JAGANNATH PURI RATH YATRA 2022 जगन्नाथ रथयात्रा



 JAGANNATH PURI RATH YATRA 2022

1 JULY, FRIDAY 2022

 JAGANNATH RATH YATRA - विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में बड़े हर्षोल्लास के साथ आयोजन किया जाता है। इस रथ यात्रा का आनंद लेने देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।

उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है जहाँ पर भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विद्यामान है।

 मान्यता है कि जो भी भक्त इस शुभ रथ यात्रा में सम्मिलित होते हैं उन्हें सौ यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस वर्ष रथ यात्रा जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई को आरंभ होगी। आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि से लेकर आषाढ़ मास एकादशी तक चलने वाले इस पर्व के बारे में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं।


रथ यात्रा क्यों निकाली जाती हैं? 

भगवान जगन्नाथ गर्भ गृह से निकल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं। शास्त्रों में भी इस रथ यात्रा के महत्व का वर्णन किया गया है। 

कहते हैं कि एक बार सुभद्रा ने श्री कृष्ण से नगर भ्रमण की इच्छा जताई तो श्री कृष्ण और बलराम अलग- अलग रथ पर बैठकर बहन को नगर का भ्रमण करवाया इसलिए रथ यात्रा की परम्परा है।

जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर में श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा अपनी मौसी के घर पर रहने जाते हैं। इसलिए यह भव्य रथयात्रा निकाली जाती है।

जगन्नाथ रथयात्रा के रथ

भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर गुंडीचा मंदिर लेकर जाया जाता है।इन भव्य रथों को बनाने की तैयारी की अक्षय तृतीया के दिन आरंभ हो जाती है।इस रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं।

 भगवान जगन्नाथ अर्थात श्री कृष्ण के रथ को नंदी घोष या फिर गरूड़ ध्वज कहा जाता है। उनके रथ में 16 पहिये लगे होते हैं और 45 फीट ऊंचा होता है।इसे जिस रस्सी से खींचते हैं उसे शंखाचुड़ा नाड़ी कहते हैं।

बलराम जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है जिसमें 14 पहिये होते हैं यह 43 फीट ऊंचा होता है। इस रथ को खिंचने वाली रस्सी को बासुकी कहते हैं।

सुभद्रा के रथ को पद्म ध्वज कहा जाता है जिसमें 12 पहिये लगे होते हैं और यह रथ 42 फीट ऊंचा होता है। इसे जिस रस्सी से खिंचते है उसे स्वर्णचूड़ा नाड़ी कहा जाता है।

रथ यात्रा के आरंभ होने पर राजाओं के वंशज भगवान जगन्नाथ के रथ के आगे सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के आगे झाड़ू लगाते है। पूरे विधि विधान से और मंत्रोच्चारण से रथ यात्रा आरंभ होती है। 

सबसे आगे बलभद्र जी का रथ , उसका पश्चात सुभद्रा और फिर जगन्नाथ जी का भव्य रथ होता है जिसे भक्त बहुत श्रद्धा पूर्वक खिंचते है। रथयात्रा में रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गुंडीचा मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 3 कि.मी.की दूरी पर है। इस मंदिर का नाम राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी के नाम पर रखा गया है।
गुंडीचा मंदिर में रथ पहुंचने पर भगवान जहां एक सप्ताह प्रवास करते हैं। 
आषाढ़ दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ जी की वापसी यात्रा शुरू होती है। 

भक्त भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए रथ को खींचते हैं कहते हैं कि रथयात्रा में शामिल होने से सौ यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

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