SAWAN MAAS BHAGWAAN SHIV KO KYUN PASAND HAI

श्रावण मास भगवान शिव को अति प्रिय क्यों है?


 

सावन मास भगवान शिव को अति प्रिय माना जाता है। सनातन धर्म में श्रावण मास का बहुत महत्व है ।

श्रावण ( सावन) मास भगवान शिव को इतना प्रिय क्यों है ?

शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त श्रावण मास में भगवान शिव पूजा करते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है 

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ:।

श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत:।‌

श्रवणर्क्षं पौर्णिमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:।

यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत:।।

भाव - भगवान शिव का कहना है कि सभी मास में मुझे श्रावण प्रिय है। इस की महिमा सुनने योग्य है इसलिए भी इसे श्रावण मास कहा जाता है। मास में पूर्णिमा का पावन श्रावण नक्षत्र होता है इस लिए इसे  श्रावण मास कहा जाता है। इस मास की महिमा सुनने से सिद्धि प्राप्त होती है इसलिए इसको श्रावण मास कहा जाता हैं।

श्रावण मास से जुड़ी पौराणिक कथाएं

  •  माता पार्वती पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान ना सह सकीं और यज्ञ की अग्नि में देह त्याग कर दिया। उन्होंने मरते समय भगवान विष्णु से वर मांगा कि उनकी प्रीति हर जन्म में भगवान शिव के प्रति बनी रहे।
  • माता सती ने हिमाचल राज के घर पर पुत्री रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने नारद जी के कहे अनुसार भगवान शिव की घोर तपस्या की । माना जाता है कि भगवान शिव ने श्रावण मास में ही माता पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिए थे। भगवान शिव और माता पार्वती का पुनः मिलन हुआ भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ। इस लिए भगवान शिव को यह मास बहुत पसंद है 
  • एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव श्रावण मास में ही पृथ्वी पर अपने ससुराल आकर विचरण किया था तो उनका अभिषेक कर स्वागत किया गया था इसलिए श्रावण मास में अभिषेक का महत्व है।
  • इसलिए ही कुंवारी कन्याएं श्रावण मास में भगवान शिव और मां पार्वती का पूजन करती है ताकि उनको मनवांछित वर प्राप्त हो सके।श्रावण मास में माता पार्वती की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है 

समुद्र मंथन कथा

  • एक अन्य मान्यता के अनुसार देवताओं और दैत्यों ने जब अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया। उसमें से जब हलाहल विष निकला तो तीनों लोकों को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान किया और उसे अपने गले में धारण किया तब उनका नाम नीलकंठ पड़ा। भगवान शिव से प्रसन्न हो कर देवताओं ने उनपर जल से अभिषेक किया ।
  • भगवान विष्णु चतुर्मास में योग निद्रा में रहते हैं इसलिए सृष्टि की देखरेख भगवान शिव ही करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनका अभिषेक किया जाता है ताकि भगवान शिव प्रसन्न रहे और मनवांछित फल प्रदान करे ।चातुर्मास में दान पुण्य का विशेष महत्व है ।
  • ऋषि मारकंडू के पुत्र मार्कण्डेय की आयु कम थी ऋषि ने उनको अपनी अकाल मृत्यु से बचने के लिए भगवान शिव की आराधना करने को कहा कहते हैं कि मार्कण्डेय ऋषि ने श्रावण मास में भगवान शिव को  प्रसन्न कर करने के लिए घोर तपस्या की थी।
  • श्रावण मास में श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, उज्जैन, नासिक आदि जाते है।
  • श्रावण मास में कांवड़ यात्रा आरंभ होती है ।

श्रावण मास में सोमवार व्रत का महत्व 

शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में सोमवार व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।कहते हैं कि ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से जो फल प्राप्त होता है वह श्रावण मास में व्रत करने से प्राप्त होता है ।इसलिए श्रावण मास में कुंवारी लड़कियां मनवांछित वर की प्राप्ति हेतु और सुहागन स्त्रियाँ सुखी विवाहित जीवन के लिए, पुत्र प्राप्ति के लिए करती है ।

सोमवार व्रत करने से धन में वृद्धि होती है और आयु लंबी होती है ।

 भगवान शिव को प्रसन्न कैसे करें

 सबसे पहले स्नान करके  शिवलिंग पर गंगा जल, शहद, शक्कर, दूध, दही, चावल, बेलपत्र, फल, मिठाई, भांग, धतूरा चढ़ाना चाहिए ।रुद्र अभिषेक करना चाहिए ।

माँ पार्वती को सुहाग का सामान जैसे कि बिंदी, चुड़ियाँ, सिंदूर, चुनरी आदि अर्पित करनी चाहिए। कुवांरी कन्याओं को मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए और सुहागिनों को सौभाग्य प्राप्ति के लिए सुहाग का सामान चढा़ना चाहिए।

भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु शिव चालीसाशिव आरती के पश्चात शिव स्तुति मंत्र कर्पूरगौरं करुणावतारं पढ़ना चाहिए।

शिव तांडव स्तोत्र,  शिव रूद्राष्टकम पढ़ना  चाहिए।

ऊँ नमः शिवाय और महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव के प्रिय मंत्र है।


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