BARBARIK KI KATHA बर्बरीक की कथा
BARBARIK KAUN HAI ? BARBARIK KE TEEN TEER KA KYA MAHATAV THA?
बर्बरीक भीम और हिडिम्बा के पोत्र थे। उनके पिता का नाम घटोत्कच और माता का नाम मोरवी(अहिलावती) था जो कि मूर दैत्य की पुत्री थी। जब बर्बरीक ने जन्म लिया तो उसके बाल बब्बर शेर की तरह दिखते थे इसलिए घटोत्कच ने अपने पुत्र का नाम बर्बरीक रख दिया।
बर्बरीक बहुत ही तेजस्वी थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी से प्राप्त की। उनकी मां उनकी गुरु थी। उनकी मां ने उन्हें शिक्षा दी थी कि सदैव हारने वाले पक्ष की सहायता करनी चाहिए।
उन्होंने मां आदिशक्ति की बहुत तपस्या की जिसके फलस्वरूप उन्हें तीन बाण प्राप्त हुएं। इसलिए उन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता है। उन्हें एक दिव्य धनुष भी प्राप्त हुआ जो बर्बरीक को तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने में समर्थ था।
बर्बरीक को जब कौरवों और पांडवों के मध्य होने वाले युद्ध की सूचना मिली तो वह भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी मां से आशीर्वाद लिया और अपनी मां से वादा किया कि हारने वाले पक्ष का साथ देगा।
बर्बरीक के तीन बाण BARBARIK KI TEEN BAAN
जब श्री कृष्ण को बर्बरीक की इस प्रतिज्ञा का पता चला तो उन्होंने बर्बरीक की शक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। श्री कृष्ण ने बर्बरीक के पास जाकर प्रश्न किया कि तुम मात्र तीन बाण लेकर युद्ध भूमि में आ गए। क्या तीन बाण से भी कोई युद्ध लड़ सकता है?
बर्बरीक कहने लगे कि मैं पहला बाण उनको चिंहित करेगा जिनकी रक्षा करनी है।
दूसरा बाण उनको चिंहित करेगा जिनका वध करना है।
तीसरा बाण से वध करने वाले चिंहित योद्धाओं और सेना का वध करके वापिस मेरे तरकश में आ जाएगा।
बर्बरीक कहने लगे कि उनके यह बाण सम्पूर्ण सेना को नष्ट कर सकते और उनके यह तीर पुनः उनके तरकश में वापस आ जाते हैं।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक के बाणों को परखने के लिए कहा कि वह सामने जो पीपल का पेड़ है उसके समस्त पत्तों में छेद करके दिखाएं। बर्बरीक ने अपने बाण को पीपल के पेड़ के पत्तों में छेद करने की आज्ञा दी। बाण सभी पत्तों को भेद कर श्री कृष्ण के पैरों के ईद गिर्द घूमने लगा।
बर्बरीक ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की प्रभु आप अपने पैर पीछे कर ले आपके पैरों के नीचे इस पीपल के पेड़ का एक पत्ता है मैंने तीर पीपल के पेड़ के पत्ते सभी को भेदने की आज्ञा दी है इसका एक पत्ता आपके पैरों के नीचे है इसलिए कृपा आप अपना पैर उस पर से हटा लें।
श्री कृष्ण इस बात को जानते थे उन्होंने स्वयं ही पीपल के एक पत्ते को अपने पैरों के नीचे रखा था ताकि वह बर्बरीक के बाण की शक्ति और सामर्थ्य देख सके।
बर्बरीक के बाणों की शक्ति देखकर श्री कृष्ण समझ गए कि यह तो युद्ध कुछ ही क्षणों में खत्म करने का सामर्थ्य रखता है।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम किस ओर से लड़ोगे।
बर्बरीक ने अपनी मां से किये हुए वादे अनुसार कहा कि मैंने युद्ध में जिस भी पक्ष की सेना हारती हुई नजर आएंगी उसका साथ देने का निर्णय लिया है।
श्री कृष्ण जानते तो अंतर्यामी थे वह तो युद्ध का परिणाम जानते थे। श्री कृष्ण सोचने लगे कि अगर बर्बरीक कौरव सेना हारती हुई नजर आई, और वह कौरवों की ओर से लड़े तो उनके बाण पांडवों का नाश कर सकते हैं।
अगले दिन श्री कृष्ण ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के पास पहुंचे बर्बरीक से भिक्षा मांगी। श्री कृष्ण ने बर्बरीक से जो भी वह मांगे उसे दान देने का वचन मांगा । जब बर्बरीक ने वचन दे दिया। श्री कृष्ण ने तुरंत बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया।
बर्बरीक कहने लगे कि मैं आपको वचन अनुसार शीश देने को तैयार हूं लेकिन पहले मुझे आप अपने वास्तविक स्वरूप के दर्शन दे। इतना सुनते ही श्री कृष्ण ने तुरंत अपने स्वरूप में आ गए। श्री कृष्ण बर्बरीक से कहने लगे कि युद्ध के प्रारंभ होने से पहले युद्ध भूमि की पूजा के लिए किसी वीर योद्धा के शीश के दान की जरूरत होती है। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को सबसे अधिक वीर योद्धा कहकर उनका उनका शीश दान में मांग लिया।
बर्बरीक कहने लगे कि मैं अपको अपना शीश देने का वचन दे चूका हूं। लेकिन मेरे मैं यह युद्ध अंत तक देखना चाहता हूं। श्री कृष्ण इस बात पर सहमत हो गए और उन्होंने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींच कर एक ऊँची पहाड़ी पर रख दिया ताकि बर्बरीक युद्ध देख सके। बर्बरीक का कटा हुआ शीश ने युद्ध को अंत तक देखा और गर्जना करता रहा।
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