JHANSI KI RANI LAKSHMIBAI
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं?
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता की वह पंक्तियां याद आती है "खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" 18 जून को उनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।
उनके शौर्य और वीरता की गाथा आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
झांसी की रानी महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल तब कायम की जब औरतों को ज्यादा अधिकार भी नहीं होते थे। वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है जो स्वयं को बहादुर और निड़र मानती है। घर और परिवार की जिम्मेदारी के साथ बाहर निकल काम कर रही है।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका थीं। अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रही कभी भी उनके आगे झुकी नहीं। वह इतनी बहादुरी से लड़ी कि अंग्रेज भी उसकी बहादुरी के कायल हो गए।
हम लक्ष्मीबाई से स्वाभिमानी, कर्त्तव्य पारायण स्वयं पर आत्मविश्वास करना आदि गुणों की प्रेरणा ले सकते हैं। उनमें पराक्रम और साहस अकल्पनीय था।
लक्ष्मी बाई कभी अपने आदर्शों के आगे झुकी नहीं। उनका दत्तक पुत्र दामोदर राव मात्र सात वर्ष का था जब वह उसको अपनी पीठ के साथ बांधकर युद्ध भूमि में गई थी। उन्होंने हालातों का रोना नहीं रोया । हम रानी लक्ष्मीबाई से कठिन परिस्थितियों में भी उचित निर्णय लेना सीख सकते हैं।
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