DON'T JUDGE A BOOK BY ITS COVER

किसी किताब को उसके आवरण से ना आंके 

DON'T JUDGE A BOOK BY ITS COVER का हिन्दी में अर्थ है कि किसी किताब को उसके आवरण से ना आंके या फिर बाहरी दिखावे के आधार पर कोई निर्णय ना ले।
अक्सर होता है कि चीजें या व्यक्ति जैसे दिखते हैं लेकिन उनकी वास्तविकता कुछ और ही होती है। किसी के चरित्र का देखकर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। 

Never judge a book by it's cover idiom पर आधारित hindi moral story 
Hindi motivational story बाहरी आवरण पर किसी को ना आंके story of wisdom

 एक बार एक व्यक्ति राजमहल के द्वार पर आया और सिपाही से कहने लगा कि राजा को सूचना दो कि उनका भाई मिलने आया है। 

सैनिक ने जाकर राजा को सूचना दी। राजा ने व्यक्ति को आदर सहित अंदर बुलाया।

उसने राजा को प्रणाम किया और उनका हालचाल पूछा। व्यक्ति कहने लगा कि कहिए बड़े भाई क्या हालचाल है ? 

राजा विनम्रता से बोला कि, मैं तो अच्छा हूं , आप बताएं आपका क्या हालचाल है।

व्यक्ति कहने लगा कि," महाराज मैं जिस भवन में रहता हूं वह जर्जर हो गया है जिस कारण वह कभी भी टूट सकता है।

महाराज मेरे बत्तीस नौकर थे लेकिन अब सभी मुझे छोड़ कर जा चुके हैं।

मेरी पांच रानियां थीं लेकिन अब वह सब भी वृद्धावस्था में है।

व्यक्ति की कहानी सुनकर राजा ने उसे सौ मोहरें देने का हुक्म दिया।  व्यक्ति ने कहा कि महाराज सौ मोहरें तो कम होगी। राजा ने उत्तर दिया कि इस बार राज्य में अकाल पड़ा था इसलिए इतनी मोहरें रख लो।

व्यक्ति कहने लगा कि महाराज आप मेरे साथ सात समुद्र पार चले वहां पर सोने की खाने हैं। लेकिन मेरे वहां पांव रखते ही समुद्र सूख सकता है। मेरे पैरों की ताकत तो आपने देख ही ली है।

इतना सुनते ही राजा ने उसे हज़ार सोने की मोहरें देने के साथ साथ अपना सलाहकार भी नियुक्त कर लिया।

व्यक्ति के जाने मंत्रियों ने राजा से पूछा कि," महाराज उस साधारण से दिखने वाले व्यक्ति में आपने क्या खासियत देखी जो आपने उसे हज़ार मोहरें प्रदान की और अपना सलाहकार  नियुक्त कर लिया"।

राजा कहने लगा कि वह व्यक्ति बहुत ही समझदार है। मै उसे पहले से नहीं जानता था फिर भी उसने मुझे भाई कहकर संबोधित किया।‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ उसका मुझे भाई कहने का आशय था कि एक दिन मैं भी उसकी तरह दिखने लग जाऊंगा।

उसका जर्जर भवन से आशय उसके बूढ़े हो चुके शरीर से था।

उसने कहा कि उसके बत्तीस नौकर थे जो अब छोड़ कर जा चुके हैं उसका मतलब उसके बत्तीस दांतों से था।

पांच रानियों से आशय उसकी पांच इंद्रियों से था।

मैंने जब उसे सौ मोहरें देने का आदेश दिया तो उसने कहा कि उसके पैर रखते ही समुद्र सुख जाएगा ऐसे कह कर उसने मुझे उलाहना दिया था। 

उसका मानना था कि उसके महल में पांव रखते हैं मेरे राजकोष का खजाना सूख गया है इसलिए मैं उसे केवल सौ मोहरें ही दे रहा हूं।

उसकी प्रखर बुद्धि को देखकर ही मैंने उसे सौ मोहरें दी और अपना सलाहकार नियुक्त किया। सच कहते हैं कि हीरे की परख जौहरी ही जानता है क्योंकि केवल राजा ही उस साधारण से दिखने वाले व्यक्ति की बुद्धि की परख कर पाया।

कई बार बाहर से साधारण दिखने वाले व्यक्ति भी बहुत बुद्धिमान होते हैं उनकी बुद्धि का उनके आचरण से ही पता लगता है। इसलिए कहा जाता है कि किसी किताब को उसके आवरण ना आंके।

कबीर जी के दोहे

  Also Read hindi moral stories 



मैं ना होता तो क्या होता प्रेरक प्रसंग

हीरे की परख best moral story

संगति का असर best moral story

कभी हार मत मानो moral story

स्वामी विवेकानंद मोटिवेशनल स्टोरीज


Comments

Popular posts from this blog

RAKSHA SUTRA MANTAR YEN BADDHO BALI RAJA

KHATU SHYAM BIRTHDAY DATE 2023

RADHA RANI KE 16 NAAM MAHIMA