्री थी। जब बर्बरीक ने जन्म लिया तो उसके बाल बब्बर शेर की तरह दिखते थे इसलिए घटोत्कच ने अपने पुत्र का नाम बर्बरीक रख दिया। बर्बरीक बहुत ही तेजस्वी थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी से प्राप्त की। उनकी मां उनकी गुरु थी। उनकी मां ने उन्हें शिक्षा दी थी कि सदैव हारने वाले पक्ष की सहायता करनी चाहिए।   उन्होंने मां आदिशक्ति की बहुत तपस्या की जिसके फलस्वरूप उन्हें तीन बाण प्राप्त हुएं। इसलिए उन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता है। उन्हें एक दिव्य धनुष भी प्राप्त हुआ जो बर्बरीक को तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने में समर्थ था।  बर्बरीक को जब कौरवों और पांडवों के मध्य होने वाले युद्ध की सूचना मिली तो वह भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी मां से आशीर्वाद लिया और अपनी मां से वादा किया कि हारने वाले पक्ष का साथ देगा।  बर्बरीक के तीन बाण  BARBARIK KI TEEN BAAN जब श्री कृष्ण को बर्बरीक की इस प्रतिज्ञा क

SHRI KRISHNA NAND BABA GOKUL CHHOD VRINDAVAN KYU GAE

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श्री कृष्ण और नंद बाबा गोकुल छोड़ वृन्दावन क्यों चले गए? श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। जब योग माया ने कंस को बता दिया कि तुम को मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है तो कंस ने उस समय जितने भी बालक पैदा हुए थे उनको मारने के लिए गोकुल में अपने राक्षस भेजने शुरू कर दिये। सबसे पहले पूतना फिर शकटासुर और तृणावर्त उसके पश्चात यमलार्जुन के वृक्षों का अचानक गिरना ।  जब मायावी राक्षसों के आक्रमण बार - बार गोकुल पर होने लगे तो नंद बाबा सबको बुला कर बोले कि कंस के द्वारा भेजे गए राक्षसों के उपद्रव दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं।  इसलिए इस तरह के अशांत वातावरण में गोकुल में रहना कठिन हो गया है। अगर आप लोग सहमत हो तो हमें किसी और सुरक्षित स्थान पर चल कर रहना चाहिए। नंद जी की बात सुनकर एक वृद्ध गोप कहने लगे कि आप उचित कह रहे हैं। हमें इस स्थान को त्याग देना चाहिए क्योंकि यहां पर राक्षसों के आक्रमण के कारण बालक सुरक्षित नहीं है।  पहले पूतना, शकटासुर, तृणावर्त राक्षस कृष्ण को उठा कर ले गया और अब यमलार्जुन के वृक्षों का गिरना इस लिए हमें छोड़ कर वृन्दावन की भूमि पर चलकर रहना